फ़ॉलोअर

आलेख लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आलेख लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, मार्च 19, 2020

आलेख ‘‘हिन्दी संयुक्ताक्षर’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

         यदि संयुक्ताक्षर शब्द के अर्थ पर ध्यान दें तो संयुक्त + अक्षर। अर्थात् दो या दो से अधिक अक्षरों के मेल से बने अक्षरों को संयुक्ताक्षर कहते हैं।
         देखने में यह आया है कि विद्वानों ने ‘‘क्ष’’ ‘‘त्र’’ ‘‘ज्ञ’’ को तो हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित करके या तो इन्हें प्रिय मान लिया है या इन्हें संयुक्ताक्षर की परिधि से पृथक कर दिया है। यह मैं आज तक समझ नही पाया हूँ। जबकि संयुक्ताक्षरों की तो हिन्दी में भरमार है। फिर ‘‘क्ष’’ ‘‘त्र’’ ‘‘ज्ञ’’ को हिन्दी वर्णमाला में क्यों पढ़ाया जा रहा है?
        कहने का तात्पर्य यह है कि हिन्दी का ज्ञान प्राप्त करने वाला विद्यार्थी कभी इनकी तह में जाने का प्रयास ही नही करता है। इसीलिए आज इनका उच्चारण भी दूषित हो गया है।
क् + ष = क्षइसका उच्चारण आज ‘‘’’ ही होने लगा है।
त् + र = त्रइसकी सन्धि पर किसी का ध्यान ही नही है और
ज् + ञ = ज्ञ,
      सबसे अधिक दयनीय स्थिति तो ‘‘ज्ञ’’ की है।
        ‘‘
ज्ञ’’ का उच्चारण तो लगभग ९९ प्रतिशत लोग ‘‘ग्य’’ के रूप में करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि यह पढ़े-लिखे लोग हिन्दी की वैज्ञानिकता को झुठलाने लगे हैं।
       आखिर इस स्थिति का जिम्मेदार कौन हैं?
        मैं इसका यदि सीधा-सपाट उत्तर दूँ तो इसकी जिम्मेदार केवल और केवल ‘‘अंग्रेजी’’ है।
         उदाहरण के लिए यदि ‘‘विज्ञान’’ को रोमन अंग्रेजी में लिखा जाये तो VIGYAN विग्यान ही लिखा जायेगा। यही हमारे रोम-रोम में व्याप्त हो गया है।
आज आवश्यकता है कि हिन्दी वर्णमाला में से ‘‘क्ष’’ ‘‘त्र’’ ‘‘ज्ञ’’ संयुक्ताक्षरों को बाहर कर दिया जाये। तभी तो संयुक्ताक्षरों का मर्म हिन्दी शिक्षार्थियों की समझ में आयेगा।
        तब अन्य संयुक्ताक्षरों के साथ -
घ् + र = घ्रघ् + न = घ्नष् + ट = ष्टआदि के साथ
क + ष = क्षत् + र = त्रज् + ञ = ज्ञ और श् + र = श्र
सिखाने का प्रयास होना चाहिए।

शनिवार, मई 21, 2016

"गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग"

भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की। बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
·         सम्यक ज्ञान
बुद्ध के अनुसार धम्म है: -
·         जीवन की पवित्रता बनाए रखना
·         जीवन में पूर्णता प्राप्त करना
·         निर्वाण प्राप्त करना
·         तृष्णा का त्याग
·         यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं
·         कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का आधार मानना
बुद्ध के अनुसार अ-धम्म है: -
·         परा-प्रकृति में विश्वास करना
·         आत्मा में विश्वास करना
·         कल्पना-आधारित विश्वास मानना
·         धर्म की पुस्तकों का वाचन मात्र
बुद्ध के अनुसार सद्धम्म क्या है: -
1. जो धम्म प्रज्ञा की वृद्धि करे--
·         जो धम्म सबके लिए ज्ञान के द्वार खोल दे
·         जो धम्म यह बताए कि केवल विद्वान होना पर्याप्त नहीं है
·         जो धम्म यह बताए कि आवश्यकता प्रज्ञा प्राप्त करने की है
2. जो धम्म मैत्री की वृद्धि करे--
·         जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा भी पर्याप्त नहीं है, इसके साथ शील भी अनिवार्य है
·         जो धम्म यह बताए कि प्रज्ञा और शील के साथ-साथ करुणा का होना भी अनिवार्य है
·         जो धम्म यह बताए कि करुणा से भी अधिक मैत्री की आवश्यकता है।
3. जब वह सभी प्रकार के सामाजिक भेदभावों को मिटा दे
·         जब वह आदमी और आदमी के बीच की सभी दीवारों को गिरा दे
·         जब वह बताए कि आदमी का मूल्यांकन जन्म से नहीं कर्म से किया जाए
·         जब वह आदमी-आदमी के बीच समानता के भाव की वृद्धि करे
(विकीपीडिया से साभार)

शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

"सावधान रहें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


स्वास्थ्यवर्धक के नाम पर लूट!
आदरणीय स्वामी जी!
    आपकी बात मानकर मैं स्थानीय पतंजलि क्रयकेन्द्र पर गया तो वहाँ 5 अनाजों से निर्मित स्वास्थ्यवर्धक आटो का दाम पचास रुपये किलो था। इससे मेरा माथा ठनका कि चना के छोड़कर ज्वार, बाजरा. मक्की तो गेहूँ से कम दाम वाले अनाज हैं, फिर स्वास्थ्यवर्धक के नाम से बिकने वाला आटा इतना मँहगा कैसे हो गया?
   हम लोग चक्की का पिसा शुद्ध गेहूँ का आटा 17 रु. किलो लाते हैं और ब्राण्डेड पैक आटा 18 रुपये किलो के हिसाब से मिलता है।
मैंने बाजार से 2 किलो बाजरा 24 रुपये में, 2 किलो मक्का 24 रुपये में, 2 किलो ज्वार 20 रुपये में और दो किलो चना 90 रुपये में खरी दा और इसमें 15 रुपये किलो के भाव से 10 किलो गेहूँ 150 रुपये में खरीद कर मिलया। पिसाई के 40 रुपये भी इसमें जोड़ दे तो 20 किलो आटे का दाम 348 रुपये ही हुआ। जिसकी शुध्दता की भी गारंटी है। अर्थात यह स्वास्थ्यवर्धक आटा मुझे 17 रुपये पचास पैसे किलो पड़ा। फिर आपका यही आटा पचास रुपये किलो कैसे हो गया? क्या आम आदमी के बजट का यह आटा है? स्वास्थ्यवर्धक नाम पर 50रुपये किलो आटा बेचना तो सरासर लूट है। क्या यही स्वदेशी आन्दोलन है। यह तो वही बात हुई कि स्वदेशी पहनो और गांधी जी के नाम से चल रहे श्री गान्धी आश्रम में अपनी जेब कटावा कर घर आ जाओ।
    आप राजनीतिक दलों को भ्रष्ट करार देते हैं लेकिन नैतिकता की आड़ में आप सन्यासी होकर अन्धाधुऩ्ध कमाई करने में लगे हो।
आप भी तो जनता की भावनाओं को भुनाकर अपने बन्धु-बान्धवों को सीधे रूप में धनवान बनाने में तुले हो! फिर क्या अन्तर रह जाता है आपमें और आपके द्वारा कथित भ्रष्ट राजनेताओं में।
स्वामी जी! 
    मैं आप अपने प्रवचन में अक्सर कहते हैं कि आपने घोर गीपबी का जीवन जिया है। लेकिन अब आपके पास परोक्षरूप में अकूत सम्पत्ति है। इसका राज़ मेरी तो समझ में अब खूब आ गया है। बहुत से उद्योगों का स्वामी आपका ट्रस्ट है। विशाल और भव्य पतंजलि योग संस्थान का भवन इसका गवाह है। जहाँ अपने इलाज के लिए जाने वाले रोगियों के लिए होटलों से भी मँहगे हैं। जिनमें ठहरना आप आदमी के बस की बात नहीं है। आपने गरीवी देखी है तो गरीबों के लिए इस चिकित्सापीठ में कौन सी सुविधा प्रदत्त है। मैंने आपके चिकित्सकों और कर्मचारियों का भी व्यवहार देखा है। जहाँ आम आदमी को दुत्कार धनवानों को प्यार के अलावा कुछ भी तो नहीं है।
    अब समय आ गया है कि जनता कथित भ्रष्ट नेताओं से तो सावधान हो ही और साथ में आपके जैसे गेरुए वस्त्रधारी बाबाओं से भी सावधान रहें!

