एक सेठ जी थे और एक पण्डित जी थे।
सेठ जी कपड़े के व्यापारी थे। काफी धनाढ्य थे।
पण्डित जी उनके पास अक्सर आकर बैठ जाया करते थे। अपनी पुरोहिताई से मुश्किल से गुजर-बसर करते थे। वे लाला जी को आते ही राम-राम कर लेते थे।
कुछ दिनों में पण्डित जी ने पुरोहिताई से कफी धन जमा कर लिया।
अब वे लाला जी को राम-राम नही करते थे। लाला जी ने सोचा कि इस पण्डित के पास धन इकट्ठा हो गया हे इसलिए इसके मन में पैसे का घमण्ड आ गया है।
कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन पण्डित जी ने लाला जी से कहा- ‘‘लाला जी! मेरे पास कुछ पैसा इकट्ठा हो गया है। मुझे भी कोई व्यापार करा दो।’’
लाला जी तो चाहते ही यही थे।
तपाक से बोले- ‘‘पण्डित जी! आजकल कद्दू काफी सस्ता हो रहा है। आप कद्दू खरीद कर रख लो। कुछ दिनों में ये महँगा हो जायेगा तो इसे बेच देना।’’
पण्डित जी की समझ में लाला जी की बात आ गयी।उन्होंने एक गोदाम किराये पर लिया और कद्दू का भण्डारण कर लिया।
कुछ दिनों में कद्दू बहुत महँगा हो गया।
पण्डित जी ने लाला जी का धन्यवाद किया और पूछा- ‘‘लाला जी! अब कददू बेच दूँ।’’लाला जी ने कहा- ‘‘अरे क्या गजब करते हो? तुम पण्डित लोग व्यापार करना तो जानते ही नही। थोड़े दिन और तसल्ली करो। अभी कद्दू और महँगा जायेगा।’’
पण्डित जी ने लाला जी की बात मान ली । आखिर व्यापार भी तो उनकी सलाह से ही किया गया था। थोड़े दिन में कददू की नई फसल आ गयी। कद्दू अब सस्ता हो गया था।
इधर गोदाम में कदृदू सड़ने भी लगा था।
लाला जी ने इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग को कर दी। पण्डित जी को अब अपने खर्चं से कद्दू फिंकवाना पड़ा।
पण्डित जी का सारा धन खर्च हो चुका था।
अब भी वी लाला जी की दूकान पर आते हैं और पहले की तरह लाला जी को राम-राम करते हैं।
किसी ने ठीक ही कहा है- ‘‘जिसका काम उसी को साजे, दूसरा करे तो मूँगरा बाजे।"
शिक्षाप्रद कहानी है शास्त्री जी, और स्टॉक मार्केट पर फिट बैठती है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, राम-राम!
जवाब देंहटाएंmain pcg se sahmat hun.
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