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रविवार, जून 26, 2011

"बिन झोली के फकीर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मेरी प्यारी जूली
बात 1975 की है! मैं नया-नया बनबसा में आकर बसा था। किराये का मकान था और कुत्ता पालने का शौक भी चर्राया हुआ था। इसलिए मैं अपने एक गूजर मित्र के यहाँ गया और उसके यहाँ से भोटिया नस्ल का प्यारा सा पिल्ला ले आया।
बहुत प्यार से इसे एक दिन रखा मगर मकान मलिक से मेरा यह शौक देखा न गया। मुझे वार्निंग मिल गई कि कुत्ता पालना है तो कोई दूसरा मकान देखो!
अतः मन मार कर मैं इसे दूसरे दिन अपने गूजर मित्र को वापिस कर आया।
अब तो मन में धुन सवार हो गई कि अपना ही मकान बनाऊँगा। उस समय जैसे तैसे पाँच हजार रुपये का इन्तजाम किया और कैनाल रोड पर एक प्लॉट ले लिया। दो माह में दो कमरों का प्लैट बना लिया और उसके आगे की ओर अपना क्लीनिक भी बना लिया।
उस समय बनबसा पशु चिकित्सालय में डॉ.ब्रह्मदत्त पशु चिकित्साधिकारी थे। उनसे मेरी दोस्ती हो गई थी। एक दिन जब मैं उनके घर गया तो देखा कि उनके यहाँ 3 पामेरियन नस्ल के पिल्ले खेल रहे थे। मैने उनसे अपने लिए एक पिल्ला माँगा तो उन्होंने कहा कि डॉ. साहब एक पेयर तो मैं अपने पास रखूँगा। इसके बाद एक पिल्ली बचती है इसे आप ले जाइए।
मैंने अपने वर कोट की जेब में इस प्यारी सी पिलिया को रखा और अपने घर आ गया। छोटी नस्ल की यह पिलिया सबको बहुत पसंद आई और इसका नाम जूली रखा गया।
उन दिनों कुकिंग गैस नहीं थी इसलिए घर में चूल्हा ही जलता था। बनबसा में लकड़ियों की भी भरमार थी। जाड़े के दिनों में मैं चूल्हे के आगे बैठकर जूली को सौ-सौ बार नमस्ते करना और 1-2-5-10-100 के नोट पहचानना बताता था।
जूली बहुत तेज दिमाग की थी जिसके कारण उसने बहुत जल्दी ही सब कुछ याद कर लिया था।
जूली को ग्लूकोज के बिस्कुट खाना बहुत पसंद था और यह मेरे प्रिया स्कूटर की बास्केट में बैठी रहती थी।
उन दिनों नेपाल में जाने और बाहन ले जाने के लिए कोई लिखा-पढ़ी या टैक्स नहीं लगता था। मैं रोगी देखने के ले प्रतिदिन ही नेपाल के एक दो गाँवों में जाता रहता था।
     एक दिन एक नेपाली मुझे बुलाने के लिए आया। वह पहले ही अपनी साइकिल से चल पड़ा था और गड्डा चौकी में उसको मेरी इन्तजार करनी थी। अब मैं उसके गाँव बाँसखेड़ा के लिए चल पड़ा।
जैसे ही शारदा बैराज पार किया रास्ते में एक काली गाय बहुत ही खूँख्वार बनकर मेरे स्कूटर की ओर बढ़ी। मुझे स्कूटर रोक देना पड़ा। इतने में तपाक से जूली बास्केट में से छलाँग लगा कर उस गाय के पीछे पड़ गई। वह बार-बार गाय की पूँछ पकड़ कर उसको काट लेती थी। अन्ततः गाय को भागना पड़ा। और मैं सुरक्षित गड्डाचौकी पहुँच गया।
मुझे तो अनुमान भी न था कि मेरे स्कूटर की बास्केट में जूली बैठी है। 
इतने वफादार होते हैं यह बिन झोली के फकीर। जो मालिक की जान की रक्षा अपनी जान पर खेलकर भी हर हाल में करते हैं।
क्रमशः........................

