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शनिवार, अक्टूबर 20, 2012

"पुस्तक समीक्षा-मेरे बाद" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

एक युवा कवि का काव्य संग्रह 
"मेरे बाद"
    काफी समय पूर्व मुझे इंजीनियर सत्यं शिवम् का काव्य संग्रह "मेरे बाद" प्राप्त हुआ था! इसकी समीक्षा मैं लिखना चाहता था और इसके लिए पस्तक के कवर आदि की फोटो भी ले ली थी। लेकिन मेरा कम्प्यूटर खराब हो गया। यूँ तो लैपटॉप से काम चलाता रहा मगर समीक्षा नहीं लिख पाया।
आज मेरा कम्प्यूटर स्वस्थ हुआ है तो "मेरे बाद" पुस्तक के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास कर रहा हूँ!
    "मेरे बाद" काव्य संग्रह को उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ.प्र.) द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसके रचयिता इं. सत्यम् शिवम् हैं। पेपरबैक संस्करण में 160 पृष्ठ हैं और 54 रचनाओं को इस संग्रह में कवि ने स्थान दिया है, जिसका मूल्य-एक सौ पचास रुपये मात्र है।
    सत्यम् शिवम् हिन्दी ब्लॉगिंग के युवा हस्ताक्षर हैं और ब्लॉगरों के चहेते भी हैँ। इसलिए इस पुस्तक में जाने माने हिन्दी ब्लॉगर समीरलाल 'समीर', श्रीमती संगीता स्वरूप, डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', श्रीमती रश्मि प्रभा, श्रीमती वन्दना गुप्ता और डॉ.विष्णु सक्सेना ने विस्तृतरूप अपनी शुभकामनाएँ दी हैं। जिन्हें पुस्तक के रचयिता ने इस कृति में प्रकाशित भी किया है।
    पेशे से अभियन्ता मगर मन से कवि इंजीनियर सत्यं शिवम् की साहित्य निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।।
     आदिदेव गणेश जी की वन्दना के साथ इं. सत्यम शिवम् अपनी पुस्तक मेरे बाद... में अपनी रचनाओं को सजाया है सँवारा है-
देखिए यह गणपति वंदना
हे लम्बोदर,हे गजानन,
हे गणपति,हे गणेश!
कष्ट,भव का करो शमन,
दूर करो दुख,पीड़ा,क्लेश।
     इंजीनियर सत्यं शिवम् ने अपने काव्य संग्रह मेरे बाद... में यह सिद्ध कर दिया है कि वह वियोग शृंगार के एक कुशल चितेरे हैं-
चल रही है दर्द की कुछ आँधियाँ,
और मेरा दर्द भी संग चल रहा।
चोट खाकर राह में अवरोध से,
आह भी संताप संग घुल गल रहा।
कवि ने वेदना, ईमान, स्वार्थ,  माँ की ममता, मनुजता आदि अमूर्त मानवीय संवेदनाओं पर तो अपनी संवेदना बिखेरी ही है साथ ही प्राकृतिक उपादानों को भी कवि ने अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
मैंने तुमसे प्यार किया था,
तुमने क्यों प्रतिकार किया था?
प्रकृति के रस-रंग मनोहर,
लाया था चुन-चुन कर प्रतिपल,
प्यार की सीमा,भाव का सागर,
हमदोनों ने पार किया था।
मैंने तुमसे प्यार किया था।

     मेरे बाद... में क्या होगा कवि ने अपनी इन दो पंक्तियों में स्पष्ट कर दिया है-
आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।
जी रहा सब जानते है,
मै हूँ जिन्दा मानते है।
--
कुछ घड़ी बस स्नेह की बहती नदी में,
ज्वार भावों का उठेगा और गिरेगा,
कवि ने छंदो को अपनी रचनाओं में अधिक महत्व न देकर भावों को ही प्रमुखता दी है और सोद्देश्य लेखन के भाव को कवि ने अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है।
अपनी माया से बस प्रभु,
धड़कन में कुछ साँस भर देना,
जब शरीर को मेरे निंद आ जाये,
प्रभु तुम मुझको खबर ये कर देना।