शनिवार, जुलाई 28, 2012

"उज्जवला की बातें करें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मा. पं. नारायणदत्त तिवारी जी को मैं अपना राजनीतिक गुरू मानता हूँ। सभी लोग जानते हैं कि उन्होने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया।
     इसके बाद उन्होंने आजाद भारत की सियासत में पदार्पण किया। वे उत्तर-प्रदेश जैसे बड़े राज्य के तीन बार मुख्यमन्त्री रहे, केन्द्र सरकार में भी विभिन्न प्रमुख मन्त्रालयों के वे मन्त्री रहे। उनके लम्बे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उत्तराखण्ड का भी मुख्यमन्त्री बनाया, जिसे उन्होंने तमाम अन्तरविरोधों को झेलते हुए अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल को बखूबी निभाया। जीवन के अन्तिम पड़ाव में उन्होंने आन्ध्र-प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के भी पद को सुशोभित किया। अतः तिवारी जी की राजनीति का वटवृक्ष कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि पं. नारायणदत्त तिवारी जैसा विनम्र राजनीतिज्ञ लाखों में एक होता है।
    जो घटनाक्रम तिवारी जी के साथ हुआ वह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि लोगों में सहिष्णुता नाम की कोई चीज रह ही नहीं गयी है। अगर अतीत में झाँककर देखा जाये तो देवता और ईश्वर की संज्ञा को धारे हुए लोग भी काम के वशीभूत होकर ऐसे कर्मों में लिप्त रहे हैं। यदि तब से लेकर अब तक का आकलन किया जाये तो कौरव-पाण्डव, ऋषिविश्वामित्र, सूर्यभगवान और कुन्ती आदि भी इसमें लिप्त पाये गये हैं।
आजाद भारत की राजनीति की बात करें तो पं. नेहरू और उनकी सारी पीढ़ियाँ, अटल बिहारी वाजपेई, मुलायमसिंह यादव, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, माधवराव सिंधिया आदि (किस-किसके नाम लूँ) के किस्से किसी से छिपे नहीं है। उद्योगपतियों और फ़िल्मी सितारों की बाते भी किसी से छिपी नहीं हैं।
    अब स्व.शेरसिंह की पुत्री उज्जवला की बात करें तो सरासर गलती उज्जवला की ही है। एक शादीशुदा महिला ने उस समय के जाने-माने राजनीतिज्ञ को अपने जाल में फँसाया और उसके साथ हमबिस्तर हुई। क्या यह सच नहीं है। क्या तिवारी उसके घर बलात्कार करने गया था। इस सेक्स के खेल में यदि सन्तान हो गई तो गलती किसकी है।
   यदि इस कड़ी में पत्रकार दयानन्द पाण्डेय जी के लेख का कुछ अंश इसमें मिल करूँ तो कोई विसंगति नहीं होगी-
