मुझे आभास हो गया है कि ज़ालजगत पर भी सहृदय लोग हैं। सच पूछा जाए तो यह आभासी दुनिया वास्तविक जगत से बहुत अच्छी है।
फेस बुक पर भी बहुत से मित्र हैं मेरे और ब्लॉगिंग करने के नाते जी-मेल और ब्लॉगिस्तान में भी मेरे शुभचिन्तकों की कमी नहीं है!
लगभग एक सप्ताह पुरानी बात है। मैं उस समय बाज़ार में किसी के पास बैठा था कि मेरे मोबाइल पर एक कॉल आयी "मैं महेन्द्र श्रीवास्तव बोल रहा हूँ! शास्त्री जी आप खटीमा में ही रहते हैं क्या?"
मैंने उत्तर दिया कि आप कहाँ पर हैं इस समय!
महेन्द्र श्रीवास्तव जी ने उत्तर दिया कि मैं खटीमा के एरिया में ही आया हुआ हूँ और इस समय शहीद स्मारक के पास हूँ। आपका निवास कहाँ है? मैं आपसे मिलना चाहता हूँ! मैंने महेन्द्र श्रीवास्तव जी को कहा "आप आ जाइए, मेरा निवास स्थान सौरभ अस्पताल के बराबर में टनकपुर रोड पर है। वैसे आप खटीमा में यदि किसी से भी पूछ लेंगे कि शास्त्री जी का निवास कहाँ है तो वो आपको बता देंगे।"
मैं भी पाँच मिनट में बाज़ार से अपने घर पर आ गया था। देखा तो एक इनोवा मेरे घर के बाहर आकर रुकी और उसमें से 3 लोग बाहर आये। जिनमें एक सहारा समय के स्थानीय रिपोर्टर थे और हरी टी-शर्ट में महेन्द्र श्रीवास्तव थे। तीसरा व्यक्ति शायद कैमरामैन रहा होगा।
महेन्द्र श्रीवास्तव जी से मिल कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे कि हमारी बहुत पुरानी जान पहचान हो।
चाय की चुस्कियों के बीच बहुत सारी बातें हुईं और महेन्द्र श्रीवास्तव जी के ब्लॉग आधा सच का एक हैडर भी मैंने उनके लिए बना दिया। जिससे आधा सच बहुत आकर्षक लगने लगा। लेकिन उसके खुलने में बहुत दिक्कत थी जिसे मैंने कुछ विजेट और एचटीएमएल कोड हटाकर ठीक कर दिया। अब आधा सच आसानी से खुलने लगा था।
जैसे ही चाय समाप्त हुई, महेन्द्र श्रीवास्तव जी कहने लगे कि अब शाम घिरने लगी है, रात में शायद श्यामलाताल में ही विश्राम करना होगा।
जाते-जाते मैंने महेन्द्र जी को अपनी हाल में ही प्रकाशित दो पुस्तकें-"धरा के रंग" और हँसता गाता बचपन" भी उपहार में दीं।
तीसरे दिन सुबह सवेरे ही महेन्द्र श्रीवास्तव जी पुनः मेरे निवास पर आये और पर्यावरण पर मेरा एक छोटा सा इंटरव्यू भी लिया। बातों बातों में पता लगा कि पड़ोसी देश नेपाल के शहर महेन्द्रनगर "महेन्द्र श्रीवास्तव" न करें ऐसा भला कैसे सम्भव था। इन्होंने यहाँ भी एक रात गुजारी थी। यह थी एक सुखद और अप्रत्याशित भेंट आभासी दुनिया के एक मित्र से। जो मुझे हमेशा याद रहेगी।
सर! इस मुलाक़ात के बारे मे पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसादर
mujhe bhi is abhashi duniya me behad achcha lagta hai shastri ji aapki kavitaye bhi behad pasand aati hai... meri bhi mulakat is abhishi duniya se jude vyaktiyon se hui evam jeevan ke abhinn ang ban gaye jai ho sadaiv shubh ho..
जवाब देंहटाएंmujhe bhi is abhashi duniya me behad achcha lagta hai shastri ji aapki kavitaye bhi behad pasand aati hai... meri bhi mulakat is abhishi duniya se jude vyaktiyon se hui evam jeevan ke abhinn ang ban gaye jai ho sadaiv shubh ho..
जवाब देंहटाएंचलिये यह तो बहुत ही अच्छी बात हुई सारी वार्ता पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आप दोनों का मिलना
जवाब देंहटाएंनिस्वार्थ होते हैं यह रिश्ते.