कवि को हो गया लेखनी से प्यार,
इसी उधेड़बुन में वो है लाचार,
अपनी पीड़ा लेखनी को क्या बताऊँ,
साथी को अपना साथ कैसे समझाऊँ।
     समाज में व्याप्त हो रहे आडम्बरों और पूजा पद्धति पर भी करीने के साथ चोट करने में कवि ने अपनी सशक्त लेकनी को चलाया है-
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
नमाजों में,दुआओं में,
मुसलमानों के पाक इरादों में,
दिख जाता मुझे आज भी वो खुदा है!
पिता के दुख को इसी शीर्षक से लिखी रचना में इं.सत्यम् शिवम् ने मार्मिक शब्द देते हुए लिखा है-
कई दिन बीता, कई रात हुई,
बादल उमरे, बरसात हुई।
कितने मौसम यूँ आये गये,
पर बेटे से ना बात हुई।
जन्मदात्री माता के प्रति कवि ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए लिखा है-
मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती,
मै कुछ भी तो ना होता,
जो तू ना होती।
प्रेयसी के लिए पूर्ण समर्पण की भावना कवि की प्रणय रचनाओं में स्थान-स्थान पर देखने को मिल जाती हैं-
जलाता रहा हर रात मैं दीपक,
पर आया ना जीवन में सवेरा!  
दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!
--
तुम आओगी जब लेकर बहारे,
यादों के किस्से होंगे प्यारे प्यारे,
--
मेरे विचारों के घर के,
कोणे वाले उस कमरे में,
अब भी मेरी दो रचनायें,
वैसे ही टँगी हुई है।
     अपनी लेखनी का गुण-गान करते हुए कवि लिखता है-
जुबां रख कर भी मै बेजुबान हूँ,
लेखनी के बिना,
तो मै कविता से अनजान हूँ।
--
मीलों की दूरी,
कविता से कवि की हो जाती है,
जब लेखनी सही वक्त पर,
साथ नहीं निभाती है।
शृंगार में यदि प्रेम न हो तो छंद निष्प्राण हो जाते हैं। आँसू की बरसात बादलों की बरसात के आगे ठहर नहीं पाती है। इस भावना को कवि ने अपने शब्दों में सदैव जीवित रखा है-
जो होते है सबसे प्यारे,
वो हमें छोड़ इक रोज कहाँ चले जाते हैं?
आती है जब याद उनकी,
तो नैन अश्क क्यों बहाते हैं?
     रंगों की रंगोली हो या होली का परिवेश हो जब तक साथी का साथ नहीं होता तब तक सारी छटाएँ बेरंग सी ही लगती हैं। कवि ने इस पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-
बेरंग रंगों की रंगोली,
और मौन के धुन का गीत कोई,
कैसे बेरंग छटाओं में,
ढ़ुँढ़ु मै रंगों की होली।
     जीवन के प्रति आशान्वित होते हुए कवि लिखता है-
जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।
दब गयी जो साँस मन में,
क न आवाज भर ले।
     एक और स्थान पर कवि अपने भाग्य को कोसते हुए लिखता है और कहता है-
जलाता रहा हर रात मैं दीपक,
पर आया ना जीवन में सवेरा!  
दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!
--
जब तोड़ना ही प्यार था,
मेरे प्यार से इंकार था!
क्या थी जरुरत फिर ऐसे ही,
रिश्तों के बोझ को यूँ निभाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
--
चारों तरफ मै निहारता,
जाने कहाँ,कब मिलेगा?
मेरे इस प्रश्न का हल!
--
लिखने दो अब अंतिम घड़ी,
अंतिम गीत ये जीवन का,
तुम पर लिखी ये पंक्तियाँ,
मेरी इच्छाओं और जतन का।
मेरे बाद.... पुस्तक को सांगोपांग पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि इंजीनियर सत्यम् शिवम् जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त शृंगार की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक इंजीनियर सत्यम् शिवम् जी के साहित्य से अवश्य लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
कवि एवं साहित्यकार  
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
Website.  http://uchcharan.blogspot.com/

शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

"सावधान रहें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


स्वास्थ्यवर्धक के नाम पर लूट!
आदरणीय स्वामी जी!
    आपकी बात मानकर मैं स्थानीय पतंजलि क्रयकेन्द्र पर गया तो वहाँ 5 अनाजों से निर्मित स्वास्थ्यवर्धक आटो का दाम पचास रुपये किलो था। इससे मेरा माथा ठनका कि चना के छोड़कर ज्वार, बाजरा. मक्की तो गेहूँ से कम दाम वाले अनाज हैं, फिर स्वास्थ्यवर्धक के नाम से बिकने वाला आटा इतना मँहगा कैसे हो गया?
   हम लोग चक्की का पिसा शुद्ध गेहूँ का आटा 17 रु. किलो लाते हैं और ब्राण्डेड पैक आटा 18 रुपये किलो के हिसाब से मिलता है।
मैंने बाजार से 2 किलो बाजरा 24 रुपये में, 2 किलो मक्का 24 रुपये में, 2 किलो ज्वार 20 रुपये में और दो किलो चना 90 रुपये में खरी दा और इसमें 15 रुपये किलो के भाव से 10 किलो गेहूँ 150 रुपये में खरीद कर मिलया। पिसाई के 40 रुपये भी इसमें जोड़ दे तो 20 किलो आटे का दाम 348 रुपये ही हुआ। जिसकी शुध्दता की भी गारंटी है। अर्थात यह स्वास्थ्यवर्धक आटा मुझे 17 रुपये पचास पैसे किलो पड़ा। फिर आपका यही आटा पचास रुपये किलो कैसे हो गया? क्या आम आदमी के बजट का यह आटा है? स्वास्थ्यवर्धक नाम पर 50रुपये किलो आटा बेचना तो सरासर लूट है। क्या यही स्वदेशी आन्दोलन है। यह तो वही बात हुई कि स्वदेशी पहनो और गांधी जी के नाम से चल रहे श्री गान्धी आश्रम में अपनी जेब कटावा कर घर आ जाओ।
    आप राजनीतिक दलों को भ्रष्ट करार देते हैं लेकिन नैतिकता की आड़ में आप सन्यासी होकर अन्धाधुऩ्ध कमाई करने में लगे हो।
आप भी तो जनता की भावनाओं को भुनाकर अपने बन्धु-बान्धवों को सीधे रूप में धनवान बनाने में तुले हो! फिर क्या अन्तर रह जाता है आपमें और आपके द्वारा कथित भ्रष्ट राजनेताओं में।
स्वामी जी! 
    मैं आप अपने प्रवचन में अक्सर कहते हैं कि आपने घोर गीपबी का जीवन जिया है। लेकिन अब आपके पास परोक्षरूप में अकूत सम्पत्ति है। इसका राज़ मेरी तो समझ में अब खूब आ गया है। बहुत से उद्योगों का स्वामी आपका ट्रस्ट है। विशाल और भव्य पतंजलि योग संस्थान का भवन इसका गवाह है। जहाँ अपने इलाज के लिए जाने वाले रोगियों के लिए होटलों से भी मँहगे हैं। जिनमें ठहरना आप आदमी के बस की बात नहीं है। आपने गरीवी देखी है तो गरीबों के लिए इस चिकित्सापीठ में कौन सी सुविधा प्रदत्त है। मैंने आपके चिकित्सकों और कर्मचारियों का भी व्यवहार देखा है। जहाँ आम आदमी को दुत्कार धनवानों को प्यार के अलावा कुछ भी तो नहीं है।
    अब समय आ गया है कि जनता कथित भ्रष्ट नेताओं से तो सावधान हो ही और साथ में आपके जैसे गेरुए वस्त्रधारी बाबाओं से भी सावधान रहें!

