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शनिवार, मई 23, 2009

जगह का नाम खटीमा क्यों पड़ा?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


खटीमा यों तो एक बहुत पुरानी बस्ती है। यह आदिवासी क्षेत्र है।

(थारू समाज के लोगों की पारम्परिक वेष-भूषा)

मुगलों के शासनकाल में इसे थारू जन-जाति के लोगों ने आबाद किया था। अर्थात् यहाँ के मूल निवासी महाराणा प्रताप के वंशज राणा-थारू है।
थारू समाज के एक व्यक्ति से मैंने इस जन-जाति के विकास के बारे में पूछा तो उसने मुझे कुछ यों समझाया।
‘‘जिस समय महाराणा प्रताप स्वर्गवासी हो गये थे। तब बहुत सी राजपूत रानियों ने सती होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। लेकिन कुछ महिलायें अपने साथ अपने दास-दासियों को लेकर वहाँ से पलायन कर गये थे । उनमें हमारे पूर्वज भी रहे होंगे। ये तराई के जंगलों में आकर बस गये थे।
’’मैने उससे पूछा- ‘‘इस जगह का नाम खटीमा क्यों पड़ गया?’’
उसने उत्तर दिया-
‘‘उन दिनों यहाँ मलेरिया और काला बुखार का प्रकोप महामारी का विकराल रूप ले लेता था। लोग बीमार हो जाते थे और वो खाट में पड़ कर ही वैद्य के यहाँ जाते थे। इसीलिए इसका नाम खटीमा अर्थात् खाटमा पड़ गया।’’
उसने आगे बताया-
‘‘थारू समाज में विवाह के समय जब बारात जाती है तो वर को रजाई ओढ़ा दी जाती है और खाट पर बैठा कर ही उसकी बारात चढ़ाई जाती है। वैसे आजकल रजाई का स्थान कम्बल ने ले लिया है। इसलिए भी इस जगह को खाटमा अर्थात् खटीमा पुकारा जाता है।’’

(खटीमा में थारू नृत्य का मंचन)

संक्षेप में मुझे इतना ही खटीमा का इतिहास पता लगा है।
आशा है कि इससे आपके ज्ञान में जरूर कुछ इजाफा हुआ होगा।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

5 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार आपके ब्लाग पर आना हुआ। खटीमा की कथा बेशक गल्प सही- लेकिन ऎसे गल्प से भी इतिहास के भीतर उतरा जा सकता है। अच्छा लगा। फ़िर जिन जगहों का कोई लिखित इतिहास नहीं वहां के बारे में लोक कथाएं, किंवदन्तियां आदि ही वह स्रोत हो सकते हैं जो वास्तविक इतिहास की तह तक पहुंचने में सहायक हो सकते हैं। उन किस्सॊं में जो अतार्किक छूट जा रहा है, उसे बस थोडा झाड बुहार लें तो इतिहास को जाना जा सकता है। अच्छी, उपयोगी जानकारी पोस्ट की है आपने इस लिहाज से।
    बहुत बहुत आभार।

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  2. जब पोस्ट आपने लिखी है,
    तब ज्ञान में
    कुछ न कुछ इजाफा तो होगा ही!

    जवाब देंहटाएं
  3. ज्ञानवर्धन तो हुआ ही!! आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. जानकारी देने के लिए धन्‍यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. अद्भुत जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा !

    जवाब देंहटाएं

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विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।