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रविवार, अप्रैल 11, 2010

“यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“ब्लॉगिंग छोड़नी ही पड़ेगी लेकिन..”

जी हाँ यह शाश्वत सत्य है कि
एक दिन ब्लॉगिंग ही नही
दुनिया भी छोड़नी पड़ेगी!
लेकिन
मैं ढिंढोरा पीटकर नहीं छोड़ूँगा!
आये थे अपनी मर्जी से
बिना शोर-शराबे के
और बिना किसी को बताए हुए !
भई हम तो जब जायेंगे
बिना किसी शोर शराबे के ही चले जायेंगे!
न कोई मुहूर्त
और न कोई दिन बार!
न त्याग पत्र देंगे
और न ही किसी को कोई सूचना देंगे!
न कोई स्वागत करेगा
और न ही कोई भाव-भीनी विदाई देगा!
मैंने ब्लॉग जगत में कई बार पढ़ा है कि
अमुक ब्लॉगर ने ब्लॉगिंग छोड़ने की घोषणा कर दी है!
लेकिन एक विदेशी मूल की महिला की भाँति कोई भी अपने निर्णय पर अडिग नही रह सका!

परन्तु हम तो-
जब मन होगा आयेंगे
और जब मन होगा जायेंगे!
यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है!


ये ज़िंदगी के मेले
दुनिया में कम न होंगे,
अफ़सोस हम न होंगे

सोमवार, दिसंबर 21, 2009

"तिजोरी आपकी है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

कोठी-कुठले सभी तुम्हारे,
चाबी को मत हाथ लगाना।
सुख हैं सारे साथ हमारे,
तुम दुख में मुस्काते रहना।।
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इशारों-इशारों में हम कह रहे हैं,
अगर हो सके तो इशारे समझना।

मेरे भाव अल्फाज बन बह रहे हैं,
नजाकत समझना नजारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।
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हमारी वेदना यह है कि हमने एक घर में साझा कर लिया। बहुत से सुनहरी स्वप्न सजाए। घर को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। लेकिन आज भी हम अपने साझीदार के लिए सिर्फ और सिर्फ कमाने की मशीन हैं। यानि सबसे ज्याद मेंहनत हमने ही की। जिस तिजोरी को हम परिश्रम करके आज तक भर रहे हैं, अफसोच् कि उसकी चाभी आज भी हमारे पास नही है।

इसीलिए तो हमने अपना नया घर बना लिया है।

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संयुक्त परिवारों की यही तो वेदना है कि घर का स्वामी अन्य सद्स्यों को केवल कमाने की मशीन समझता है।

शायद इसीलिए नये घर बन जाते हैं। पुराने घर से मोह तो रहता है लेकिन अपने पराये की भावना तो आ ही जाती है।

यदि घरों को टूटने से बचाना है तो गृह स्वामियों को घर के सभी सदस्यों को कर्तव्य के साथ अधिकार भी देने होंगे।

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गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं।

मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।

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सोमवार, जून 01, 2009

‘‘क्या ब्लागिंग नशा है?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)

जिस समय मैंने कक्षा 10 की बोर्ड की परीक्षा दी तो तीन महीने की लम्बी छुट्टियाँ पड़ गयीं। मैंने सोचा कि इनका सदुपयोग किया जाये। अतः इंग्लिश टाइपिंग सीखने का मन बना लिया।

उन दिनों मेरे गृह-नगर नजीबाबाद में मुल्ला जी एक टाइपिंग सेन्टर चलाते थे। वहाँ पर मैंने दस रुपये प्रतिमाह की दर से टाइपिंग सीखनी शुरू कर दी। लगन इतनी थी कि 4-5 दिनों में ही मैंने पूरा की-बोर्ड याद कर लिया और फटा-फट टाइप करने लगा। पिता जी ने मेरी रुचि देख कर दो सौ रुपये में मुझे एक टाइप-राइटर भी दिलवा दिया।

उन दिनों हिन्दी टाइपिंग ठीक से प्रचलन में नही था। लेकिन मेरे मन में अपनी मातृ-भाषा में ही टाइप करने की प्रबल इच्छा थी।

दो साल बाद इण्टर करने के बाद फिर तीन महीने की लम्बी छुट्टियाँ पड़ गयीं। मैं अपने मामा जी के पास घूमने चला गया। मेरे मामा जी के पास उन दिनों 20 खच्चरें थी और वो पहाड़ में माल पहुँचाने के जाने-माने ठेकेदार थे।

कभी-कभी वे नेपाल के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में भी आम जरूरत के सामान का भी ढुलान किया करते थे।

मेरी पहली नेपाल यात्रा 1967 में ही शुरू हुई थी। नेपाल जाकर मैंने देखा कि विदेशी सामान की एक दूकान पर कुछ पोर्टेबल टाइप राइटर भी रखे हुए थे। उनमें एक हिन्दी टाइप राइटर भी था। बस उसे देख कर मेरा मन ललचा गया।

मामा जी से पैसे लेकर वोटाइप-राइटर मैंने साढ़े पाँच सौ रुपये में खरीद लिया। घर आकर उसका अभ्यास किया तो एक सप्ताह में हिन्दी टाइपिंग भी सीख लिया।

अब मैं कमाने लगा था और 1995 आते-आते मेरी आथिक स्थिति भी अच्छी हो गयी थी। कम्प्यूटर का युग अब शरू हो गया था। अतः मैंने एक लाख रुपये व्यय करके एक कम्प्यूटर भी खरीद लिया था और 1997 में मैंने सिर्फ किताब को गुरू मान कर इसे चलाना सीख लिया था।

इसके 10 साल बाद नेट का युग भी आया। मैं अब नेट भी चलाने लगा था, परन्तु नेट पुराने गाने, गेम आदि खेलने के लिए ही प्रयोग करता था। तब तक ब्राड-बेण्ड नही आया था। इसलिए नेट बहुत धीमा चलता था।

सन् 2008 में मेरे नगर खटीमा में ब्राड-बैण्ड की सुविधा उपलब्ध हो गयी और जनवरी 2009 के अन्त में मन में इच्छा हुई की अपना एक ब्लाग बना कर उसमें कुछ लिखा जाये।

एक मित्र की कृपा से मेरा ब्लाग बन गया और तब से नियमित रूप से प्रतिदिन अपने ब्लाग उच्चारण में कुछ न कुछ अवश्य लिखता हूँ।

अभी परसों की ही बात है। मेरे घर में छुट-पुट निर्माण कार्य चल रहा था। शाम को 6 बजे जैसे ही राज-मजदूर छुट्टी करके गये। मैं नेट पर आ गया और अपने काम में तल्लीन हो गया था। लेकिन मच्छरों की क्वाइल जलाना भूल गया था। पैरो में मच्छर काट रहे थे और हाथ की बोर्ड पर चल रहे थे।

आखिर ये कैसा नशा है? कभी-कभी तो भूख-प्यास का भी आभास नही होता है और समय कब गुजर गया इसका पता ही नही लगता है।

क्या ब्लागिंग वास्तव में नशा है?

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।