   माफ़ कीजिए उज्वला जी, आप किसी से अपने बेटे का पितृत्व भी मांगेंगी और उस की पगडी भी उछालेंगी? यह दोनों काम एक साथ तो हो नहीं सकता। लेकिन जैसे इंतिहा यही भर नहीं थी। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी को भी आप ने बार-बार अपमानित किया। बांझ तक कहने से नहीं चूकीं। आप को पता ही रहा होगा कि सुशीला जी कितनी लोकप्रिय डाक्टर थीं। बतौर गाइनाकालोजिस्ट उन्हों ने कितनी ही माताओं और शिशुओं को जीवन दिया है। यह आप क्या जानें भला? रही बात उन के मातृत्व की तो यह तो प्रकृति की बात है। ठीक वैसे ही जैसे आप को आप के पति बी.पी. शर्मा मां बनने का सुख नहीं दे पाए और आप को मां बनने के लिए तिवारी जी की मदद लेनी पड़ी।
खैर, हद तो तब हो गई कि जब आप एक बार लखनऊ पधारीं। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी का निधन हुआ था। तेरही का कार्यक्रम चल रहा था। आप भरी सभा में हंगामा काटने लगीं। कि पूजा में तिवारी जी के बगल में उन के साथ-साथ आप भी बैठेंगी। बतौर पत्नी। और पूजा करेंगी। अब इस का क्या औचित्य था भला? सिवाय तिवारी जी को बदनाम करने, उन पर लांछन लगाने, उन को अपमानित और प्रताणित करने के अलावा और भी कोई मकसद हो सकता था क्या? क्या तो आप अपना हक चाहती थीं? ऐसे और इस तरह हक मिलता है भला? कि एक आदमी अपनी पत्नी का श्राद्ध करने में लगा हो और आप कहें कि पूजा में बतौर पत्नी हम भी साथ में बैठेंगे !
उज्वला जी, आप से यह पूछते हुए थोड़ी झिझक होती है। फिर भी पूछ रहा हूं कि क्या आप ने नारायणदत्त तिवारी नाम के व्यक्ति से सचमुच कभी प्रेम किया भी था? या सिर्फ़ देह जी थी, स्वार्थ ही जिया था? सच मानिए अगर आप ने एक क्षण भी प्रेम किया होता तिवारी जी से तो तिवारी जी के साथ यह सारी नौटंकी तो हर्गिज़ नहीं करतीं जो आप कर रही हैं। जो लोगों के उकसावे पर आप कर रही हैं। पहले नरसिंहा राव और उन की मंडली की शह थी आप को। अब हरीश रावत और अहमद पटेल जैसे लोगों की शह पर आप तिवारी जी की इज़्ज़त के साथ खेल रही हैं। बताइए कि आप कहती हैं और ताल ठोंक कर कहती हैं कि आप तिवारी जी से प्रेम करती थीं। और जब डाक्टरों की टीम के साथ दल-बल ले कर आप तिवारी जी के घर पहुंचती हैं तो इतना सब हो जाने के बाद भी सदाशयतावश आप और आप के बेटे को भी जलपान के लिए तिवारी जी आग्रह करते हैं। आप मां बेटे जलपान तो नहीं ही लेते, बाहर आ कर मीडिया को बयान देते हैं और पूरी बेशर्मी से देते हैं कि जलपान इस लिए नहीं लिया कि उस में जहर था। बताइए टीम के बाकी लोगों ने भी जलपान किया। उन के जलपान में जहर नहीं था, और आप दोनों के जलपान में जहर था? नहीं करना था जलपान तो नहीं करतीं पर यह बयान भी ज़रुरी था?
क्या इस को ही प्रेम कहते हैं?”

