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बुधवार, दिसंबर 26, 2012

"पुस्तक समीक्षा-लक्ष्य" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


लक्ष्य को न भुलाने की परिणति है लक्ष्य
   काफी समय पूर्व श्रीमती कविता विकास ने मुझे के काव्य संग्रह लक्ष्य की पाण्डुलिपि मेल से प्रेषित की थी।  उस समय मैंने इसको आद्योपान्त पढ़ा और लक्ष्य के लिए कुछ लिखा था! जिसको कवयित्री ने अपने काव्य संग्रह लक्ष्य” में ज्यों का त्यों छाप भी दिया है। लेकिन अब मुझे यह काव्य संग्रह पुस्तक के रूप में मुझे मिल गया है। जिसे देख कर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
    कोयलानगर, धनबाद (झारखण्ड) में डी.ए.वी. संश्थान में  प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत श्रीमती कविता विकास के काव्यसंग्रह लक्ष्य” को बसन्ती प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। 96 पृष्ठ के इस काव्य संग्रह का मूल्य 250रु. निर्धारित किया गया है। परमात्मा के मुख्यनाम ऊँ के श्रीचरणों में समर्पित करते हुए कवयित्री ने लिखा है- "पूज्य माँ-बाबा को, जिनकी मूक अभिलाषा में मैंने अपने जीवन का लक्ष्य पाया...।"
        इसमें आदरणीया रश्मि प्रभा, डॉ.प्रीत अरोड़ा, डॉ. मलिक राजकुमार, डॉ.अनिता कपूर और कवयित्री के पतिदेव विकास कुमार ने भी अपने सुन्दर शब्दों से कवितासंग्रह की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
        संग्रह की रचयिता ने लक्ष्य” को लक्ष्य” की परिणति के बारे में अपनी कलम से लिखा है-"शब्दों की यात्रा में न कोई पड़ाव है और न कोई मंजिल। बस चलते जाना है अविरत....अविराम...अथक।..."
        इस कविता तंग्रह का नाम कवयित्री ने लक्ष्य” ही क्यों रखा? इस पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने लिखा है- "लक्ष्य कविता मेरे जीवन की पहली रचना थी, जिसे मैंने विद्यार्थीजीवन में लिखा था...!"
       माँ ममता का पर्याय है और माँ के पास शिशु अपने को सुरक्षित महसूस करता है। इसलिए लक्ष्य कविता संग्रह का शुभारम्भ कवयित्री ने "माँ" से किया है-
   माँ की महिमा का बखान करते हुए कवयित्री लिखती है-
अतीत के आईने में निहारने को
जब स्वयं को सँवारती हूँ
कई झिलमिलाते परतों में माँ
तुम ही तुम नज़र आती हो 

पूजा का थाल सजाकर नमन को
जब देव-प्रांगण जाती हूँ
अनेक देवताओं के बीच माँ
तुम देवी बन मुस्काती हो 


     कवियित्री ने अपनी रचनाओं में गवेषणा भी प्रस्तुत की है देखिए उनकी एक अन्य रचना की बानगी-
भावनाओं के समंदर से उबरते
विचारों के मंथन से निकलते
मैंने जान लिया है -
मानव मात्र निमित्त है
स्व की खोज में निहित उसकी चेतना है
दूसरों से अनभिज्ञता उसकी विडंबना है...
      अपनी कविताओं में कविता विकास जी ने चुन-चुनकर यथोचित शब्दों का प्रयोग किया है। ऐसा लगता है कि उनके पास केवल शब्दों का भण्डार ही नहीं अपितु अथाह सागर भी है। नाम कविता है तो काम भी उसके अनुरूप ही है।
    लक्ष्य में इन्होंने अपनी तीस उत्कृष्ट कविताओं को संग्रहीत किया है। जिसमें उनकी बहुमुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।
एक ओर जहाँ चुनौतीकामनाएँआतंककसकबदलावकशिश आदि अमूर्त मानवीय संवेदनाओं पर कवयित्री की संवेदना बिखरती है तो दूसरी ओर बेटी, माँ, टूटता तारा, आशा किरण आदि विषयों को इन्होंने अपनी रचना का विषय बनाया है। इसके अतिरिक्त प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है। वे अपने परिवेश की सामाजिक समस्याओं से भी अछूते नहीं रहीं हैं।
     बेटी के बारे में वे लिखतीं हैं-
शबनम की मोती पर
सुनहरे लाली सी
       चंचल
कुहासे के धुएँ में
छटती भोर सी
      शीतल............
कलाकार की कल्पना सी
तुम व्याप्त हो
इहलोक की बुनियाद में
एक इष्टिका सी
    
