♥ फोटोफीचर ♥
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आज से 36 साल पहले भी मेरी यही छोटी सी दुनिया थी
और आज भी यही है! अन्तर इतना आया है कि
अब बेटे के भी दो बच्चे प्रांजल ओर प्राची हैं।
मेरे सिर पर माता-पिता जी का साया तब भी था
और आज भी है!
छोटा पुत्र विनीत और बड़ा पुत्र नितिन
अपनी मम्मी को बहुत चाहते हैं
बाबा जी को भी अपने पौत्रों पर नाज़ है
पुत्रवधु भी अच्छी मिली है!
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सन् 1989 का जून जुलाई का महीना मेरे जीवन के लिए
आज भी अविस्मरणीय है!
बाबा नागार्जुन को स्कूटर पर बैठाकर सैर कराना!
कुछ अपनी कहना और कुछ उनकी सुनना!
बाबा के पास लोगों के मिलने का ताँता लगा रहता था!
सारा परिवार बाबा के साथ बहुत खुश रहता था!
मेरे पिता जी श्री घासीराम आर्य
और दोनों पुत्रों के साथ बाबा घूम भी लेते थे!
बच्चों से तो बाबा बहुत घुल-मिल जाते थे!
इस दौरान कई कवि गोष्ठिया भी
बाबा के् सम्मान में आयोजित की गईं!
बाबा को शॉल और मालाओं से
सम्मानित भी तो किया गया था!
मुझे आज भी याद है कि खटीमा बस स्टेशन पर
मैं ही बाबा को दिल्ली की बस में बैठाने आया था!
यह है बाबा का पत्र मेरे नाम
जो उन्होंने दिल्ली से मुझे लिखा था!
आर्य समाज के बारे में बाबा का क्या मत था!
यह आलेख मैंने "उत्तर-उजाला" में लिखा था!
सदी के जनकवि और साहित्यकार
बाबा नागार्जुन को मैं
बाबा नागार्जुन को मैं
उनकी 101वीं जयन्ती पर
कोटि-कोटि नमन करता हूँ!