रविवार, जनवरी 29, 2012

"चुनाव लड़ना आम आदमी के बस की बात है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

चुनाव लड़ना क्या आम आदमी के बस की बात है?
मेरे विचार से तो बिल्कुल नहीं! 
   क्योंकि वार्ड मेम्बर से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के चुनाव में धन का जिस प्रकार से खुला खेल होता है उसे दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतन्त्र का ईमानदार व्यक्ति झेल ही नहीं सकता। कारण यह है कि आम आदमी के पास इतना धन चुनाव के लिए होता ही नहीं है।
    साफ-सुथरे और निष्पक्ष चुनाव होने का दावा निर्वाचन आयोग करता तो है मगर उसमें मेरे विचार से एक प्रतिशत सच्चाई भी नहीं है। यद्यपि निर्वाचन आयोग ने अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करते हुए अब काफी कठोर कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। मगर इन नियम-कानूनों की धज्जियाँ भी प्रत्याशियों द्वारा खुले आम उड़ाई जाती ही हैं।
    आज विधान सभा के चुनाव के लिए एक प्रत्याशी द्वारा खर्च की अधिकतम धनराशि ग्यारह लाख तय की हुई है। लेकिन मैंने देखा है कि यहाँ धनवान और बाहूबली प्रत्याशियों द्वारा इससे कई गुना धन खर्च किया जाता है वहीं निर्धन और ईमानदार प्रत्याशी अपना घर-मकान और जमीन तक भी गिरवी रख कर और ग्यारह लाख खर्च करके भी चुनाव नहीं जीत पाता है।
    सुना तो यह है कि मान्यता प्राप्त राष्ट्रीयदल अपने प्रत्याशी को ग्यारह लाख नकद धनराशि तो देती ही हैं इसके अलावा इससे कई गुना खर्च वो विज्ञापनों और चुनाव प्रचार सामग्री में ही चुनाव की भेंट चढ़ा देती हैं। इसके साथ-साथ सत्ताधारी दल की सहायता परदे के पीछे से उद्योगपति भी करते ही हैं।
    आम आदमी किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिक सदस्यता इसीलिए ग्रहण करता है कि किसी दिन उसकी भी बारी आयेगी और वो भी चुनाव लड़कर सदन में जायेगा। मगर देखा यह गया है कि हर बार मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल अपने पुराने दिग्गजों को ही चुनाव मैदान में उतारते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि एक व्यक्ति को केवल एक बार ही चुनाव लड़ने का मौका दिया जाना चाहिए। इससे न तो वंशवाद का ठप्पा किसी दल पर लगेगा और न ही भ्रष्ट लोग शासन में आयेंगे।
    आज हमारे जाने-माने सन्त और सामाजिकता का झण्डा लहराने वाले सामाजिक लोग कभी लोकपाल की बात करते हैं और कभी विदेशों में काले धन को वापिस लाने की बात करते हैं।
    मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि वो यह आवाज क्यों नहीं उठाते कि एक व्यक्ति को केवल एक बार ही चुनाव लड़ने दिया जाए।
    माना कि बड़ी दिक्कतें आयेगी जो यह होंगी कि नये चेहरों को सदन चलाने का प्रशिक्षण कौन देगा? लेकिन इसके लिए भी उपाय है कि दस प्रतिशत साफ-सुथरी छवि के ईमानदार और कानूनविद् लोगों को मनोनीत किया जाए जो नये विधायकों और सांसदों को प्रशिक्षित करें।
    चुनाव कराना सरकार का काम है और इस काम को अंजाम देता है निर्वाचन आयोग!
     अतः निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह निर्धारित तिथि को प्रत्याशियों के  नामांकन कराते ही उनसे चुनाव प्रचार के लिए आवश्यक धनराशि जमा करा ले। इसके बाद इन प्रत्याशियों को अपने अधीन करके चुनाव सम्पन्न होने तक देश या विदेश के ऐसे भाग में भेज दिया जाए जहाँ से यह लोग मतदाताओं के सम्पर्क में विल्कुल भी न रहें।
     आयोग द्वारा इनके द्वारा जमा की गई धनराशि से समानरूप से स्वयं प्रचार कराया जाए। क्योंकि आज भारत की जनता साक्षर है। उसे अपने विवेक से वोट करने की सुविधा दी जानी चाहिए।
     इसके बाद जो व्यक्ति सरकार की सदन में आयेंगे वो वास्तव में जनता के प्रतिनिधि होंगे। फिर न तो प्रत्याशी के 11 लाख खर्च होंगे और नही कोई फर्जी हिसाब बनाने को बाध्य होना पड़ेगा। आज जाहे कितनी भी मँहगाई की मार हो लेकिन मैं समझता हूँ कि दो लाख रुपयों में चुनाव आयोग प्रत्याशी के चुनाव को अपने सरकारी स्तर से सम्पन्न करा सकता है।
     आशान्वित हूँ कि कभी ऐसा समय भी अवश्य आयेगा ही।

बुधवार, सितंबर 14, 2011

"आज हिन्दी दिवस है!" (प्रस्तोता- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आज हिन्दी दिवस है!

प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को भारत के लोग हिन्दी दिवस मनाते हैं और हिन्दी के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट कर देते हैं। उसके बाद पूरे साल वही गिटर-पिटर का टर-टर स्वर आलापते रहते हैं।