शनिवार, जुलाई 28, 2012

"उज्जवला की बातें करें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मा. पं. नारायणदत्त तिवारी जी को मैं अपना राजनीतिक गुरू मानता हूँ। सभी लोग जानते हैं कि उन्होने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया।
     इसके बाद उन्होंने आजाद भारत की सियासत में पदार्पण किया। वे उत्तर-प्रदेश जैसे बड़े राज्य के तीन बार मुख्यमन्त्री रहे, केन्द्र सरकार में भी विभिन्न प्रमुख मन्त्रालयों के वे मन्त्री रहे। उनके लम्बे राजनीतिक अनुभव को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उत्तराखण्ड का भी मुख्यमन्त्री बनाया, जिसे उन्होंने तमाम अन्तरविरोधों को झेलते हुए अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल को बखूबी निभाया। जीवन के अन्तिम पड़ाव में उन्होंने आन्ध्र-प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के भी पद को सुशोभित किया। अतः तिवारी जी की राजनीति का वटवृक्ष कहूँ तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि पं. नारायणदत्त तिवारी जैसा विनम्र राजनीतिज्ञ लाखों में एक होता है।
    जो घटनाक्रम तिवारी जी के साथ हुआ वह वाकई में दुर्भाग्यपूर्ण है। क्योंकि लोगों में सहिष्णुता नाम की कोई चीज रह ही नहीं गयी है। अगर अतीत में झाँककर देखा जाये तो देवता और ईश्वर की संज्ञा को धारे हुए लोग भी काम के वशीभूत होकर ऐसे कर्मों में लिप्त रहे हैं। यदि तब से लेकर अब तक का आकलन किया जाये तो कौरव-पाण्डव, ऋषिविश्वामित्र, सूर्यभगवान और कुन्ती आदि भी इसमें लिप्त पाये गये हैं।
आजाद भारत की राजनीति की बात करें तो पं. नेहरू और उनकी सारी पीढ़ियाँ, अटल बिहारी वाजपेई, मुलायमसिंह यादव, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, माधवराव सिंधिया आदि (किस-किसके नाम लूँ) के किस्से किसी से छिपे नहीं है। उद्योगपतियों और फ़िल्मी सितारों की बाते भी किसी से छिपी नहीं हैं।
    अब स्व.शेरसिंह की पुत्री उज्जवला की बात करें तो सरासर गलती उज्जवला की ही है। एक शादीशुदा महिला ने उस समय के जाने-माने राजनीतिज्ञ को अपने जाल में फँसाया और उसके साथ हमबिस्तर हुई। क्या यह सच नहीं है। क्या तिवारी उसके घर बलात्कार करने गया था। इस सेक्स के खेल में यदि सन्तान हो गई तो गलती किसकी है।
   यदि इस कड़ी में पत्रकार दयानन्द पाण्डेय जी के लेख का कुछ अंश इसमें मिल करूँ तो कोई विसंगति नहीं होगी-
   माफ़ कीजिए उज्वला जी, आप किसी से अपने बेटे का पितृत्व भी मांगेंगी और उस की पगडी भी उछालेंगी? यह दोनों काम एक साथ तो हो नहीं सकता। लेकिन जैसे इंतिहा यही भर नहीं थी। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी को भी आप ने बार-बार अपमानित किया। बांझ तक कहने से नहीं चूकीं। आप को पता ही रहा होगा कि सुशीला जी कितनी लोकप्रिय डाक्टर थीं। बतौर गाइनाकालोजिस्ट उन्हों ने कितनी ही माताओं और शिशुओं को जीवन दिया है। यह आप क्या जानें भला? रही बात उन के मातृत्व की तो यह तो प्रकृति की बात है। ठीक वैसे ही जैसे आप को आप के पति बी.पी. शर्मा मां बनने का सुख नहीं दे पाए और आप को मां बनने के लिए तिवारी जी की मदद लेनी पड़ी।
खैर, हद तो तब हो गई कि जब आप एक बार लखनऊ पधारीं। तिवारी जी की पत्नी सुशीला जी का निधन हुआ था। तेरही का कार्यक्रम चल रहा था। आप भरी सभा में हंगामा काटने लगीं। कि पूजा में तिवारी जी के बगल में उन के साथ-साथ आप भी बैठेंगी। बतौर पत्नी। और पूजा करेंगी। अब इस का क्या औचित्य था भला? सिवाय तिवारी जी को बदनाम करने, उन पर लांछन लगाने, उन को अपमानित और प्रताणित करने के अलावा और भी कोई मकसद हो सकता था क्या? क्या तो आप अपना हक चाहती थीं? ऐसे और इस तरह हक मिलता है भला? कि एक आदमी अपनी पत्नी का श्राद्ध करने में लगा हो और आप कहें कि पूजा में बतौर पत्नी हम भी साथ में बैठेंगे !
उज्वला जी, आप से यह पूछते हुए थोड़ी झिझक होती है। फिर भी पूछ रहा हूं कि क्या आप ने नारायणदत्त तिवारी नाम के व्यक्ति से सचमुच कभी प्रेम किया भी था? या सिर्फ़ देह जी थी, स्वार्थ ही जिया था? सच मानिए अगर आप ने एक क्षण भी प्रेम किया होता तिवारी जी से तो तिवारी जी के साथ यह सारी नौटंकी तो हर्गिज़ नहीं करतीं जो आप कर रही हैं। जो लोगों के उकसावे पर आप कर रही हैं। पहले नरसिंहा राव और उन की मंडली की शह थी आप को। अब हरीश रावत और अहमद पटेल जैसे लोगों की शह पर आप तिवारी जी की इज़्ज़त के साथ खेल रही हैं। बताइए कि आप कहती हैं और ताल ठोंक कर कहती हैं कि आप तिवारी जी से प्रेम करती थीं। और जब डाक्टरों की टीम के साथ दल-बल ले कर आप तिवारी जी के घर पहुंचती हैं तो इतना सब हो जाने के बाद भी सदाशयतावश आप और आप के बेटे को भी जलपान के लिए तिवारी जी आग्रह करते हैं। आप मां बेटे जलपान तो नहीं ही लेते, बाहर आ कर मीडिया को बयान देते हैं और पूरी बेशर्मी से देते हैं कि जलपान इस लिए नहीं लिया कि उस में जहर था। बताइए टीम के बाकी लोगों ने भी जलपान किया। उन के जलपान में जहर नहीं था, और आप दोनों के जलपान में जहर था? नहीं करना था जलपान तो नहीं करतीं पर यह बयान भी ज़रुरी था?
क्या इस को ही प्रेम कहते हैं?”

