लगभग दो वर्ष पूर्व की बात है। उन दिनों मैं उत्तराखण्ड सरकार में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य था।
मेरे साथ एक सज्जन आयोग में अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए जा रहे थे। गर्मी का मौसम था इसलिए रोडवेज बस की रात्रि-सेवा से जाने का कार्यक्रम बनाया गया। रुद्रपुर से हमें देहरादून के लिए एसी बस पकड़नी थी।
खटीमा से रात्रि 8 बजे चलकर 10 बजे रुद्रपुर पहुँचे। बस के आने में एक घण्टे का विलम्ब था। सोचा खाना ही खा लिया जाये। हम दोनों खाने खाने लगे।
हमारे पास ही एक व्यक्ति जो पुलिस की वर्दी पहने था। आकर बैठ गया।
हमने उससे कहा कि भाई! हमें खाना खा लेने दो।
हमने खाना खा लिया, लेकिन 3 पराँठे बच गये।
मैं इन्हें किसी माँगने वाले या गैया को देने ही जा रहा था कि वो बोला- ‘‘साहब ये पराँठे मुझे दे दीजिए। मैं सुबह से भूखा हूँ।’’
मैंने कहा- ‘‘पुलिस वाले होकर भूखे क्यों हो।’’
वह बोला- ‘‘साहब! मेरी जेब कट गयी है।’’
मैंने अब उससे विस्तार से पूछा और कहा कि पुलिस कोतवाली में जाकर कुछ खर्चा क्यों नही ले लेते?
वह बोला- ‘‘साहब! वहाँ तो मुझे बहुत झाड़-लताड़ खानी पड़ेगी। इससे तो अच्छा है कि किसी कण्डक्टर की सिफारिश करके बस में बैठ जाऊँगा।’’
बातों बातों में मुझे पता चला कि यह सिपाही तो खटीमा थाने में ही तैनात है। मैंने उसे पचास रुपये बतौर किराये भी दे दिये। जो उसने खटीमा आने पर मुझे चार-पाँच दिन बाद लौटा दिये थे।
मुझे उस दिन आभास हुआ कि भूख क्या होती है।
एक ब्राह्मण कुल में जन्मा व्यक्ति भूख में झूठे पराँठे और सब्जी खाने को भी मजबूर हो जाता है।
संवेदनशील पोस्ट मयंक जी। अच्छा लगा आपके कोमल एहसास को जानकर।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आदरणीय मयंक जी ..बड़ी ही अनोकी घटना सुनाई आपने, सच है भूख .प्यास .को किसी जाति धर्म से मतलब नहीं होता.
जवाब देंहटाएंवाक़ई यह वाक़िया यादगार है
जवाब देंहटाएं---
5 सबसे अच्छी एंटी-वायरस प्रणालियाँ
सोचने पर मजबूर करती घटना।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सबसे बड़ी बात यह कि भारत में कोई पुलिसवाला भूखा रहे और किसी धाबे वाले से मुफ़्त खिलाने को ना कहे यह बहुत बड़ी बात है। मेरे मन में उन पुलिस वाले दाज्यू के लिए सम्मान पैदा हुआ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
insaan pet ki khatir hi to sab kuch karta hai ........aur wo hi khali rah jaye to..........bhookh aisi hi hoti hai uske aage har koi bebas ho jata hai.mere father bataya karte the ki ek pandit ji the jab unhein panditayi ka kaam nhi miltne laga to pet ki khatir unhone naliyan saaf karne ka kaam bhi kiya . yeh unki aankhon dekhi ghatna thi.beshak apne sanskar nhi chode magar pet ki khatir karna wo bhi pada jo har insaan ke liye mumkin nhi.
जवाब देंहटाएं