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शुक्रवार, जून 12, 2009

‘‘मीठा-मीठा हप्प, कड़वा-कड़वा थू।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जी हाँ, आप ये पढ़कर चौंकिए मत। ये तो दुनिया का दस्तूर है। एक ब्लॉगर भाई की पोस्ट आयी है। "भिक्षाम् देहि’’ इन सज्जन ने सारा दोष ब्लॉगर्स और पाठकों को दिया है। बहुत सारे शिकवे-शिकायत इस लेख में उडेल दिये हैं। लेकिन बात फिर वही आती है कि ‘‘मीठा-मीठा हप्प, कड़वा-कड़वा थू।’’

किसी साहित्य-साधक ने बड़ा परिश्रम करके कोई पोस्ट लिखी है और उसे अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया है, तो कमेंट्स तो आयेंगे हीं। परन्तु इन कमेंट्स में यदि रचना के बारे में एक शब्द भी नही लिखा हो और केवल यह लिखा हो कि

‘‘इसे टिप्पणी न समझें, मैं अपने स्वार्थ के लिए यह लिंक लगा रहा हूँ’’

तो उस रचनाधर्मी के दिल पर क्या बीतेगी?

यह इन महोदय के अतिरिक्त आप सभी जानते हैं। क्योंकि इन्होंने सीधी सी युक्ति निकाली थी और मेरे जैसे न जाने कितने ब्लागर्स को-

‘‘इसे टिप्पणी न समझें, मैं अपने स्वार्थ के लिए यह लिंक लगा रहा हूँ’’

केवल कापी पेस्ट ही किया है। आत्म-मन्थन की तो कभी आवश्यकता ही अनुभव नही की।

मैंने तो नही लेकिन कुछ लोंगो ने इन्हें मेल के द्वारा उत्तर भी दिये, लेकिन इन्होंने उन पर कभी विचार नही किया। बल्कि पोस्ट के रूप में अपने को सही साबित करने का प्रयास किया। चलो भाई ठीक है।

कुछ ब्लॉगर्स ऐसे भी है जिन्हें टिप्पणी करके कुछ सुझाव दो तो वे उस टिप्पणी को प्रकाशित ही नही करते हैं।

बात फिर वही आती है-‘‘मीठा-मीठा हप्प, कड़वा-कड़वा थू।’’

किसी की टिप्पणी को प्रकाशित करने अथवा न करने का अधिकार तो ब्लॉग-स्वामी के पास सुरक्षित होता ही है, लेकिन इसमें वो अक्सर ईमानदारी या दरियादिली नही दिखाते हैं।

ठीक है, अश्लील टिप्पणी हो तो इसे कदापि मत प्रकाशित करो, लेकिन मेरा मत है कि यदि सुझाव के रूप में कोई टिप्पणी आयी है तो उसे अवश्य प्रकाशित करना चाहिए।

कुछ ब्लॉगर्स अपने ब्लाग पर बाल पहेली प्रतियोगिता भी लगाते हैं और उसमें पुरस्कार देने की घोषणा भी करते हैं। मेरे पौत्र ने भी ऐसी ही एक प्रतियोगिता में भाग लिया। उसको पुरस्कार देने की घोषणा भी हुई परन्तु आज तक उसे पुरस्कार नही प्रेषित किया गया।

फिर दूसरी पहेली आयी। उसमें किसी अन्य बालक ने पुरस्कार जीता, पुरस्कार की घोषणा भी हुई तो मेरे पौत्र ने उस बालक को बधायी भेजी और साथ में निवेदन भी किया कि ‘‘ये अंकल केवल पुरस्कार देने की घोषणा भर ही करते हैं, देते किसीको भी नही हैं।’’

इस टिप्पणी को आज तक प्रकाशित नही किया गया और न ही पुरस्कार भेजा गया।

एक ब्लॉगर ने किसी अन्य ब्लॉगर की रचना बिना अनुमति लिए ही छाप दी। उसके परिचय में कुछ ऐसा लिखा जिस पर मूल रचनाकार को आपत्ति थी। इसके साथ ही लिंक लगाकर कुछ यों लिखा-

"अगर आप इनकी अन्य रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं,

तो आपको यह दुनिया छोड़कर जाना पड़ेगा ... ... ... ।

..... ... ... ज़रा सोच-समझकर ही .........................पर क्लिक् कीजिएगा!"