आज से 62 वर्ष पूर्व जब महात्मा गांधी जीवित थे 14 सितम्बर, 1949 को भारत की संविधन सभा ने एक मत से निर्णय लिया था कि हिन्दी भारत की राजभाषा कहलाएगी।
इस निर्णय पर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस मनाया जाने लगा।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है:
संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
संविधान में राजभाषा के सम्बन्ध में धारा ३४३ से ३५२ तक की व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अब हमारी मानसिक दासता को उजागर करता हुआ यह पक्ष भी देख लीजिए!
संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं । {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
स्वतन्त्रता से पूर्व की गतिविधियाँ
1833-86 : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा।
1872 : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि दयानंद सरस्वती जी कलकत्ता में केशवचन्द्र सेन से मिले तो उन्होने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि आप संस्कृत छोडकर हिन्दी बोलना आरम्भ कर दें तो भारत का असीम कल्याण हो। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा हिन्दी हो गयी और शायद इसी कारण स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भाषा भी हिन्दी ही रखी।
1873: महेन्द्र भट्टाचार्य द्वारा पदार्थ विज्ञान की रचना
1877 : श्रद्धाराम फिल्लौरी ने भाग्यवती नामक हिन्दी उपन्यास की रचना की।
1918 : मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से घोषित किया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी।
1918 : महात्मा गांधी द्वारा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना
1930 का दशक : हिन्दी टाइपराइटर का विकास (शैलेन्द्र मेहता)
1935 : मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रूप में सी० राजगोपालाचारी ने हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।
स्वतन्त्रता के बाद की गतिविधियाँ
14.9.1949
संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया । इस दिन को अब हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
26.1.1950
संविधान लागू हुआ। तदनुसार उसमें किए गए भाषाई प्रावधान(अनुच्छेद 120, 210 तथा 343 से 351) लागू हुए ।
1952
शिक्षा मंत्रालय द्वारा हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण ऐच्छिक तौर पर प्रारम्भ किया गया ।
27.5.1952
राज्यपालों/उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा व भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप के अतिरिक्त अंकों के देवनागरी स्वरूप का प्रयोग प्राधिकृत किया गया ।
जुलाई, 1955
हिन्दी शिक्षण योजना की स्थापना । केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, संबद्ध व अधीनस्थ कर्मचारियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण ।
7.6.1955
बी.जी. खेर आयोग का गठन (संवधान के अनुच्छेद 344 (1) के अन्तर्गत)
अक्तूबर,1955
गृह मंत्रालय के अन्तर्गत हिन्दी शिक्षण योजना प्रारम्भ की गई ।
3.12.1955
संविधान के अनुच्छेद 343 ( 2) के परन्तुक द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए संघ के कुछ कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का प्रयोग किए जाने के आदेश जारी किए गए ।
31.7.1956
खेर आयोग की रिपोर्ट राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की गई ।
1957
खेर आयोग की रिपोर्ट पर विचार हेतु तत्कालीन गृह मंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत की अध्यक्षता में संसदीय समिति का गठन ।
8.2.1959
संविधान के अनुच्छेद 344 (4) के अन्तर्गत संसदीय समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत की गई ।
सितम्बर, 1959
संसदीय समिति की रिपोर्ट पर संसद में बहस । तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा आश्र्वासन दिया गया कि अंग्रेजी को सह-भाषा के रूप में प्रयोग में लाए जाने हेतु कोई व्यावधान उत्पन्न नहीं किया जाएगा और न ही इसके लिए कोई समय-सीमा ही निर्धारित की जाएगी । भारत की सभी भाषाएं समान रूप से आदरणीय हैं और ये हमारी राष्ट्रभाषाएं हैं ।
1960
हिन्दी टंकण, हिन्दी आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण आरम्भ किया गया ।
27.4.1960
संसदीय समिति की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति के आदेश जारी किए गए जिनमें हिन्दी शब्दावलियों का निर्माण, संहिताओं व कार्यविधिक साहित्य का हिंदी अनुवाद, कर्मचारियों को हिंदी का प्रशिक्षण, हिंदी प्रचार, विधेयकों की भाषा, उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों की भाषा आदि मुद्दे हैं ।
10.5.1963
अनुच्छेद 343(3) के प्रावधान व श्री जवाहर लाल नेहरू के आवासन को ध्यान में रखते हुए राजभाषा अनयम बनाया गया । इसके अनुसार हन्दी संघ की राजभाषा व अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में प्रयोग में लाई गई ।
5.9.1967
