जिस समय मैंने कक्षा 10 की बोर्ड की परीक्षा दी तो तीन महीने की लम्बी छुट्टियाँ पड़ गयीं। मैंने सोचा कि इनका सदुपयोग किया जाये। अतः इंग्लिश टाइपिंग सीखने का मन बना लिया।
उन दिनों मेरे गृह-नगर नजीबाबाद में मुल्ला जी एक टाइपिंग सेन्टर चलाते थे। वहाँ पर मैंने दस रुपये प्रतिमाह की दर से टाइपिंग सीखनी शुरू कर दी। लगन इतनी थी कि 4-5 दिनों में ही मैंने पूरा की-बोर्ड याद कर लिया और फटा-फट टाइप करने लगा। पिता जी ने मेरी रुचि देख कर दो सौ रुपये में मुझे एक टाइप-राइटर भी दिलवा दिया।
उन दिनों हिन्दी टाइपिंग ठीक से प्रचलन में नही था। लेकिन मेरे मन में अपनी मातृ-भाषा में ही टाइप करने की प्रबल इच्छा थी।
दो साल बाद इण्टर करने के बाद फिर तीन महीने की लम्बी छुट्टियाँ पड़ गयीं। मैं अपने मामा जी के पास घूमने चला गया। मेरे मामा जी के पास उन दिनों 20 खच्चरें थी और वो पहाड़ में माल पहुँचाने के जाने-माने ठेकेदार थे।
कभी-कभी वे नेपाल के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में भी आम जरूरत के सामान का भी ढुलान किया करते थे।
मेरी पहली नेपाल यात्रा 1967 में ही शुरू हुई थी। नेपाल जाकर मैंने देखा कि विदेशी सामान की एक दूकान पर कुछ पोर्टेबल टाइप राइटर भी रखे हुए थे। उनमें एक हिन्दी टाइप राइटर भी था। बस उसे देख कर मेरा मन ललचा गया।
मामा जी से पैसे लेकर वोटाइप-राइटर मैंने साढ़े पाँच सौ रुपये में खरीद लिया। घर आकर उसका अभ्यास किया तो एक सप्ताह में हिन्दी टाइपिंग भी सीख लिया।
अब मैं कमाने लगा था और 1995 आते-आते मेरी आथिक स्थिति भी अच्छी हो गयी थी। कम्प्यूटर का युग अब शरू हो गया था। अतः मैंने एक लाख रुपये व्यय करके एक कम्प्यूटर भी खरीद लिया था और 1997 में मैंने सिर्फ किताब को गुरू मान कर इसे चलाना सीख लिया था।
इसके 10 साल बाद नेट का युग भी आया। मैं अब नेट भी चलाने लगा था, परन्तु नेट पुराने गाने, गेम आदि खेलने के लिए ही प्रयोग करता था। तब तक ब्राड-बेण्ड नही आया था। इसलिए नेट बहुत धीमा चलता था।
सन् 2008 में मेरे नगर खटीमा में ब्राड-बैण्ड की सुविधा उपलब्ध हो गयी और जनवरी 2009 के अन्त में मन में इच्छा हुई की अपना एक ब्लाग बना कर उसमें कुछ लिखा जाये।
एक मित्र की कृपा से मेरा ब्लाग बन गया और तब से नियमित रूप से प्रतिदिन अपने ब्लाग उच्चारण में कुछ न कुछ अवश्य लिखता हूँ।
अभी परसों की ही बात है। मेरे घर में छुट-पुट निर्माण कार्य चल रहा था। शाम को 6 बजे जैसे ही राज-मजदूर छुट्टी करके गये। मैं नेट पर आ गया और अपने काम में तल्लीन हो गया था। लेकिन मच्छरों की क्वाइल जलाना भूल गया था। पैरो में मच्छर काट रहे थे और हाथ की बोर्ड पर चल रहे थे।
आखिर ये कैसा नशा है? कभी-कभी तो भूख-प्यास का भी आभास नही होता है और समय कब गुजर गया इसका पता ही नही लगता है।
क्या ब्लागिंग वास्तव में नशा है?
मयंक जी मुझे भी लगता है कि ये नशा ही है मै तो अभी सात माह से ही ब्लो्गिंग मे आई हूं अब हाल ये है की इस से चिपक कर रह गयी हूं अब पत्रिकायें पुस्तकें तो छूट सी गयी ह यहीम बहुत कुछ पढने को मिल जाता है शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपके इस उत्साह को सलाम करता हूं आपका जोश और काम करने की उमंग प्रेरणा देने वाली है।
जवाब देंहटाएंलगनशील तो आप हैं ही!
जवाब देंहटाएंअंतरजाल पर किए गए
क्रिया-कलापों से झलकता है!
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काश!
हम भी जान पाते कि
आपके ये मित्र कौन हैं?
जिसमें मन लग जाये वही नशा है । ब्लागिंग ने दुनिया समेट कर रख दी है आपके सामने । औरों के भाव पढ़ने में और अपने व्यक्त करने का इससे सुगम साधन और क्या हो सकता है भला ?
जवाब देंहटाएंmeri samajh me toh yah koi nasha nahin...kyonki nasha buddhi bhrasht karta hai aur ye buddhi ko va hamaaree soch ko vistaar deta hai use parishkrit karta hai ...sath hi nasha hamen achhe logon se door karta hai aur ye hamen roz roz naye naye guni logon k nazdeek lata hai...lekin aapke mutabik agar ye nasha bhi hai toh sarvotkrisht nasha hai ....main bhi ek maheene se iska aadi ho gaya hoon aur aaj sochta hoon ki kash!!!!!!!!!kash ye nasha mujhe kuchh saal pahle lag jata toh main voh nahin karta jisne mujhe barbaad kar diya ....bloging baba zindabad..zindabad
जवाब देंहटाएं-albela khatri
shastri ji
जवाब देंहटाएंpata nhi ye nasha hai ya kuch aur magar ab to halat ye hai ki blog par aaye bina chain nhi aata.
yahan ek apnepan ka ahsaas sa hota hai.kuch yun lagta hai jaise koi hamein bula raha hai agar ek din bhi isse door ho jao to.
main pahle kafi patrikayein padhti thi magar ab sab khatm ho gaya hai kyunki har tarah ki jankari ,kavita,kahani etc. sab yahin mil jata hai.
ho sakta hai ye nasha ho magar kuch nashe zindagi sanwaar bhi dete hain,shayad ye wo hi nasha hai.
जिस काम को पूरी लगन और विश्वास के साथ लगातार किया जाए वह तो अपने आप ही नशा बन जाता है। वैसे तो लिखना ही अपने आप में सबसे बड़ा नशा है। जब आप लिखते हैं तो उसमें एक जुनून होता है। और आप चाहते हैं कि आपका यह जुनून सबके सामने भी आए। ऐसे में ब्लाग ने लिखने वालों को एक माध्यम दे दिया है। आज ब्लाग बिरादरी में लगातार लिखने वाले इसके नशे के आदी हो गए हैं। चलो कम से कम यह एक ऐसा नशा है जो लाभदायक है। अगर सभी इसी तरह से काम का नशा करने लगे तो फिर शराब और दूसरे नशों की जरूरत की क्यों कर पड़े। हमें भी लगता है कि ब्लाग का नशा लग गया है, वरना रात को रोज प्रेस का काम समाप्त करके एक-दो बजे सोने के बाद ब्लाग लिखने के लिए ही हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं। जब ब्लाग जगत से नहीं जुड़े थे तो देर तक सोते थे और 9 बजे से पहले कभी नहीं उठते थे, पर अब 6 बजे उठ जाते हैं। यह इस बात का सबूत है कि ब्लागिंग एक लाजवाब और खुबसूरत नशा है जिसे हर कोई करना चाहेगा, जिसे हर उस इंसान को करना चाहिए जिसको लेखन में थोड़ी सी भी रूचि है।
जवाब देंहटाएंयही हाल हमारा भी है ....
जवाब देंहटाएंयही हाल हमारा भी है ....
जवाब देंहटाएंयही हाल हमारा भी है ....
जवाब देंहटाएंइसी को प्यार कहते हैं..
जवाब देंहटाएंयह सही है की किसी भी kaary का vyasan नहीं hona चाहिए,पर नशा yadi सही और अच्छे काम का हो तो इससे अच्छा तो और कुछ हो ही नहीं सकता...
जवाब देंहटाएंSarthak कर्म में satat sanlagn rahen,yshi shubhkamna है.
एक कैफ़ियत सी है,नशा भी कह सकते है,पर जब तक बिल्कुल दीवानगी की हद को पार ना करे ऐसी कोई बुराई नही है
जवाब देंहटाएंनाटक का दूसरा अंक पोस्ट कर दिया है,पढ़ियेगा
मयंक जी, ये एक नशा ही है क्यौंकी मै पिछले ढाई साल से ब्लोग्गिं कर रहा हु, बहुत बार इस्से दुर रहने की कोशिश की लेकिन कामयाब नही हुआ। अब चाहे जो हो जाये हर हाल हम अपने कम्पुटर मे सर दिये बैठे होते है और अब तो इस आदत से घर वाले आज़िज़ आ चुके है कोई केह्ता है तबियत खराब हो जायेगी। कोई केह्ता है आखें खराब हो जायेगीं
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