जवाब देंहटाएंप्रेम और सम्मान के आदान प्रदान से बने इन रिश्तो के कारण यह आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से ज्यादा खूबसूरत हो गई है.मुझे भी तो आप जैसा भाई महफूज़,पद्म जैसा भाई ,समीरलालजी जैसा दादा,अशोक सलुजा जी पाबलाजी जैसे वीरे मिले. अर्चना चाओजी और रश्मिप्रभा जी जैसी प्यारी दोस्त भी. विपिन पटेल,मुकेश सिन्हाप्रशांत प्रियदर्शी,,आशीष रस्तोगी,मनोज खत्री ,रजिव्नंदन जैसे नन्हे नन्हे कृष्ण मिले. कुछ नाम और भी हैं हा हा हा जैनी शबनम आत्मा का हिस्सा बन गई तो स्तुति,अनुराधा,अनामिका,अनीता सिंह के प्यार को क्या नाम दूँ.
आप भाग्यशाली है.मिलते है प्रत्यक्ष और मैं............. फिर मेरे हिस्से में प्रतीक्षा लिखी मेरे कृष्णा ने.हा हा हा पढकर अच्छा लगा महेंद्र जी से आपका मिलन का सिलसिला अटूट रहे.
सुखद अहसास.
जवाब देंहटाएंबहुत सुखद लगा पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंbahut badiya.....ahsas
जवाब देंहटाएंshastri ji vaapas aakar jaise hi face book khola to yeh link mila .mahendra ji se aapki mulakat ka vivran padh kar bahut achcha laga.baki sab blog par kal jaaungi aaj hi andmaan island se lauti hoon kuch achche anubhav ke saath jaldi hi share karungi.
जवाब देंहटाएंबढिया मुलाकात।
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र जी के ब्लाग में इस मुलाकात के बारे में पढा था और अब यहां पढने मिला।
सच में अच्छा लगा।
Achcha laga jankar..... Mahendraji ke blog ki post me bhi kuchh aise hi bhav the....
जवाब देंहटाएंkisi din hum bhee aapke darshan karne zarur aayenge!
जवाब देंहटाएंआद. शास्त्री जी हमारी मुलाकात के पहले फोन पर हुई सभी बातों को जिस तरह से रखा है, लग ही नहीं रहा कि हम सप्ताह भर पहले मिले थे। ये सब पढने के बाद लग रहा है कि हमारी चाय अभी खत्म नहीं हुई है।
जवाब देंहटाएंबहरहाल मित्रों ब्लाग शुरू किए अभी सिर्फ आठ महीने ही हुए हैं, एक दो मित्रों से मेरी फोन पर जरूर बात हुई है, पर मेरी मुलाकात आज तक किसी से नहीं हो सकी थी।
पहली मुलाकात शास्त्री जी से होने के बाद मुझे अब ये लगने लगा है जहां कहीं भी जाना हो, अगर वहां अपने ब्लाग परिवार से जुडा कोई भी सदस्य हो तो एक छोटी सी ही सही, पर मुलाकात तो बनती ही है।
छोटी सी मुलाकात में शास्त्री जी ने जो स्नेह दिया वो पहले ही मैं व्यक्त कर चुका हूं।
वैसे मित्रों मेरी सलाह है कि शास्त्री जी अगर मिलना है और उनके अनुभवों का लाभ उठाना है तो कम से कम दो दिन आपको खटीमा में बिताना ही होगा। मेरी मुलाकात जरूर दो बार हुई, पर बहुत छोटी थी, मन नहीं भरा।...
मेरे ब्लाग पर इस मुलाकात को भी देख सकते हैं..
http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/11/blog-post_27.html
ब्लॉग पढ़ते -लिखते एक जानपहचान सी हो जाती है ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इसे पढना !
आदरणीय शाष्त्री सर..
जवाब देंहटाएंइस मुलाक़ात की कहानी उत्साहित करती है...
आधा सच का हेडर बढ़िया बना है...
आपको एवं आदरणीय महेंद्र जी को बधाइयां...
सादर...
आभासी सुख का सुखद एहसास।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है जब ऐसी मुलाकातें होती है ..
जवाब देंहटाएंकितनी मधुर होती हैं ऐसी मुलाकात .... लगता हि नहीं कि पहली बार मिल रहें हो ...यहाँ पर हम एक परिवार की तरह बन गए हैं ..बहुत अच्छा लगा ये सुखद पल आपने हमारे साथ साझा किये ...
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