रविवार, अगस्त 09, 2009

‘‘महेन्द्र नगर नेपाल’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



आइए आज हम आपको नेपाल की सैर पर ले चलते हैं। नेपाल का एक बहुत ही खूबसूरत शहर है महेन्द्र नगर।
यहाँ पहुँयने के लिए आपको पहले बनबसा जाना पड़ेगा। बनबसा में वैसे तो आपको कुछ खास नही लगेगा पर जैसे ही आप नेपाल की ओर बढ़ेंगे। यहाँ के कुदरती नजारे आपका मन जरूर मोह लेंगे।
यदि आप अपने वाहन/कार से आरहे हैं तो आपको सुबह 6 से 8, दोपहर 1 से 2 तथा शाम का 5 से 7 बजे तक बनबसा शारदा बैराज का गेट खुला मिलेगा।
आप आराम से इन समयों में वाहन से शारदा नदी का पुल पार कर नेपाल में प्रवेश कर जायेंगे। इस बैराज मं 34 गेट बने हैं। जिसका नजारा बड़ा ही मनोहारी प्रतीत होता है।
इस बैराज के पहले छोर पर शारदा मेन कैनाल है। जो भारत में बहती है तथा दूसरे किनारे पर एक नहर नेपाल के लिए निकाली गयी है।
पुल पार करते ही आपको भारत की सीमा पर बने कस्टम व इमीग्रेशन की चेक पोस्ट पर अपनी एन्ट्री करानी होगी।
1।5 किमी आगे जाने पर आपको नेपाल की सीमा पर बनी गड्डा-चौकी से दो -चार होना पड़ेगा। यानि वहाँ भी एन्ट्री करानी होगी। इसके लिए आपके पास वाहन के कागजात और ड्राइविंग लाइसेन्स का होना बहुत जरूरी है।
यदि आप अपने वाहन से नही आ रहे हैं तो आपको रिक्शा या घोड़ा-ताँगा का सहारा लेना पड़ेगा। जिस पर सफर करने का अपना अलग ही आनन्द है। सारे नजारे आप बहुत अच्छी तरह से देखते हुए चले जायेंगे।
बनबसा से महेन्द्र नगर की दूरी 8-9 किमी की है। लगभग 1 घण्टे का समय रिक्शा वाले या तांगे वाले वहाँ तक पहुँचने में लगाते हैं।
महेन्द्र नगर जाने पर आपको यहाँ के बाजार में विदशी सामानों से पटी हुई दूकाने मिलेंगी। आप आराम से शापिंग कर सकते हैं परन्तु बहुत ही सीमित मात्रा में।
यहाँ के रेस्टोरेन्टों में और ढाबों में आपको चाय-पानी और मीट के अलावा शराब भी खुले रूप से बिकती हुई मिलेंगी।
महेन्द्र नगर से 1 किमी दूर आपको सिद्धबाबा का मन्दिर भी मिलेगा।
आप यहाँ आकर प्रसाद चढ़ाये और सच्चे मन से मनौती माँग कर अपने घर को लौटें।
सिद्धबाबा आपकी हर मनौती को पूर्ण करेंगे।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

गुरुवार, जुलाई 23, 2009

‘‘साबरमती आश्रम, अहमदाबाद’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)




आठ अक्टूबर 2008 को मेरा किसी समारोह में जाने का कार्यक्रम पहले से ही निश्चित था। समारोह/सम्मेलन दो दिन तक चला।



यूँ तो अहमदाबाद के कई दर्शनीय स्थलो का भ्रमण किया, परन्तु मुझे गांधी जी का साबरमती आश्रम देख कर बहुत अच्छा लगा।



10 अक्टूबर को मैं अपने कई साथियों के साथ। प्रातः 9 बजे आश्रम में पहुँचा। चार-पाँच घण्टे आश्रम मे ही गुजारे।


उसी समय की खपरेल से आच्छादित गांधी जी का आवास भी देखा। वही सूत कातने का अम्बर चरखा। उसके पीछे महात्मा जी का आसन। एक पल को तो ऐसा लगा जैसे कि गांधी जी अभी इस आसन पर बैठने के लिए आने वाले हों।


अन्दर गया तो एक अल्मारी में करीने से रखे हुए थे गान्धी जी के किचन के कुछ बर्तन।


छोटी हबेलीनुमा इस भवन में माता कस्तूरबा का कमरा भी देखा जिसके बाहर उनकी फोटो आज भी लगी हुई है।


इसके बगल में ही अतिथियों के लिए भी एक कमरा बना है।


इसके बाद बाहर निकले तो विनोबा जी की कुटी दिखाई पड़ी। इसे भी आज तक मूल रूप में ही सँवारा हुआ है।



आश्रम के पहले गेट के साथ ही गुजरात हरितन सेवक संघ का कार्यालय आज भी विराजमान है।



आश्रम के साथ ही साबर नदी की धारा भी बहती दिखाई दी। लेकिन प्रदूषण के मारे उसका भी बुरा हाल देखा।



कुल मिला कर यह लगा कि आश्रम में आने पर आज भी शान्ति मिलती है।

सच पूछा जाये तो अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे बने आश्रम में आज भी मोहनदास कर्मचन्द गांधी की आत्मा बसती है।

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।