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शुक्रवार, जून 11, 2010

क्या सच्चा वैदिक धर्म यही है ? (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“मेरी निजी विचारधारा”

[w02491_o5.jpg]अपनी अल्प-बुद्धि से यह लेख लिखने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूँ कि मेरी विचारधारा किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने की नही है। यह केवल मेरी अपनी व्यक्तिगत मान्यता है। मैं हिन्दु धर्म का विरोधी नही हूँ, बल्कि कृतज्ञ हूँ कि यदि हिन्दू नही होते तो वेदों का प्रचार-प्रसार करने वाले स्वामी देव दयानन्द कहाँ से आते?
वैदिक विचारधारा क्या है? इस पर हमें गहराई से सोचना होगा। उत्तर एक ही है कि ‘वेदो अखिलो धर्म मूलम्’ अर्थात वेद ही सब धर्मो का मूल है। जब वेद ही सब धर्मों का मूल है तो फिर विभिन्न धर्मों में एक रूपता क्यों नही है। वेद में तो केवल ईश्वर के निराकार रूप का की वर्णन है। फिर मूर्तिपूजा का औचित्य है? महर्षि स्वामी देव दयानन्द घोर मूर्तिपूजक परिवार से थे, लेकिन उन्होंने मूर्तिपूजा का घोर विरोध किया और वेदों में वर्णित धर्म के सच्चे रूप को लोगों के सामने प्रस्तुत किया।
हमारे इतिहास-पुरूष भी निर्विकार पूजा को श्रेष्ठ मानते हैं परन्तु साथ ही साथ साकार पूजा के भी प्रबल पक्षधर हैं। कारण स्पष्ट है आज धर्म को लोगों ने आजीविका से से जोड़ लिया है।
पहला उदाहरण-परम श्रद्धेय आचार्य श्रीराम लगातार 25 वर्षों तक स्वामी दयानन्द के मिशन आर्य समाज से मथुरा में जुड़े रहे। परन्तु वहाँ मूर्ति पूजा थी ही नही । अतः उन्होंने अपने मन से एक कल्पित गायत्री माता की मूर्ति बना ली और शान्ति कुंज का अपना मिशन हरद्वार में बना लिया। जबकि वेदों में एक छन्द का नाम ‘गायत्री’ है।
दूसरा उदाहरण- स्वामी दिव्यानन्द ने आर्य समाज को छोड़कर श्री राम शरणम् मिशन बनाया।
तीसरा उदाहरण आचार्य सुधांशु जी महाराज ने आर्य समाज का उपदेशक पद छोड़ कर ओम् नमः शिवाय का सहारा ले लिया। ऐसे न जाने कितने उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं। लेकिन आजीविका का रास्ता ढूँढने की होड़ में इन्होंने वैदिक धर्म का स्वरूप ही बदल कर रख दिया। हाँ एक बात इनके प्रवचनों में आज भी दिखाई देती है । वह यह है कि ये लोग आज भी बात तर्क संगत कहते हैं। अनकी विचारधारा में अधिकतम छाप आर्य समाज की ही है। लेकिन चढ़ावा बिना गुजर नही होने के कारण इन्होंने उसमें मूर्तिपूजा का पुट डाल दिया है।
आज सभी ‘ओम जय जगदीश हरे की आरती बड़े प्रेम से मग्न हो कर गाते हैं परन्तु यह आरती केवल गाने भर तक ही सीमित हो गयी है। यदि उसके अर्थ पर गौर करें तो- इसमे एक पंक्ति है ‘ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति’ कभी सोचा है कि इसका अर्थ क्या है? सीधा सा अर्थ है-हे प्रभू तुम दिखाई नही देते हो, तुम हो एक लेकिन पूजा में रखे हुए हैं ‘अनेक’। आगे की एक पंक्ति में है- ‘.......तुम पालनकर्ता’ लेकिन इस पालन कर्ता की मूर्ति बनाकर स्वयं उसको भोग लगा रहे हैं अर्थात् खिला रहे हैं। क्या यही वास्तविक पूजा है? क्या यही सच्चा वैदिक धर्म का स्वरूप है। सच तो यह है कि हम पूजा पाठ की आड़ में अकर्मण्य बनते जा रहे हैं।
दुकान पर लाला जी सबसे पहले पूजा करते हैं और पहला ग्राहक आते ही उसे ठग लेते हैं। शाम को फिर पूजा करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभो हमने आज जो झूठ बोलने के पाप कर्म किये हैं उनको क्षमा कर देना। क्योंकि हमारे धर्माचार्यों ने उनके मन में यह कूट-कूट कर भर दिया है कि ईश्वर पापों को क्षमा कर देते हैं। काश् यह भी समझा दिया होता कि ईश्वर का नाम रुद्र भी है। जो दुष्टों को रुलाता भी है।
खैर अब आवश्यकता इस बात की है कि फिर कोई महापुरुष भारत में जन्म ले और वैदिक धर्म की सच्ची राह दिखाये। जहाँ चाह है वहाँ राह है। एक आशा है कि युग अवश्य बदलेगा।

9 टिप्‍पणियां:

  1. कालांतर में मूर्ति कला को विकसित करने के लिए इसे धर्म से जोड दिया गया होगा !!

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  2. आज मानव मात्र को स्वामी दयानंद के बताए वैदिक धर्म पर ही चलने की आवश्यक्ता है।
    पाखंड ने देश का बंटाढार कर दिया है,वैदिक धर्म ही विश्व में एकता अखंडता और शांति स्थापित कर सकता है।
    कृण्वंतोविश्वामार्यम

    ऐसे ही ज्ञानप्रकाश फ़ैलाएं
    समाज आपका कृतज्ञ रहेगा
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. सबने अपने अपने हिसाब से इसके मूल रूप को खत्म कर दिया है वरना ईश्वर साकार और निराकार दोनो ही है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. शास्त्री जी ! आपसे शास्त्रार्थ तो नही कर सकता धर्म के मुद्दे पर किन्तु आप जो कह रहे है कदाचित ठीक हो .

    जवाब देंहटाएं

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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
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10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।