रविवार, मई 20, 2012

"क्षितिजा की समीक्षा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

     इन दिनों मेरे पास कई पुस्तकें विद्वान रचनाधर्मियों ने भेजी हुई हैं। लेकिन मेरा कम्प्यूटर खराब हो गया जो अभी 8-10 दिन में ही ठीक हो पायेगा। तब तक बेटे ने मुझे काम चलाने के लिए एक डेस्कटॉप दे दिया और समय का सदुपयोग करते हुए मन हुआ कि “क्षितिजा के बारे में कुछ लिखूँ।
    गत वर्ष 30 अप्रैल को हिन्दी साहित्य परिकल्पना सम्मान के दौरान दिल्ली स्थित हिन्दी भवन में मेरी भेंट अंजु (अनु) चौधरी से हुई थी। फिर एक दिन अन्तर्जाल पर मैंने देखा कि इनकी पुस्तक क्षितिजा हाल में ही प्रकाशित हुई है। मैंने अपनी मानव सुलभ जिज्ञासा से एक टिप्पणी में पुस्तक पढ़ने की इच्छा जाहिर की। इस बात को 3-4 दिन ही बीते थे कि मुझे डाक से क्षितिजा की प्रति मिल गई।
     मेरे पास लेखन कला का सर्वथा अभाव रहा है। केवल कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कुछ बे-तरतीब शब्दों से कुछ लाइनें क्षितिजा के बारे में लिखने का असफल प्रयास कर रहा हूँ।
     क्षितिजाकाव्य संकलन को हिन्द युग्म, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसमें अंजु (अनु) चौधरी की सत्तावन अतुकान्त रचनाएँ संकलित हैं। एक सौ बीस पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 250 रु. है।
      एक कुशल गृहणी के मन की संवेदनाओं के इस संकलन में जीवन के विविध पहलुओं पर कुशलता से प्रकाश डाला गया है। असमंजस शीर्षक से कवयित्री ने अपने मन की व्यथा को अपने शब्द देते हुए लिखा है-
लिखते-लिखते रुकती
लेखनी का असमंजस
पढ़ने का बाद
समझ का असमंजस
दोराहे पर खड़े
बचपन का असमंजस
अन्तिम पड़ाव पर
वृद्धावस्था का असमंजस...
     मैं अक्सर कहा करता हूँ- काम बहुत है, जीवन थोड़ा इसी उक्ति को साकार करते हुए अंजु लिखती हैं-
नई उलझने नये गम होंगे
दिन जिन्दगी के सबसे कम होंगे
      घर का सपना हर इंसान का होता है मगर वर्तमान परिपेक्ष्य में घर कैसे हो गये हैं देखिए कवयित्री की इस कविता में-
आज वो घर कहाँ
बसते थे इंसान जहाँ
आज वो दिल कहाँ
रिसता था प्यार जहाँ
      जिसके पाँव न पड़ी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई गरीबी के बारे में कुशल रचनाधर्मिणी ने अपने शब्द देते हुए लिखा है-
गरीबी एक अभिशाप
जिन्दगी का
सबसे बड़ा सन्ताप...
       जीवन संग्राम में हर एक व्यक्ति अनाड़ी होता है। लेकिन उसे इस संग्राम को झेलना तो पड़ता ही है। इसी पर कलम चलाते हुए लेखिका ने लिखा है-
मैं तो अनजान
और अनाड़ी थी
जीवन संग्राम में
हारी हुई खिलाड़ी थी...
      और इस पर किस प्रकार की अनुभूति होती है, इसको आप अंजु जी के शब्दों में ही देखिए-
एक वर्ष का आना
एक वर्ष का जाना
आने-जाने का
है सिलसिला पुराना
फिर भी मैं खुश हूँ...
