संस्मरण साहित्य की अपूर्व निधि
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय
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हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर आधिपत्य रखनेवाले डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की संस्मरण
आधारित पुस्तक ‘स्मृति उपवन’ की पाण्डुलिपि मेरे
समक्ष है। ‘मयंक’ जी ने अभी तक आठ
पुस्तकों का प्रकाशन किया है उन सभी पुस्तकों के विषय विभिन्न सामाजिक सरोकारों, परिवर्तनों, सुधारों तथा मनरंजन
पर आधारित रहे हैं, कई अच्छे गीतों की रचना भी आपने की है परन्तु आज जिस
पाण्डुलिपि की बात मैं कर रहा हूँ वह
अपने में अलग विधा है तथा हिन्दी प्रेमियों, शोथार्थियों हेतु
उपयोगी होगी। हिन्दी साहित्य की सबसे लचकदार विधा संस्मरण को कहा गया है।
अनेकानेक साहित्यकारों तथा महापुरुषों ने अपने जीवन के अनेक स्वणर्णिम पलों को
गद्य की इस विधा द्वारा प्रस्तुत किया है, सम्प्रति अतीत की
स्मृतियों को बड़े ही आत्मीयता के साथ कल्पना से दूर रहकर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री
‘मयंक’ ने ‘स्मृति-उपवन’ का सृजन किया है
जिसके भाग एक में बाबा नागार्जुन के साथ बिताए पलों को बड़ी ही आत्मीयता के साथ
साहित्य प्रेमियों के समक्ष रखने का सार्थक प्रयास किया है। तत्कालीन छायाचित्र
भी उन घटनाओं को प्रामाणिक सिद्ध करते हैं।
बाबा
नागार्जुन एक कवि नहीं बल्कि एक विचारक भी थे। हिन्दी साहित्य लेखन में त्रुटियों
से परे रहने की शिक्षा, क्रान्तिकारी विचारों की प्रकृति के साथ तादात्म्य तथा
जनता के शोषण संकट आदि को परोसने में उन्होंने एक नया कौशल दिखाया।
डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी ने बाबा
नागार्जुन द्वारा प्रेषित पत्रों को तथा उनके द्वारा समय-समय पर वाचन की जाने
वाली विशेष कविताओं को उल्लेखित कर साहित्य प्रेमियों पर उपकार किया है। बाबा की
बहुत सी कविताओं का सही अर्थ तो मैंने भी मयंक जी का संग-साथ पाकर ही जाना है।
छायावादी कवियों की श्रृंखला में ‘‘कई दिनों तक चूल्हा
रोया...’’ तथा ‘‘आए दिन बहार के’’ शीर्षक की कविता में जल-संकट और अकाल का वर्णन सरलतम
रूप में बाबा जी ने किया है जिसे ‘मयंक’ जी ने ‘स्मृति-उपवन’ में विशेष स्थान
दिया है। बाबा की श्रेष्ठतम कविता ‘‘बादल को घिरते देखा
है’’ का पुस्तक में संपूर्ण प्रकाशन किया गया है। बाबा नागार्जुन के लिए
समर्पित ‘मयंक’ जी द्वारा लिखा
संस्मरण ‘बाबा को
लिखते देखा है’ बहुत ही रोचक है और उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी
साहित्यकार को लिखते रहने की प्रेरणा देता है।
बाबा
नागार्जुन के साथ बिताए गए लेखक के स्वर्णिम पल और उनके साथ को स्मरण कराते
छायाचित्र ही ‘स्मृति उपवन’ के सृजन के कारक बने
हैं जो हिन्दी प्रेमियों को नवल दिशा प्रदान करने में सक्षम है। ‘मयंक’ जी सौभाग्यशाली हैं
कि उन्होंने बाबा के साथ रहकर हिन्दी साहित्य की विभिन्न बारीकियाँ सीखीं।
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संस्मरणों
की द्वितीय श्रृंखला में मयंक जी ने अपने जीवन के सुखद क्षणों को पाठकों के
समक्ष रखने का सपफल प्रयास किया है। कुछ श्रेष्ठ संस्मरणों में लक्ष्मीनारायण
