एक युवा कवि का काव्य संग्रह
"मेरे बाद"
काफी समय पूर्व मुझे इंजीनियर सत्यं शिवम् का काव्य संग्रह "मेरे बाद" प्राप्त हुआ था! इसकी समीक्षा मैं लिखना चाहता था और इसके लिए पस्तक के कवर आदि की फोटो भी ले ली थी। लेकिन मेरा कम्प्यूटर खराब हो गया। यूँ तो लैपटॉप से काम चलाता रहा मगर समीक्षा नहीं लिख पाया।
आज मेरा कम्प्यूटर स्वस्थ हुआ है तो "मेरे बाद" पुस्तक के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास कर रहा हूँ!
"मेरे बाद" काव्य संग्रह को उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उ.प्र.) द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसके रचयिता इं. सत्यम् शिवम् हैं। पेपरबैक संस्करण में 160 पृष्ठ हैं और 54 रचनाओं को इस संग्रह में कवि ने स्थान दिया है, जिसका मूल्य-एक सौ पचास रुपये मात्र है।
सत्यम् शिवम् हिन्दी ब्लॉगिंग के युवा हस्ताक्षर हैं और ब्लॉगरों के चहेते भी हैँ। इसलिए इस पुस्तक में जाने माने हिन्दी ब्लॉगर समीरलाल 'समीर', श्रीमती संगीता स्वरूप, डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', श्रीमती रश्मि प्रभा, श्रीमती वन्दना गुप्ता और डॉ.विष्णु सक्सेना ने विस्तृतरूप अपनी शुभकामनाएँ दी हैं। जिन्हें पुस्तक के रचयिता ने इस कृति में प्रकाशित भी किया है।
पेशे
से अभियन्ता मगर मन से कवि इंजीनियर सत्यं शिवम् की साहित्य निष्ठा देखकर मुझे
प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री सुमित्रानन्दन पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ
जाती हैं-
“वियोगी
होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।।“
आदिदेव गणेश जी की वन्दना के साथ इं. सत्यम
शिवम् अपनी पुस्तक “मेरे
बाद...” में
अपनी रचनाओं को सजाया है सँवारा है-
देखिए यह गणपति वंदना
हे लम्बोदर,हे गजानन,
हे गणपति,हे गणेश!
कष्ट,भव का करो शमन,
दूर करो दुख,पीड़ा,क्लेश।
इंजीनियर सत्यं शिवम् ने अपने काव्य संग्रह “मेरे बाद...” में यह सिद्ध कर दिया है कि वह वियोग शृंगार
के एक कुशल चितेरे हैं-
“चल रही है दर्द की कुछ
आँधियाँ,
और मेरा दर्द भी संग चल रहा।
चोट खाकर राह में अवरोध से,
आह भी संताप संग घुल गल रहा।“
कवि ने वेदना, ईमान, स्वार्थ, माँ की ममता, मनुजता आदि
अमूर्त मानवीय संवेदनाओं पर
तो अपनी संवेदना बिखेरी ही है साथ ही प्राकृतिक उपादानों को भी
कवि ने अपनी
रचनाओं का विषय
बनाया है। इसके
अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को
भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है।
मैंने तुमसे प्यार किया था,
तुमने क्यों प्रतिकार किया था?
प्रकृति के रस-रंग मनोहर,
लाया था चुन-चुन कर प्रतिपल,
प्यार की सीमा,भाव का सागर,
हमदोनों ने पार किया था।
मैंने तुमसे प्यार किया था।
“मेरे बाद...” में क्या होगा कवि ने अपनी इन दो पंक्तियों
में स्पष्ट कर दिया है-
“आज अपने अंत की दहलीज पर,
मै आ खड़ा हूँ।
जी रहा सब जानते है,
मै हूँ जिन्दा मानते है।“
--
“कुछ घड़ी बस स्नेह की
बहती नदी में,
ज्वार भावों का उठेगा और गिरेगा,”
कवि ने छंदो को अपनी रचनाओं में अधिक महत्व न
देकर भावों को ही प्रमुखता दी है और सोद्देश्य लेखन के भाव को कवि ने अपनी रचनाओं
में हमेशा जिन्दा रखा है।
अपनी माया से बस प्रभु,
धड़कन में कुछ साँस भर देना,
जब शरीर को मेरे निंद आ जाये,
प्रभु तुम मुझको खबर ये कर देना।
कवि को हो गया लेखनी से प्यार,
इसी उधेड़बुन में वो है लाचार,
अपनी पीड़ा लेखनी को क्या बताऊँ,
साथी को अपना साथ कैसे समझाऊँ।
समाज
में व्याप्त हो रहे आडम्बरों और पूजा पद्धति पर भी करीने के साथ चोट करने में कवि
ने अपनी सशक्त लेकनी को चलाया है-
मस्जिद में लगे ध्वनि-विस्तारक यंत्रों से,
अजान का वो स्वर सूना है!
