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रविवार, मई 24, 2009

‘‘अपना-अपना भाग्य’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

मेरा विवाह यही कोई 20 वर्ष की आयु में हो गया था। उस समय मैं तथा मेरी तीनों छोटी बहनें पढ़ती थी।
पिता जी का कारोबार तो था परन्तु खर्चे भी थे। क्योंकि पिता जी कमाने वाले अकेले थे और एक छोटी सी आढ़त की दूकान थी उनकी , नजीबाबाद में।
शादी से पूर्व मुझे देखने के लिए लडकी वाले आने वाले थे। कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था, इसलिए मैनेज करने में कोई दिक्कत नही हुई।
हम लोग लड़की वालों को पहले से ही जानते थे। वे उस समय धनाढ्य व्यक्ति थे।

हमारी हैसियत और उनके जीवन-स्तर में 1 और 10 का अन्तर था।
मेरे मुहल्ले में पड़ोस में बाबूराम नाम के लड़के की 2 माह पहले ही शादी हुई थी। हम लोग उनके यहाँ से सोफा माँग कर ले आये थे।
लड़की वाले सुबह को करीब 8 बजे आ गये। अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक उनकी आव-भगत की गयी। वो लोग भी बड़े खुश थे। दोपहर बाद 3 बजे की उनकी ट्रेन थी। अतः रिश्ता पक्का करके वो लोग खाना खाकर विदा हुए।
हमने भी चैन की साँस ली और पड़ोसी बाबूराम का सोफा वापिस करने की तैयारी में लग गये। सोफा कमरे से बाहर निकाल लिया गया था। बस उसे पहुँचाना बाकी था।
तभी देखा कि लड़की वाले पुनः हमारे दरवाजे पर थे। उनको देख कर हम लोग हक्के-बक्के रह गये।
कोई बहाना सूझ ही नही रहा था।
तभी मेरी बहिन बोली - ‘‘सोफा अन्दर रखवाओ ना। मैं बैठक में गोबर बाद में लीप दूँगी।"
उन्हें शादी सम्बन्धी कोई बात पूछने से रह गयी थी उसे ही तय करने के लिए ये लोग दोबारा वापिस आये थे।
खैर, पिता जी को दूकान से वापिस बुलाया गया और मेहमान आवश्यक बात करके चले गये।
पिता जी को जब यह बात पता लगी तो उन्होंने माता जी को बहुत डाँटा।
शाम तक पिता जी सौ रुपये में एक शीशम का बढ़िया सोफा बैठक के लिए खरीद कर ले आये थे।
इसके बाद मेरा विवाह हो गया। बड़ी धूम-धाम से पिता जी ने मेरी शादी की थी।
उन दिनों बहुएँ सलवार-सूट ससुराल में नहीं पहनतीं थी। हमारी श्रीमती जी को शादी में भारी साड़ियाँ मिलीं थी। 2 दिन बाद इन्होंने मुझसे एक हल्की-फुलकी सूती साड़ी लाने के लिए कहा। परन्तु मेरे पास पैसे कहाँ से आते?
मैं श्रीमती जी को ना नहीं कह सका। लेकिन खाली हाथ बाजार भी तो नही जा सकता था।
उन दिनों मेरा एक मित्र था। उसके पिता जी की कपड़े की दूकान थी। मैंने उससे यह समस्या बताई तो वह मुझे अपनी दूकान पर ले गया और एक से एक बढ़िया साड़ियाँ दिखाईं। मैं कुछ संकोच करने लगा तो उसने दो अच्छी किस्म की साड़ियाँ मुझे दिला दी।
कहते हैं कि परिवार में सब अपना-अपना भाग्य साथ लेकर आते हैं। जब से मेरी पत्नी मेरे घर में आईं हैं। तब से मेरे घर में समृद्धि बढ़ती ही गयी है।
आज स्थिति यह है कि मेरी ससुराल वालों में-
और मेरे जीवन स्तर में 10-1 का अन्तर है।
इसे ही कहते हैं- अपना-अपना भाग्य।


4 टिप्‍पणियां:

  1. संस्मरण पढ़कर अच्छा लगा।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. अंतिम तीन पंक्तियों ने
    इस अद्वितीय संस्मरण में
    10-1 का अंतर ला दिया है!

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके लेखन की सहजता तो पसंद है पर भाग्यवाद से भरे आपके दर्शन से सहमति नहीं।

    जवाब देंहटाएं

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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
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6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।