“बचपन के संस्मरण”
बात लगभग 45 वर्ष पुरानी है। मेरे मामा जी आर्य समाज के अनुयायी थे। उनके मन में एक ही लगन थी कि परिवार के सभी बच्चें पढ़-लिख जायें और उनमें आर्य समाज के संस्कार भी आ जायें। मेरी माता जी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और मैं अपने घर का तो इकलौता पुत्र था ही साथ ही ननिहाल का भी दुलारा था। इसलिए मामाजी का निशाना भी मैं ही बना। अतः उन्होंने मेरी माता जी और नानी जी अपनी बातों से सन्तुष्ट कर दिया और मुझको गुरूकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर (हरद्वार) में दाखिल करा दिया गया। घर में अत्यधिक लाड़-प्यार में पलने के कारण मुझे गुरूकुल का जीवन बिल्कुल भी अच्छा नही लगता था। मैं कक्षा में न जाने के लिए अक्सर नये-नये बहाने ढूँढ ही लेता था और गुरूकुल के संरक्षक से अवकाश माँग लेता था। उस समय मेरी बाल-बुद्धि थी और मुझे ज्यादा बीमारियों के नाम भी याद नही थे। एक दो बार तो गुरू जी से ज्वर आदि का बहाना बना कर छुट्टी ले ली। परन्तु हर रोज एक ही बहाना तो बनाया नही जा सकता था। अगले दिन भी कक्षा में जाने का मन नही हुआ, मैंने गुरू जी से कहा कि-‘‘गुरू जी मैं बीमार हूँ, मुझे प्रसूत का रोग हुआ है।’’ गुरू जी चौंके - हँसे भी बहुत और मेरी जम कर मार लगाई। अब तो मैंने निश्चय कर ही लिया कि मुझे गुरूकुल में नही रहना है। अगले दिन रात के अन्तिम पहर में 4 बजे जैसे ही उठने की घण्टी लगी। मैंने शौच जाने के लिए अपना लोटा उठाया और रेल की पटरी-पटरी स्टेशन की ओर बढ़ने लगा। रास्ते में एक झाड़ी में लोटा भी छिपा दिया। 3 कि.मी. तक पैदल चल कर ज्वालापुर स्टेशन पर पहँचा तो देखा कि रेलगाड़ी खड़ी है। मैं उसमें चढ़ गया। 2 घण्टे बाद जैसे ही नजीबाबाद स्टेशन आया मैं रेलगाड़ी से उतर गया और सुबह आठ बजे अपने घर आ गया। मुझे देखकर मेरी छोटी बहन बहुत खुश हुई। माता जी ने पिता जी के सामने तो मुझ पर बहुत गुस्सा किया लेकिन बाद में मुझे बहुत प्यार किया। यह थी मेरी गुरूकुल यात्रा की पहली कड़ी। क्रमशः…… |
रोचक सचित्र संस्मरण ...आभार
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sansmaran mere hostel ke wo din yaad dila diye jab 7 class me tha aur pehli baar ghar se door gaya tha...kuch janchta nahi tha...din bhar beemaar....achcha laga padhkar puraani yaadein taja hui...
जवाब देंहटाएंबढ़िया संस्मरण!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ha ha ha guru ji....acha hua aap bhaag aaye warna shaayd itni achhi rachnaayein padhne ko na milti kabhi...
जवाब देंहटाएंsundar varnan...
रोचक संस्मरण्……………शायद् पहले भी पढा है।
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