      प्रणय की झलक उनकी इस रचना में देखने को मिलती है-
चाँदनी रात के साये में
चाँद की भीगी चाँदनी में
इश्क बोला हुस्न से
लेकर हाथों में हाथ चलो...
--
चाय का कप
जो पकड़ाया तुमने
तो, हाथ को छू गये
वो अहसास, अन्दर तक...
     बचपन एक ऐसी मधुर स्मृति होती है जो जीवन के हर मोड़ पर याद आती है। ऐसी ही मधुर स्मृति को कुछ इस प्रकार से शब्दों में बाँधा गया है-
खुले खेत
कच्ची पगडण्डी
खेतों में पानी लगती फसल
उस राह भागता
बचपन हमारा
पेड़ पर झूला
उसमें झूलता
बचपन हमारा
अमुआ का पेड़
पेड़ की छाया
बस्ते को फेंकता
बचपन हमारा
     समय के मशीनीकरण के बारे में कुछ इस प्रकार से शब्द दिये गये हैं-
आज मशीनी युग में
समय कुछ ज्यादा ही
महँगा हो गया है
आप सब अब
अवकाश निकालो
आप लोगों से
दो बाते करनी हैं...
     शृंगार वियोग का हो या संयोग का उसकी खट्टी-मीठी यादे तो हर एक के पास होती है मगर जो इनको शब्द दे देता है वही कवि हो जाता है। कवयित्री ने इस पर अपनी कलम चलाते हुए लिखा है-
भागीरथ बनकर
भिगो गया कोई
खुद के बोल देकर
गुनगुनाने को
छोड़ गया कोई...
     एक अनकही वेदना को कवयित्री ने अपने शब्दों में इस प्रकार बाँधा है-
एक  की पीड़ा
जो ना तो
अपने बच्चों से
कुछ कह सकती है
और ना ही
अपने बड़ों को....
      बेटी के जवान होने पर एक माँ को कैसा आभास होता है, इसकी बानगी अनु जी की इस रचना में देखिए-
बेटी है कुवाँरी
मैं कैसे सो जाऊँ...?
     अनु जी ने अपनी अतुकान्त रचनाओं में ध्वंयात्मकता के भी दिग्दर्शन होते होते हैं। देखिए इनकी यह रचना-
शब्द सीमित-शब्द असंकुचित
शब्द विस्तृत-शब्द अनन्त
सत्य-असत्य की परिभाषा
शब्द...
अंजु (अनु) चौधरी के काव्यसंग्रह क्षितिजा में जीवन के विविध रंगों को शब्द मिले हैं और विविध आयामों से इन्हें परखा गया है। एक ओर जहाँ इंतजारबारिशनई जिन्दगीबचपनखामोशीनदी आदि प्राकृतिक उपादानों पर कवयित्री की संवेदना बिखरती है तो दूसरी ओर अमूर्त मानवीय संवेदनाओं को भी रचनाधर्मिणी ने अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
काव्यसंग्रह क्षितिजाको पढ़ने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि इसमें भाषिक सौन्दर्य के साथ-साथ मानवीय सम्वेदनाओं का भी भली-भाँति निर्वहन किया गया है।
मुझे पूरा विश्वास है कि अनु जी का यह काव्य संग्रह जनमानस के लिए उपयोगी सिद्ध होगा और उनकी यह कृति समीक्षकों के दृष्टिकोण से भी उपादेय सिद्ध होगी।
क्षितिजा के लिये अंजु (अनु) चौधरी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

टनकपुर रोड, खटीमा, 

ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
Phone/Fax: 05943-250207, 05943-250129
Mobiles: 

09368499921, 09808136060
09997996437, 07417619828

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।