नमाजों में,दुआओं में,
मुसलमानों के पाक इरादों में,
दिख जाता मुझे आज भी वो खुदा है!
पिता के दुख को
इसी शीर्षक से लिखी रचना में इं.सत्यम् शिवम् ने मार्मिक शब्द देते हुए लिखा है-
कई दिन बीता, कई रात हुई,
बादल उमरे, बरसात हुई।
कितने मौसम यूँ आये गये,
पर बेटे से ना बात हुई।
जन्मदात्री माता के प्रति कवि ने अपनी कृतज्ञता
व्यक्त करते हुए लिखा है-
मेरी जिन्दगी ना होती,
माँ तू अगर ना होती,
मै कुछ भी तो ना होता,
जो तू ना होती।
प्रेयसी के लिए पूर्ण समर्पण की भावना कवि की
प्रणय रचनाओं में स्थान-स्थान पर देखने को मिल जाती हैं-
जलाता रहा हर रात मैं दीपक,
पर आया ना जीवन में सवेरा!
दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!
--
तुम आओगी जब लेकर बहारे,
यादों के किस्से होंगे प्यारे प्यारे,
--
मेरे विचारों के घर के,
कोणे वाले उस कमरे में,
अब भी मेरी दो रचनायें,
वैसे ही टँगी हुई है।
अपनी
लेखनी का गुण-गान करते हुए कवि लिखता है-
जुबां रख कर भी मै बेजुबान हूँ,
लेखनी के बिना,
तो मै कविता से अनजान हूँ।
--
मीलों की दूरी,
कविता से कवि की हो जाती है,
जब लेखनी सही वक्त पर,
साथ नहीं निभाती है।
शृंगार में यदि
प्रेम न हो तो छंद निष्प्राण हो जाते हैं। आँसू की बरसात बादलों की बरसात के आगे
ठहर नहीं पाती है। इस भावना को कवि ने अपने शब्दों में सदैव जीवित रखा है-
जो होते है सबसे प्यारे,
वो हमें छोड़ इक रोज कहाँ चले जाते हैं?
आती है जब याद उनकी,
तो नैन अश्क क्यों बहाते हैं?
रंगों
की रंगोली हो या होली का परिवेश हो जब तक साथी का साथ नहीं होता तब तक सारी छटाएँ
बेरंग सी ही लगती हैं। कवि ने इस पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-
बेरंग रंगों की रंगोली,
और मौन के धुन का गीत कोई,
कैसे बेरंग छटाओं में,
ढ़ुँढ़ु मै रंगों की होली।
जीवन
के प्रति आशान्वित होते हुए कवि लिखता है-
जिंदगी की इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।
दब गयी जो साँस मन में,
इक नई आवाज भर ले।
एक
और स्थान पर कवि अपने भाग्य को कोसते हुए लिखता है और कहता है-
जलाता रहा हर रात मैं दीपक,
पर आया ना जीवन में सवेरा!
दुर्भाग्य है यह कैसा मेरा!
--
जब तोड़ना ही प्यार था,
मेरे प्यार से इंकार था!
क्या थी जरुरत फिर ऐसे ही,
रिश्तों के बोझ को यूँ निभाने का!
नहीं मै इस जमाने का!
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चारों तरफ मै निहारता,
जाने कहाँ,कब मिलेगा?
मेरे इस प्रश्न का हल!
--
लिखने दो अब अंतिम घड़ी,
अंतिम गीत ये जीवन का,
तुम पर लिखी ये पंक्तियाँ,
मेरी इच्छाओं और जतन का।
“मेरे बाद....” पुस्तक को सांगोपांग पढ़कर मैंने
अनुभव किया है कि इंजीनियर सत्यम् शिवम् जी ने भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त शृंगार की
सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि पाठक इंजीनियर
सत्यम् शिवम् जी के साहित्य से अवश्य लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत कृति समीक्षकों की
दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
(डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड,
खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308