किम् संस्कतिः?
(संस्कृति क्या है?)
या सम्यक् क्रियते सा संस्कृतिः।
(जो सम्यक् (भद्र) किया जाता है, वह संस्कृति है।)
अब प्रश्न उठता है कि - सम्यक् क्या है?
किसी कार्य को करने से पहले यदि उत्साह, निर्भीकता और शंका न उत्पन्न हो तो उसे सम्यक् कहा जायेगा और शंका,भय और लज्जा उत्पन्न हो तो वह सम्यक् अर्थात् भद्र नही कहा जा सकता।
ओम् अच्छिन्नस्यते देव सों सुवीर्यस्य
रायस्पोषस्य दद्तारः स्याम।
सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्वारा
स प्रथमो वरुणो मित्रो अग्निः।। (यजुर्वेद 7 । 14)
(अर्थ- हे सोमदेव, शान्ति प्रदाता, दिव्यगुण युक्त परमेश्वर! आपसे प्राप्त अच्छिन्न और सुवीर्ययुक्त पोषण करने वाले धन को देने वाले होवें, वह प्रथमा संस्कृति है, जिसको संसार ने स्वीकार किया था। प्रथम मित्र (अवगुणों को दूर करने वाला) और वरुण (सद् गुणों को देने वाला) वह अग्नि है जो सदा आगे ले जाने वाला (अग्रेनयति) और ऊपर ले जाने वाला (ऊर्ध्व गमयति) है।)
यजुर्वेद के उपरोक्त मन्त्र मे कहा गया है कि-
संस्कृति एक है क्योंकि इस मन्त्र मे संस्कृति का एक वचन मे प्रयोग किया गया है।
संस्कृति के साथ किसी विशेषण का प्रयोग नही हुआ है अर्थात् संस्कृति का कोई विशेषण नही होता है।
अच्छिन्न है अर्थात् संस्कृति में कोई छेद नही होता है। छिद्ररहित होने के कारण यह प्रणिमात्र के छिद्रों को दूर करती है।
वीर्य से परिपूर्ण है अर्थात् संस्कृति प्राणिमात्र को पुष्ट करती है और
संस्कृति का प्रमुख लक्षण है कि यह देने वाली है।
अब आप मनन और विचार कीजिए कि-
1- संस्कृति एक है तो संसार में अनेक संस्कृतियों की चर्चा क्यों की जाती है?
2- संस्कृति का कोई विशेषण नही है अर्थात् संस्कृति किसी नाम से नही पुकारी जाती है तो देश भेद से भारतीय संस्कृति, योरोपीय संस्कृति, अमेरिकन...,चीनी.....और मत मतान्तर भेद से हिन्दु संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति, ईसाई संस्कृति आदि पुकारने का क्या औचित्य है?
3- संस्कृति में छिद्र नहीं है तो - प्रत्येक मत-मतान्तर तथाकथित अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों मानते हैं?
4- संस्कृति सबका पोषण करने वाली है तो प्रत्येक पदार्थ में मिलावट करके प्राणियों को नष्ट करने का उपक्रम तथाकथित संस्कृति वाले क्यों कर रहे हैं?
5- दान प्रत्येक मानव का अनिवार्य कर्तव्य है तो लोग भीख, जुआँ, चोरी आदि क्यों करते हैं?...........
क्रमशः..............
(साभार "संस्कृति एवं सभ्यता")
बहुत सुन्दर जानकारी, शास्त्री जी, अगर देखा जाए तो सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पूरक माने जाते थे, यानी जैसी हमारी संस्कृति थी वैसी ही हमारी सभ्यता भी होनी चाहिए थी मगर है आज इसके बिलकुल उलट ! रही बात भिन्न-भिन्न संस्कृति की तो जो संस्कृति का पौराणिक श्लोक आपने बताया, हो सकता है वह सिर्फ भारतीय सन्दर्भ में रचा गया हो !
जवाब देंहटाएंgodiyal ji ki baat mein dam hai.........baki agla part padhne ke baad pata chalega.
जवाब देंहटाएंविद्वान टिप्पणीकारों!
जवाब देंहटाएंएक ही सुर में क्यों सुर मिलाते हो?
वेद दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तक है और
वैदिक संस्कृति ही पुरातन और सनातन है।
अतः संस्कृति का विभाजन क्योंकर हो सकता है?
जिस मन्त्र को आदरणीय गोदियाल जी पौराणिक श्लोक कह रहे हैं यह पुराणों से उद्धृत नही है, यह तो वेद-मन्त्र है जी!
संस्कृति वह है जो हमें एक सार्थक जीवन की राह दिखाती है..अपनी संस्कृति को नमन है..बढ़िया प्रस्तुति आभार.
जवाब देंहटाएंsaadhu saadhu !
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