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बुधवार, जुलाई 20, 2011

"बिन झोली के फकीर-2" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मेरी प्यारी जूली
गतांक से आगे....

          कालान्तर में जूली ने 4 छोटे-छोटे पिल्लों को जन्म दिया। जिसमें से एक तो जन्म के बाद ही चल बसा। एक पेयर मेरे मित्र डॉ. दत्ता ने ले लिया और एक पिल्ला हमने अपने पास रख लिया। प्यार से उसका नाम पिल्लू रखा गया। यह हल्के ब्राउन रंग का था। जूली की तरह इसके बड़े बाल नहीं थे। इसको अधिक कुछ हमें सिखान भी नहीं पड़ा। क्योंकि यह अपनी माँ को देख-देखकर खुद ही काफी कुछ सीख गया था
     घर वालों को यह ज्यादा अच्छा नहीं लगता था क्योंकि यह अपनी माँ की तरह बड़े बालों वाला नहीं था। मेरी माता जी तो इसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थीं और इसे कूड़ा चुगने वाला कुत्ता बतातीं थीं!
एक दिन एक मनीहार चूड़ी पहनाने के लिए बनबसा आया तो माता जी ने कहा कि भैया इस कुत्ते को अपने घर ले जा। मनीहार ने कहा कि माता जी इसको चेन मे बाँधकर मुझे दे दो।
माता जी ने पिल्लू को चेन में बाँधकर मनीहार के हाथ में चेन थमा दी। जब तक माता जी पिल्लू को दिखाई देती रहीं तब तक तो पिल्लू कुछ नही बोला मगर जैसे ही मनीहार इसे लेकर चला तो पिल्लू ने उसे 2-3 जगह काट लिया। जैसे-तैसे वह पिल्लू की चेन छोड़कर चलता बना।
     जब पिल्लू 6 महीने का हा तो इसकी माँ जूली को जलोदर रोग हो गया और वह 2 महीने में चल बसी। कुछ दिनों तक तो पिल्लू बहुत परेशान रहा मगर अब यह पहले से ज्यादा समझदार हो गया था।
     उन दिनों मैंने एक बीघा का प्लॉट खटीमा में ले लिया था और इसको बनाने के ले काम शुरू कर दिया था। पिता जी खटीमा में ही रहने लगे थे। माता जी ने पिल्लू को भी पिता जी के साथ खटीमा भेज दिया था। सुबह एक बार 8 बजे मैं भी बनवसा से खटीमा का चक्कर लगा आता ता और राज-मिस्त्रियों को काम समझा आता था।
     पिल्लू मुझे देखकर बहुत खुश हो जाता था। जिस किसी दिन खटीमा के प्लॉट पर कोई नहीं होता था तो पिल्लू पूरी मुस्तैदी से सारे सामान की देखभाल करता था। सुबह को जब राज मिस्त्री काम पर आते थे तो क्या मजाल थी कि यह प्लॉट में घुस जाएँ। पिल्लू मोटी-मोटी बल्लियों को मुँह में दबा कर बैठ जाता और किसी को हाथ भी नहीं लगाने देता था।
     जब मैं या पिता जी आते थे तो यह सामान्य हो जाता था और राज-मजदूर अपने काम पर लग जाते थे।
     करीब तीन महीने बाद खटीमा में 3 दूकाने और रहने के लिए 3 कमरे तैयार हो गये थे। अतः हम लोग भी बनबसा से खटीमा में ही शिफ्ट हो गये थे। पिल्लू बाहर गेट के पास ही रहता था और हम लोग चैन की नींद सोते थे।
     उन दिनों बाहर का आँगन कच्चा ही था और उसमें ईंटें बिछी हुई थी। अतः गर्मियों में मेरे पिता जी बाहर गन में चारपाई डालकर सोते थे। पिल्लू उनकी चारपाई के नीचे पड़ा रहता था।
     मैं प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर घूमने के लिए जाता था और पिल्लू मेरे साथ-साथ चल पड़ता था। एक दिन मैं जब उठकर घूमने के लिए जा रहा था तो देखा कि कि पिता जी की चारपाई से कुछ दूर एक साँप लहूलुहान मरा पड़ा था तो मुझे यह समझते हुए देर न लगी कि पिल्लू ने ही यह सब किया होगा।
     इस वफादार ने अपनी जान की परवाह न करते हुए साँप को मार डाला और मेरे पिता जी रक्षा की।
     ऐसे होते हैं ये बिन झोली के फकीर।
     मालिक के वफादार और सच्चे चौकीदार।।
क्रमशः..........

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achcha sansmaran likha hai Shastri ji.really kutte hote hi bahut vafadaar hain.

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  2. जुली नाम जितना प्यारा उतना ही है सबका दुलारा! सही में बहुत वफादार होते हैं! शानदार संस्मरण!

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  3. आपको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं

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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
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विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।