चन्दा में चाहे कितने ही, धब्बे काले-काले हों।
सूरज में चाहे कितने ही, सुख के भरे उजाले हों।
लेकिन वो चन्दा जैसी शीतलता नही दे पायेगा।
अन्तर के अनुभावों में, कोमलता नही दे पायेगा।।
सूरज में है तपन, चाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।
प्रेम-प्रीत के सम्वादों की, गुंजन वन्दन जैसी है।।
सूरज छा जाने पर पक्षी, नीड़ छोड़ उड़ जाते हैं।
चन्दा के आने पर, फिर अपने घर वापिस आते हैं।।
सूरज सिर्फ काम देता है, चन्दा देता है विश्राम।
तन और मन को निशा-काल में, मिलता है पूरा आराम।।