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रविवार, मई 09, 2010

बाबा नागार्जुन को मैंने लिखते हुए भी देखा है! (डा. रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

“बाबा नागार्जुन की संस्मरण शृंखला-4”

चित्र में- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री, स्कूटर पर हाथ रखे बाबा नागार्जुन,
मेरी माता जी, मेरी श्रीमती अमर भारती और छोटा पुत्र विनीत।
बाबा नागार्जुन, अपने दिल्ली के पड़ोसी मित्र और जाने-माने चित्रकार और कवर डिजाइनर हरिपाल त्यागी के साथ खटीमा महाविद्यालय के तत्कालीन हिन्दी विभागाध्यक्ष वाचस्पति के यहाँ आये हुए थे। वाचस्पति जी मेरे अभिन्न मित्रों में से थे। इसलिए बाबा जी मुझे भी बड़ा प्यार करने लगे।
अब हरिपाल त्यागी जी बातें हुईं तो पता लगा कि वे तो मेरे शहर नजीबाबाद के पास के गाँव महुआ के ही मूल निवासी निकले। बातों ही बातों में उन्होंने कहा कि मेरे भतीजे रूपचन्द त्यागी तो नजीबाबाद के ही किसी इण्टर कालेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे।
जब रूपचन्द त्यागी की बात चली तो मैंने उन्हें बताया कि उन्होंने तो मुझे इण्टर में अंग्रेजी पढ़ाई है। फिर मैंने उनसे पूछा कि अशोक त्यागी आपके कौन हुए। उन्होंने बताया कि वह मेरा पोता है और रूपचन्द त्यागी का सगा भतीजा है। मैंने कहा कि वो मेरा क्लास-फैलो था और मेरा सबसे अच्छा मित्र था।
दो मिनट के बाद त्यागी जी ने मुझे एक रेखा-चित्र दिखाया और कहा- ‘‘शास्त्री जी! ये आप ही हैं।’’ वो रेखा चित्र-अगले किसी संस्मरण में प्रकाशित करूँगा। उसके बाद बाबा से बातें होने लगी।
बाबा ने कहा- ‘‘शास्त्री जी! मैं आपके घर परसों आऊँगा।’’
ठीक 2 दिन बाद बाबा वाचस्पति जी के दोनों पुत्रों अनिमेष और अलिन्द के साथ मेरे घर सुबह 8 बजे पहुँच गये। ये दोनों बालक मेरे ही विद्यालय में पढ़ते थे। बाबा के आने के बाद नाश्ते की तैयारी शुरू हुई। उनसे पूछा गया कि बाबा नाश्ते में क्या लेना पसन्द करोगे?
बाबा बोले- ‘‘मुझे नाश्ते में मीठा दलिया बना दो।’’
मेरी श्रीमती जी दलिया बना कर ले आयीं और बाबा को दे दिया।
बाबा जी तो ठहरे साफ-साफ कहने वाले।
बोले- ‘‘तुम इतनी बड़ी हो गयी हो। तुम्हें दलिया भी बनाना नही आता। इसमें क्या खा लूँ । इसमें तो दूध ही दूध है। दलिया तो नाम मात्र का ही है।’’
खैर बाबा ने दलिया खा लिया। दोपहर को श्रीमती जी ने बाबा से खाने के बारे में पूछा गया कि बाबा खाने में क्या पसन्द है?
बाबा ने श्रीमती जी को पुचकारा और कहा- ‘‘बेटी मेरे कहने का बुरा मत मानना। मैंने तुम्हारे भले के ही लिए डाँटा था।’’ (तब से श्रीमती जी दलिया अच्छा बनाने लगीं हैं।)
बाबा ने कहा - ‘‘मुझे कटहल बड़ा प्रिय लगता है। लेकिन बुढ़ापे में ज्यादा पचता नही है। तुरई, लौकी जल्दी पच जातीं हैं।’’
दोपहर को श्रीमती जी ने कटहल की और लौकी की सब्जी बनाई। बाबा ने बड़े चाव से भोजन किया।
मैंने बाबा से कहा कि बाबा यहीं ड्राइंग रूम में दीवान पर सो जाना।
बाबा बोले- ‘‘नही मैं तो तुम्हारे स्कूल के कमरे में ही सोऊँगा।’’
अतः बाबा की इच्छानुसार उनका वहीं पर बिस्तर कर दिया गया।
एक बात तो लिखना भूल ही गया, बाबा अपने साथ एक मैग्नेफाइंग ग्लास रखते थे। उसी से वो पढ़ पाते थे।
रात में जब मेरी आँख खुली तो मैंने सोचा कि एक बार बाबा को देख आऊँ। मैं जब उनको देखने गया तो बाबा ट्यूब लाइट जला कर एक हाथ में मैंग्नेफाइंग ग्लास ग्लास लिए हुए थे और कुछ लिख रहे थे। मैंने बाबा को डिस्टर्ब करना उचित नही समझा और उल्टे पाँव लौट आया।
एक बात तो आज भी घर के सब लोग याद करते हैं कि बाबा नहाने के मामले में बड़े कंजूस थे। वे हफ्तों तक नहाते ही नही थे। खैर बाबा 3-4 दिन मेरे घर रहे। दिन में वे मेरे दोनों पुत्रों और पिता जी व माता जी के साथ काफी बातें करते थे। रात को स्कूल की क्लास-रूम में सो जाते थे।
रात में जब 1-2 बजे मेरी आँख खुलती थी तो बाबा के एक हाथ में मैग्नेफाइंग-ग्लास होता था और दूसरे हाथ में पेन।
मैंने बाबा को 76 साल की उम्र में भी रात में कुछ लिखते हुए ही पाया!

6 टिप्‍पणियां:

  1. आप नि:संदेह अतीव भाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हैं.

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  2. बाबा के बारे में जानकर उत्सुकता बड़ती ही जा रही है।

    जवाब देंहटाएं
  3. शास्त्री ही बढ़िया संस्मरण...सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक धन्यवाद...मातृ दिवस की बधाई

    जवाब देंहटाएं

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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
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विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।