तमन्ना होती है कि अपनों से दिलखोलकर मिलें और अपने सुख-दुख को साझा करें। मगर दुनिया में तमन्ना केवल तमन्ना ही बनकर रह जाती है। इसी पर प्रकाश डालते हुए कवयित्री कहती है-
उनसे मिलने की तमन्ना थी बड़ी शिद्दत से
सामना  होते  ही हम अनजान हो गए
जिस पल को जीना चाहा बड़ी मुद्दत से
आगाज़ पाते ही वो खामोश हो गए
समष्टि में व्यष्टि की कल्पना करते हुए कवयित्री कामना करती है-
साल दर साल रैन बसेरा का  साथ मत दो
बस एक ख्याल ही अपना आने दो
गगन के विस्तार सा आयाम मत दो
बस एक कोने में सिमटा सूर्य बन रहने दो
कल्पनाओं के क्षितिज पर उड़ने की इच्छा करते हुए इस कविता को उन्होंने शब्द कुछ इस प्रकार से दिये हैं-
 दिल में आशियाँ बनाने वाले ,काश ऐसा होता
कभी सैर के बहाने ही आते ,दिलासा तो मिलता
बादलों संग आँख मिचौली खेलना ,चाँद की फितरत
जी चाहता है पहलु में छुपा लूँ ,तुमसे होऊँ रुख़सत।
स्पर्श प्यार काकैसा होना चाहिए देखिए किवता विकास के शब्दों में-
आशाओं के पंख लगा कर
क्षितिज पर उगते सूरज की
 लालिमा में डूबने की इच्छा हुई
आज फिर उड़ने की इच्छा हुई
जीवन्त भाषा वाली ये रचनाएँ संवेदनशीलता के मर्म में डूबकर लिखी गई हैं। नयनाभिराम मुखपृष्ठ, स्तरीय सामग्री तथा निर्दोष मुद्रण सभी दृष्टियों से यह स्वागत योग्य है। इसके साथ ही मुझे विश्वास है कि कविता विकास द्वारा रचित "लक्ष्य" काव्य संग्रह कहीं न कहीं पाठकों के मन को गहराई से छुएगा और समीक्षकों के लिए भी उनकी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी!
इस प्रथम काव्य संग्रह के लिये कविता विकास को मैं हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में भी उनकी अन्य कृतियाँ प्रकाशित होती रहेंगी।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
खटीमा (उत्तराखण्ड) पिन-262308
सम्पर्क-09368499921,
वेबसाइट-http://uchcharan.blogspot.in/

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा.. कविता विकास जी को हार्दिक बधाई...
    प्रस्तुति हेतु आपका आभार!

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  2. शानदार लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  3. पुस्तक -' लक्ष्य' की समीक्षा पढ़कर आत्मसंतुष्टि हुई । मयंक भाई साहब के इस श्रमसाध्य कार्य के लिए मैं सदा अनुग्रहित रहूंगी ।आपने पहले भी मुझे प्रोत्साहित किया है ,आगे भी आप के आशीर्वाद की आकांक्षी रहूँगी ।आभार ,धन्यवाद ।

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  4. आदरणीय शास्त्री जी आप के द्वारा लक्ष्य के बारे में जानकारी मिली ..सुन्दर समीक्षा ...बहुत सुन्दर संग्रह ....आदरणीया कविता विकास जी और आप को भी ढेर सारी बधाई शुभ कामनाएं कदम लक्ष्य की तरफ अनवरत बढ़ते चलें ....
    भ्रमर 5

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सूक्ष्म विवेचना कविता विकास जी को हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुति
    नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।

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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
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10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।