इस वाक्य का क्या अर्थ होगा यह सब लोग जानते हैं, क्योंकि ये तो सीधे-सीधे गाली देना हुआ। आखिर दुनिया से मोह तो सभी को होता है।

मूल रचनाधर्मी ने इस पर एक पोस्ट भी लगाई। लेकिन यह उनका बड़प्पन था कि उन्होंने वो पोस्ट निकाल दी। क्योंकि वो विवाद से बचना चाहते थे।

बहुधा यह देखा गया है कि हर व्यक्ति अपने को महाविद्वान समझता है, लेकिन यह भी सत्य है कि रचनाकार की सोच तक प्रकाशक या पाठक कभी नही पहुँच सकता है। अतः यदि हम किसी रचनाकार की रचना अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर रहे हैं तो उसमें जब तक मूल रचनाधर्मी की इजाजत न ले लें, तक तक उसमें अपनी ओर से कुछ भी न घटाएँ न बढ़ायें।

उदाहरण के लिए रचनाकार पर भाई रवि रतलामी कभी किसी रचनाकार की रचना के साथ छेड़-खानी नही करते हैं। इसीलिए वो विवादों से आज तक पाक-साफ रहे हैं।

मित्रो! मेरी इस पोस्ट को आप विवाद या चुनौती के रूप में न लें। इस लेख को लिखने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि यदि कुछ क्षण निकाल कर आत्म-मन्थन कर लें तो बेहतर होगा।

मैं भी एक सामान्य मानव ही हूँ हो सकता है कि इसमें मेरी सोच भी कही गलत हो सकती है।

14 टिप्‍पणियां:

  1. मयंक जी इस पर निश्ब्द ही हूँ विवाद वाले मेल या ब्लोग वार्ता को नज़र अन्दाज़ ही कर देती हूँ वैसे आपने बिलकुल सही कहा है आभार्

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  2. मयंक जी आपसे सहमत हूँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  3. आपने ठीक लिखा मगर अधिकांश ब्लॉगर्स के लिये ब्लॉगिंग अपनी कुंठा भड़ास निकालने का माध्यम रहा है पश्चिमी देशों में ,क्योंकि वहां न तो मित्र हैं,न रिश्तेदार दुख:दर्द ही नहीं खुशी भी जाहिर करने हेतु।भारतीय उप महाद्वीप अभी बचा है इसी लिये ब्लॉगस पर साहित्य व वैचारिक रचनाएं मिल रहीं हैं
    श्याम सखा

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  4. aapne bahut sahi prashn uthaya hai. mein to iski bhuktbhogi hun phir bhi sirf yahi kahungi ki hum sab jyadatar apne sukh ke liye kuch likh rahe hain to ismien kisi ko bhi kisi prakar ki aapatti nhi honi chahiye.
    agar kuch log aisi tippani prakashit kar bhi dete hain to mamla tool pakadne lagta hai to usse achcha hai ki un par dhyan hi na diya jaye aur apne kaam mein lage rahein hum.
    aapki ye post padhkar agar kuch log sabak le sakein to achcha hi hai.

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  5. 8600 se zyada hindi blogs hai...vivaad hona ek bahut hi svabhaavik baat hai...aur is tarah ke comments jahaan tippanikaar ka maksad apna prachaar bhar hota hai,ye bhi ek aam si baat ho rahi hai...par kya sach me isse itna fark padta hai...aap ummeed bhi nai karte ki raah chalte har vyakti ko aapki humaari rachnao me koi roochi ho,unhe nahi thi naa ho...fir bhi unhone ek zabardasti ki tippani kar di,so bhi sahi...hum log is baat ko bagair tool diye aaage badh sakte hai...isme bura lagne ki ko khaas baat nai

    blog to kya,har darje par ho rahi traha tarah ki pratiyogitaao me puraskaar ke vaade bhar kar dene ki ek pratah si hai...fir se ye ek aam baat ho jaati hai...galat hai par jaane dijiye...

    iske alawa "vyom ke paar" waale matbhed me aapse thoda asehmat hoon...maine wo post padha tha jiske kaaran vivaad hua,agar mujhe pehle se iske baare me maloom na hota to usme kuch ajeeb nai lagtaa...maybe likhne wale ka "sense of humour" thoda maat khaa gaya,par kahin se bhi use ek ghatiya baat(jaisa ki ek alag post banake kaha gayaa tha) ya gaali(jaisa aap keh rahe hai) nahi kahaa ja sakta tha....aur bhi ek do baatein maine dekhi thi jiske kaaran mujhe laga ki ek maamle ko bekaar me tni hawaa di gayi thi...

    aise vivaado me hamesha hi main apne niji jhukaav ko peeche rakhke,shaant man se dekhta hoon ki sahi kyaa hi...fir se kehna chahoonga Sir...8600 blogs....issues to hone hi :)

    P.S- main bhi aksar apnee tippani ke sath apne blog ka link deta hoon..khaaskar naye blog par :)

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  6. yaheen aayi ek tipani ke javaab me:

    Shyam Sir...
    maaf kijiyega aapko ye gyaan kosh kahan se milaa ki paschimi desho me dost nahi hote...rishte hi nahi...aur sabse badi baat,wahaan ki blogging kisi bhi tarah se kamzor blogging hai....

    isi tarah ki bebuniyaad tippaniyan vivaad paida karti hai...baavnaao me behke kuch bhi na likh dijiye

    hindi blogging se hum sabko pyaar hai...ye ek parivaar jaisaa hai...ek doosre parivaar ki tauheen karke is parivaar ki garima ka bhi aap apmaan hi kar arhe hai

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  7. मुझे तो आपकी सभी बाते अच्छी लगीजी, कोशिश करुगा कि जिवन मे इन्ह अच्छी बातो को लक्ष्य बनाऊ। वैसे शास्त्रीजी लोग इतना लिखते क्यो है ? मुझे यह बात समझ नही आई ? ८५% लिखाई तो लोग पढते ही नही है। सिर्फ सर-चरी नजर लगाकर टिपिया देते है। मुझे बच्च्पन मे याद है अखबारो मे शिकायत कॉलम मे गॉवो कि समस्या लिखते थे, छपती भी थी पर हमे स्यमस्या से अधिक अपना नाम प्रकाशित होने कि खुशी ज्यादा होती थी। बस उस दिन पुरा दिन नाम ही पढते-पढाते रहे।

    खैर सर, यू ही चलता चलाता रहेगा।

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  8. यथा संभव ऐसे विवादों से बचने का प्रयास करना ही समझदारी है।आप ने अच्छा आलेख लिखा।

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  9. मयंक जी..देर सवेर हर ब्लॉगर ये बात कहता ही है..या कहूँ की कहनी ही पड़ती है..वाद -विवाद इस ब्लॉग्गिंग की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है..हाँ औचित्यपूर्ण है या निरर्थक ये भी थोड़े समय बाद अपने आप तय हो जाता है..जाहिर है की आपके और मेरे विचारों से ही....जहां तक तिप्प्न्नियों की बात है..तो इसके विषय में सिर्फ इतना कहना है की ...मतिर मतिर मतिर भिन्न...यानि सबका मत बिलकुल अलग होता है अंदाज भी..मैं अपनी कहूँ तो यदि मुझे अपनी बात कहने के लिए टिप्प्न्नी के रूप में अपनी पोस्ट पर लिखी गयी बात से भी ज्यादा कहना लिखना पड़े तो मैं तो जरूर लिखता हूँ..कभी किसी कविता के साथ सुर मिला कर कविता कर लेता हूँ..किसी व्यंग्य पर और भी चुटके ले लेता हूँ...और इसी तरह सबका अपना अपना मिजाज और सबका अपना अपना अंदाज होता है....

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  10. SHAASTRIJI KA AALEKH AUR SABHI MITRON KI TIPPANIYAN PADHI.....
    MUJHE ISMEN NA TOH KUCHH ACCHA LAGA, NA HI KUCHH BURA LAGA..............maine toh bas enjoy kiya ...mazaa liya.....sabhi jaagrat balogron ko haardik badhaai..

    MAZE KARO YAAR...............ha ha ha ha ha
    _________________________________________

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  11. मुझे ब्‍लाग जगत में आये ज्‍यादा समय तो नहीं हुआ, लेकिन जितना भी पढ़ा है और जाना है उससे तो यही कहूंगी की विवादित मेल या ब्‍लाग को नजर अन्‍दाज करना ही बेहतर है, आपने यह मुद्दा उठाया जिसके लिये आपका बेहद आभार ।

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  12. विवाद अपनी जगह हैं और रचनाकार की अनुमति के बिना रचना का प्रकाशन बिल्कुल अलग बात है. इस प्रकार की कार्यवाही ही गलत है. फ़िर रचनाकार के परिचय में छेडखानी!! गलत है. कम से कम बच्चों का दिल तो ना ही तोडा जाये.

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  13. ब्लोग लेखको की इस तरह स्वस्थ्य आलोचना की परम्परा को हमे बढावा देना होगा क्योंकि अभी ब्लॉग लेखन का यह शुरुआती दौर है समाज में यह मान्यता व्याप्त होनी चाहिये कि ब्लॉग लेखन एक उच्च दर्जे का सामाजिक कर्म है और ब्लॉग लेखक समाज के चिंतनशील एवं विचारवान प्राणि हैं जिस तरह समाज मे पुस्तक पढने की पृव्रत्ति है उसी तरह ब्लॉग पठन की आदत भी डालनी होगी इस विचार का प्रसार आवश्यक है.अभी हमारे 95 प्रतिशत बुद्धिजीवि ,लेखक, साहित्यकार और कला जगत के लोग ब्लॉग के विषय मे नही जानते .उन तक सकारात्मक सन्देश जाना आवश्यक है.अन्यथा ब्लॉग लेखन को कुछ सम्पन्न और मनचले लोगों का शगल मानकर नकार दिया जायेगा.ब्लॉग अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम तभी बन सकेगा वर्ना यह सिर्फ दूषित भावनाओं का उगालदान बंकर रह जायेगा. आईये हम सब मिलकर इसके लिये कोशिश करें -आपका शरद कोकास

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  14. भले ही आप कहें कि … इसे चुनौती के रूप में न लें … किन्तु चुनौती तो आपने दे दी है रूपचन्द जी।

    अब देखते हैं स्वीकार कौन करता है मौलिक, स्वस्थ लेखन व टिप्पणी को

    :-)

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केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।