प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय हिन्दी समिति का गठन किया गया । यह समिति सरकार की राजभाषा नीति के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निदेश देने वाली सर्वोच्च समिति है । इस समिति में प्रधानमंत्री जी के अलावा नामित केन्द्रीय मंत्री, कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री, सांसद तथा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के विद्वान सदस्य के रूप में शामिल किए जाते हैं ।
16.12.1967
संसद के दोनों सदनों द्वारा राजभाषा संकल्प पारित किया गया जिसमें हिन्दी के राजकीय प्रयोजनों हेतु उत्तरोत्तर प्रयोग के लिए अधिक गहन और व्यापक कार्यक्रम तैयार करने, प्रगति की समीक्षा के लिए वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने, हिन्दी के साथ -साथ 8वीं अनुसूची की अन्य भाषाओं के समन्वित विकास के लिए कार्यक्रम तैयार करने, त्रिभाषा सूत्र का अपनाये जाने, संघ सेवाओं के लिए भर्ती के समय हिन्दी व अंग्रेजी में से किसी एक के ज्ञान की आवश्यकता अपेक्षित होने तथा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उचित समय पर परीक्षा के लिए संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की बात कही गई है । (संकल्प 18.8,1968 को प्रकाशित हुआ)
1967
सिंधी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित की गई ।
8.1.1968
राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन कए गए । तदनुसार धारा 3 (4) में यह प्रावधान कया गया कि हिंदी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण संघ सरकार के कर्मचारी प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें तथा केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं हैं, उनका कोई अहित न हो । धारा 3 (5) के अनुसार संघ के राजकीय प्रयोजनों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए आवयक है कि सभी राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा( जिनकी राजभाषा हिंदी नहीं है ) ऐसे संकल्प पारित कए जाएं तथा उन संकल्पों पर विचार करने के पश्चात अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त करने के लिए संसद के हरेक सदन द्वारा संकल्प पारित कया जाए ।
1968
राजभाषा संकल्प 1968 में किए गए प्रावधान के अनुसार वर्ष 1968-69 से राजभाषा हिन्दी में कार्य करने के लिए विभिन्न मदों के लक्ष्य निर्धारित किए गए तथा इसके लिए वार्षिक कार्यक्रम तैयार किया गया ।
1.3.1971
केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन ।
1973
केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो के दिल्ली स्थिति मुख्यालय में एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना ।
1974
तीसरी श्रेणी के नीचे के कर्मचारियों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों तथा कार्य प्रभारित कर्मचारियों को छोड़कर केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ केन्द्र सरकार के स्वामित्व एवं नियंत्रणाधीन निगमों, उपक्रमों, बैंकों आदि के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए हिन्दी भाषा, टंकण एवं आशुलिपि का अनिवार्य प्रशिक्षण ।
जून, 1975
राजभाषा से संबंधित संवैधानिक, विधिक उपबंधों के कार्यान्वयन हेतु राजभाषा विभाग का गठन किया गया ।
1976
राजभाषा नियम बनाए गए ।
1976
संसदीय राजभाषा समिति का गठन । तब से अब तक समिति ने अपनी रिपोर्ट के 8 भाग प्रस्तुत किए हैं जिनमें से प्रथम 7 पर राष्ट्रपति के आदेश जारी हो गए हैं । आठवें खण्ड में की गई संस्तुतियों पर मंत्रालयों व राज्य सरकारों की टिप्पणी प्राप्त की जा रही है ।
1977
श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन विदेश मंत्री ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को हिंदी में संबोधित किया ।
1981
केन्द्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग का गठन किया गय ।
25.10.1983
केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों, विभागों, सरकारी उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों में यांत्रिक और इलेक्ट्रानिक उपकरणों द्वारा हिन्दी में कार्य को बढ़ावा देने तथा उपलब्ध द्विभाषी उपकरणों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से राजभाषा विभाग में तकनीकी कक्ष की स्थापना की गई ।
21.8.1985
केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान का गठन कर्मचारियों/अधिकारियों को हिन्दी भाषा, हिन्दी टंकण और हिन्दी आशुलिपि के पूर्णकालिक गहन प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए किया गया ।
1986
कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट। 1968 में पहले ही यह सिफारिश की जा चुकी थी कि भारत में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं होनी चाहिए । उच्च शिक्षा के माध्यम के संबंध में नई शिक्षा नीति (1986) के कार्यान्वयन - कार्यक्रम में कहा गया - स्कूल स्तर पर आधुनिक भारतीय भाषाएं पहले ही शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयुक्त हो रही हैं । आवश्यकता इस बात की है  विश्वविद्यालय के स्तर पर भी इन्हें उत्तरोत्तर माध्यम के रूप में अपना लया जाए । इसके लिए अपेक्षा यह है कि राज्य सरकारें, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से परामर्श करके, सभी विषयों में और सभी स्तरों पर शिक्षण माध्यम के रूप में उत्तरोत्तर आधुनिक भारतीय भाषाओं को अपनाएं।
