मित्रों!
गतवर्ष बाल कविताओं की मेरी प्रथम बालकृति 'नन्हे सुमन' के नाम से प्रकाशित हुई थी। उन दिनों हिन्दी ब्लॉगिंग के पुरोधा आदरणीय समीर लाल 'समीर' भारत आये हुए थे। दूरभाष पर बातें हुईं और उन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिखने की सहर्ष स्वीकृति मुझे प्रदान कर दी। मैंने मेल से उन्हें 'नन्हे सुमन' की पाण्डुलिपि भेज दी और उन्होंने एक सप्ताह के भीतर इसकी भूमिका लिखकर मुझे मेल कर दी। मैं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए इस भूमिका को आपके साथ साझा कर रहा हूँ!
भूमिका
एक अद्भुत संसार - 'नन्हें सुमन'
आज की इस भागती दौड़ती दुनिया में जब हर व्यक्ति अपने आप में मशगूल है। वह स्पर्धा के इस दौर में मात्र वही करना चाहता है जो उसे मुख्य धारा में आगे ले जाये, ऐसे वक्त में दुनिया भर के बच्चों के लिए मुख्य धारा से इतर कुछ स्रजन करना श्री रुपचन्द्र शास्त्री ’मयंक’ जैसे सहृदय कवियों को एक अलग पहचान देता है।
‘मयंक’ जी ने बच्चों के लिए रचित बाल रचनाओं के माध्यम से न सिर्फ उनके ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन का बीड़ा उठाया है बल्कि उन्हें एक बेहतर एवं सफल जीवन के रहस्य और संदेश देकर एक जागरूक नागरिक बनाने का भी बखूबी प्रयास किया है।
पुस्तक ‘नन्हें सुमन’ अपने शीर्षक में ही सब कुछ कह जाती है कि यह नन्हें-मुन्नों के लिए रचित काव्य है। परन्तु जब इसकी रचनायें पढ़ी तो मैंने स्वयं भी उनका भरपूर आनन्द उठाया। बच्चों के लिए लिखी कविता के माध्यम से उन्होंने बड़ों को भी सीख दी है!
‘डस्टर’ बहुत कष्ट देता है’’ कविता का यह अंश बच्चों की कोमल पीड़ा को स्पष्ट परिलक्षित करता है-
‘‘कोई तो उनसे यह पूछे,
क्या डस्टर का काम यही है?
कोमल हाथों पर चटकाना,
क्या इसका अपमान नही है?’’
‘नन्हें सुमन’ में छपी हर रचना अपने आप में सम्पूर्ण है और उनसे गुजरना एक सुखद अनुभव है। उनमें एक जागरूकता है, ज्ञान है, संदेश है और साथ ही साथ एक अनुभवी कवि की सकारात्मक सोच है।
आराध्य माँ वीणापाणि की आराधना करते हुए कवि लिखता है-
‘‘तार वीणा के सुनाओ कर रहे हम कामना।
माँ करो स्वीकार नन्हे सुमन की आराधना।।
इस ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
तम मिटाकर सत्य के पथ को दिखाओ,
लक्ष्य में बाधक बना अज्ञान का जंगल घना।
माँ करो स्वीकार नन्हे सुमन की आराधना।।’’
मेरे दृष्टिकोण से तो यह एक संपूर्ण पुस्तक है जो बाल साहित्य के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान स्थापित करेगी। मुझे लगता है कि इसे न सिर्फ बच्चों को बल्कि बड़ों को भी पढ़ना चाहिये।
मेरा दावा है कि आप एक अद्भुत संसार सिमटा पायेंगे ’नन्हें सुमन’ में, बच्चों के लिए और उनके पालकों के लिए भी!
कवि ‘‘मयंक’’ को इस श्रेष्ठ कार्य के लिए मेरा साधुवाद, नमन एवं शुभकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
http://udantashtari.blogspot.com/
36, Greenhalf Drive
बहुत बहुत बधाई …………समीर जी ने बहुत सुन्दर समीक्षा की है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
बहुत बहुत बधाई सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बधाई सर,
जवाब देंहटाएंसादर...
जिसकी भूमिका इतनी सुंदर है वो पुस्तक कितनी सुंदर होगी
जवाब देंहटाएंसुंदर पुस्तक के प्रकाशन पर बधाई
बाल सुमन के लिए समीर जी ने बहुत ही सुन्दर भूमिका लिखी है..
जवाब देंहटाएंसच तो यही है की बच्चों के लिए लिखना सहज नहीं ..आपने बच्चों के लिए लिखा यह बहुत ही सराहनीय और अनुकरणीय कदम है... भूमिका पढ़कर सहज से अनुमान लगाया जा सकता है ही आपने गहराई से सुन्दर रचनाओं के माध्यम से सबके लिए सन्देश पहुँचाया है....बाल सुमन ही प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनायें..
समीर जी ने बहुत सुन्दर भूमिका दी है..निश्चय ही पुस्तक भी उतनी ही सुन्दर होगी...बहुत बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंvah ati sundar ...badhai.
जवाब देंहटाएं