मिश्र के साथ बातचीत, ‘लंगूर का पालतू कुत्ते टॉमी को थप्पड़ मारना’, ‘जूली का पिल्लू और
उसकी स्वामीभक्ति’ जीवन्त दृश्य उपस्थित करते हैं। ‘बाल साहित्यकार की परिभाषा’, ‘सीनाजोरी’ संस्मरण के साथ-साथ
कहानी कला शिल्प के भी बेजोड़ उदाहरण हैं और हास्य का भान भी कराते हैं जिसके
कारण रोचकता बढ़ जाती है।
एक
मजदूर और पढ़े-लिखे शिक्षक की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के बीच का तुलनात्मक
अध्ययन बेरोजगारी का भयावह परिणाम ‘मनमाना का मनमाना
दाम’ संस्मरण में उदाहरण शैली के तौर पर देखने को मिलता है। ‘माँ-बाप का
सान्निध्य’, ‘वनसंरक्षण’, तथा ‘पिताजी की बाहों की
ताकत’ संस्मरण उल्लेखनीय है, तो वहीं माता-पिता
की कमी का एहसास कराते ‘पिताजी विदा हो गए’ तथा ‘मेरी प्यारी माँ’ के संस्मरण बहुत
मार्मिक हैं जो पाठकों को सेवाभावी और रिश्तों को समझने तथा सम्मान देने का
संदेश देते हैं। ‘तोते का बलिदान’, ‘भूख’, ‘बचपन बड़ा अजीब’, संस्मरण लेखन की
सरलता के कारण बाल कहानियाँ जैसे लगते हैं।
मयंक
जी ने ‘स्मृति उपवन’ में हर वर्ग के
पाठकों का ध्यान रखा है अन्धविश्वास को दूर करने में ‘भय का भूत’, ‘आशा की एक किरण’ एक गंभीर चिन्तन का
परिणाम है जो सांसारिकता का बोध कराता है और ‘शर्माना नहीं चाहिए’ एक प्रेरक प्रसंग का
कार्य करता है। ‘दादीजी प्रसाद दे दो’ बाल मनोभावों को
बताने में पूर्णरूपेण सक्षम है।
डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ के संस्कारों में
अतिथि देवो भवः है जिसका पूरा-पूरा प्रभाव उनकी धर्मपत्नी, पौत्र-पौत्री तथा
पुत्रों-पुत्रवधुओं पर भी पड़ा है। बाबा नागार्जुन सरीखे अनेक साहित्यकार मयंक जी
के सदन में आए, ब्लॉगरमीट और अन्तर्राष्ट्रीय दोहाकार समागम कार्यक्रम
के सम्मानसमारोह के साक्षी बने। ‘स्मृति उपवन’ के द्वारा पुराने
तथा अविकसित खटीमा का साहित्यिक और भौगोलिक
परिदृश्य पाठकों तक पहुँचेगा, साथ ही बाबा
नागार्जुन की बात ‘बूढ़े लोगों को अपना अनुभव सुनाने की ललक होती है’ तथा ‘नई पीढ़ी के लोग
पुराने लोगों के पास बैठना नहीं चाहते’ भी पाठकों के मन में
उत्प्रेरक का काम करेगी।
आशा
करता हूँ कि इस व्यस्ततम डिजिटल दुनिया में जहाँ बच्चे अपनी ही दुनिया में खोए
होते हैं वह बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ लेने की कोशिश करेंगे यही लेखक मयंक जी
के ‘स्मृति उपवन’ का शुभ-मधुर परिणाम
होगा।
कुल
मिलाकर यह संस्मरण संग्रह अपने में रोचकता लिए हुए है। इसकी सरलतम भाषा शैली और
दुर्लभ चित्रों का समावेश पाठकों को साहित्य लेखन के प्रति रुचि तो पैदा करेगा
ही, साथ ही पुस्तकों के पठन हेतु भी आनन्ददायी शिक्षा प्रदान करेगा। ‘स्मृति उपवन’ संस्मरण संग्रह के
लिए डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी को उनके यशस्वी
लेखन के लिए असीम-अनन्त और अशेष हार्दिक शुभकामनाएँ तथा कोटिशः बधाइयाँ। मुझे
पूरा विश्वास है कि उनका यह संकलन समीक्षकों की कसौटी पर भी खरा उतरेगा।
सद्भावी
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय
अध्यापक-हिन्दी
राज. उ. मा. विद्यालय
बिरिया मझोला (खटीमा)
जिला-ऊधम सिंह नगर
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी