(१९९८ में मेरी वैवाहिक जीवन की 25वीं वर्ष-गाँठ पर ठा. कमलाकान्त सिंह आशीर्वाद देते हुए)
मेरे घर के आगे रबड़ प्लाण्ट का एक विशाल छायादार पेड़ है। इसकी छाया इतनी घनी है कि हल्की-फुल्की बारिश से भी इसके नीचे खड़े होने से बचाव हो जाता है। मेन रोड पर घर होने के कारण इसके नीचे अक्सर राहगीर थोड़ा सा जरूर सुस्ता लेते हैं।
मेरे एक अभिन्न मित्र थे ठाकुर कमलाकान्त सिंह जो कि आयु में मेरे पिता समान थे। परन्तु वे बहुत जिन्दादिल इन्सान थे। शहर के जाने-माने धनाढ्य व्यक्ति होने पर भी उनका मुझ पर स्नेह था। इतना ही नही वो मुझे अपना दादा-गुरू मानते थे। कभी-कभी जब मेरा विवाद पार्टी के लोगों से हो जाता था तो ठाकुर साहब सदैव ही मेरा पक्ष लिया करते थे।
सच पूछा जाये तो पं.नारायण दत्त तिवारी जी से उन्होंने ही मुझे सबसे पहले परिचित कराया था। शहर में उनका एक मात्र थ्री-स्टार होटल ‘‘बेस्ट-व्यू’’ के नाम से आज भी सुस्थापित है। जिसका शिलान्यास भी पण्डित नारायण दत्त तिवारी ने किया था और इसका उद्घाटन भी उनके ही कर कमलों से हुआ था। मुझे याद है कि इस कार्यक्रम का संचालन मैंने ही किया था।
सन् 1994 की बात है। उन दिनों उनका होटल नया-नया ही बना था। वो रबड़-प्लाण्ट की पौध अपने होटल के लिए लाये थे।
मैं उनके पास बैठा था कि वो अचानक बोले- ‘‘शास्त्री जी! आपको रबड़-प्लाण्ट लगाना है तो ले जाइए।’’
उनकी बात पर मैं यह सोच कर चुप रहा रहा कि इन्होंने पन्त-नगर से यह पौध मँगाई हैं । अतः मेरा माँगना उचित नही रहेगा। थोड़ी देर उनके पास बैठ कर मैं वापिस अपने घर आ गया।
अगले दिन मैंने देखा कि ठाकुर साहब अपनी मारूति वैन में बैठ कर जब मेरे घर आये तो आये उनके साथ रबड़-प्लाण्ट का एक पौधा भी था।
उन्होंने इसे मेरे घर के सामने अपने हाथों से लगा दिया और कहा- ‘‘शास्त्री जी! मैं तो नही रहूँगा परन्तु यह पौधा आपको मेरी याद दिलाता रहेगा।"
सन् 2002 में ठाकुर साहब तो परलोक सिधार गये परन्तु यह रबड़-प्लाण्ट जो आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है। मुझे उनकी याद दिलाता रहता है।
इस वृक्ष को देख कर मुझे ऐसा लगता हैं कि ठाकुर कमलाकान्त सिंह का हाथ आज भी मेरे सिर पर है।
SHASTRI JI.
जवाब देंहटाएंTHAKUR KAMLA KANT SINGH MUJHE GURU KAHATE THE AUR MERE GURU AAP HEIN.
ISLIYE VO AAPKO DADA-GURU KAHATE THE.
बड़ों की छत्रछाया हमेशा रहती है
जवाब देंहटाएंकिसी भी रूप में रहे .