1986-87
इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्रारम्भ किए गए ।
9.10.1987
राजभाषा नियम, 1976 में संशोधन किए गए ।
1988
विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली में तत्कालीन विदेश मंत्री श्री नरसिंह राव जी हिंदी में बोले ।
1992
कोंकणी, मणिपुरी  नेपाली भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित की गई ।
14.9.1999
संघ की राजभाषा हिंदी की स्वर्ण जयंती मनाई गई ।
24.1.2000
राजभाषा विभाग का पोर्टल का लोकार्पण माननीय गृह मंत्री जी द्वारा किया गया जिसमें विभाग से संबंधत विभिन्न जानकारियां द्विभाषिक रूप में उपलब्ध कराई गई ।
20.10.2000
राष्ट्रीय ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार वर्ष 2001-02 से आरंभ करने की घोषणा की गई जिसमें निम्न पुरस्कार राशियां हैं :-
(1) प्रथम प्ररस्कार - 100000 रुपये
(2) ‡द्वतीय प्ररस्कार - 75000 रुपये
(3) तृतीय पुरस्कार - 50000 रुपये
(4) 10 सांत्वना पुरस्कार - 100000 रुपये
2.9.2003
डॉ. सीता कान्त महापात्र की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जो संविधान की आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को सम्मिलित किए जाने तथा आठवीं अनुसूची में सभी भाषाओं को संघ की राजभाषा घोषित किए जाने की साध्यता परखने पर विचार करेगी । समिति ने 14.6.2004 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की ।
11.9.2003
मंत्रिमंडल ने एन.डी.ए. तथा सी.डी.एस. की परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों को हिंदी में भी तैयार करने का निर्णय लिया ।
14.9.2003
कंप्यूटर की सहायता से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए राजभाषा विभाग ने कंप्यूटर प्रोग्राम (लीला हिंदी प्रबोध, लीला हिंदी प्रवीण, लीला हिंदी प्राज्ञ ) तैयार करवा कर सर्व साधारण द्वारा उसका निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया है।
8.1.2004
बोडो, डोगरी, मैथिली तथा सांथाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में रखा ।
22.7.2004
केन्द्रीय सरकार की राजभाषा नीति के अनुपालन /कार्यान्वयन के लिए न्यूनतम हिन्दी पदों के मानक पुन निर्धारित ।
6.9.2004
मातृभाषा विकास परिषद् द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह पाया कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के गठन का उद्देश्य हिंदी एवं अन्य आधुनिक भाषाओं के लिए तकनीकी शब्दावली में एकरूपता अपनाया जाना है। यह एकरूपता तकनीकी शब्दावली के प्रयोग के लिए आवश्यक है । उच्चतम न्यायालय ने निदेश दिया कि आयोग द्वारा बनाई गई तकनीकी शब्दावली भारत सरकार के अंतर्गत एन.सी.ई.आर.टी तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं द्वारा तैयार की जा रही पाठय पुस्तकों में प्रयोग में लाई जाए ।
14.9.2004
कंप्यूटर की सहायता से तमिल, तेलुगू, मलयालम तथा कन्नड़ भाषाओं के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करवा कर उसके निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
20.6.2005
525 हिंदी फोंट, फोंट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी - हिंदी शब्दकोश, हिंदी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लए वेब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया । इन्हें http://ildc.in <http://ildc.gov.in/> से डाउनलोड किया जा सकता है ।
8.8.2005
राष्ट्रीय ज्ञान-वज्ञान मौलक पुस्तक लेखन पुरस्कार का नाम बदल कर राजीव गांधी राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार कर दिया गया तथा पुरस्कार राशि बढ़ा कर निम्न प्रकार कर दी गई :-
प्रथम पुरस्कार - रू० 2 लाख
द्वितीय पुरस्कार - रू० 1.25 लाख
तृतीय पुरस्कार - रू० 0.75 लाख
सांत्वना पुरस्कार (10) - रू० 10 हजार प्रत्येक को
यह योजना वर्ष 2004-95 में प्रकाशित पुस्तकों से लागू होगी ।
14.9.2005
कंप्यूटर की सहायता से बांगला भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया ।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर प्रशासनिक एवं वित्तिय क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
14.9.2006
कंप्यूटर की सहायता से उड़िया, असमी, मणिपुरी तथा मराठी भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर लघु उद्योग एवं कृषि क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
14.9.2007
कंप्यूटर की सहायता से नेपाली, पंजाबी, कश्मीरी तथा गुजराती भाषा के माध्यम से प्रबोध, प्रवीण तथा प्राज्ञ स्तर की हिंदी स्वयं सीखने के लिए प्रोग्राम तैयार करवा कर राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर सूचना-प्रौद्योगिकी एवं स्वास्थ्य सुरक्षा क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया ।
श्रुतलेखन-राजभाषा (हिंदी स्पीच से हिंदी टेक्सट) अंतिम वर्जन जन-प्रयोग के लिए मार्किट में बिक्री के लिए उपलब्ध है ।
(विकीपीडिया से साभार)

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।