होली के अवसर पर “महाराजा अग्रसेन समाचार” पत्र के सम्पादक “मदन ‘विरक्त” दिल्ली से खटीमा पधारे! इनके सम्मान में डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” के निवास पर एक गीतों भरी शाम का आयोजन किया गया। सबसे पहले सरस पायस के सम्पादक रावेंद्रकुमार रवि ने अपना गीत प्रस्तुत किया- “ आए कैसे बसंत” मौसम की माया है, धुंध-भरा साया है – आए कैसे बसंत? रोज़-रोज़ काट रहे हर टहनी छाँट रहे! घोंसला बनाने को कैसे वे आएँगे? सुन उनका कल-कूजन क्या अब अँखुआएँगे?……. इसके पश्चात राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सिद्धे्श्वर सिंह और कर्मनाशा के ब्लॉग-स्वामी ने अपने काव्य पाठ में निम्न रचना को सुनाया- “शिशिर का हुआ नहीं अन्त कह रही है तिथि कि आ गया वसन्त ! क्या पता कैलेन्डर को सर्दी की मार क्या है। कोहरा कुहासा और चुभती बयार क्या है। काटते हैं दिन एक एक गिन याद नहीं कुछ भी कि तीज क्या त्यौहार क्या है। वह तो एक कागज है निर्जीव निष्प्राण हम जैसे प्राणियों के कष्ट हैं अनन्त।”……. गोष्ठी के मेजबान और उच्चारण के सम्पादक डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” ने अपने काव्य पाठ में वसन्त पर एक गीत प्रस्तुत किया- “टेसू की डालियाँ फूलतीं, खेतों में बालियाँ झूलतीं, लगता है बसन्त आया है! केसर की क्यारियाँ महकतीं, बेरों की झाड़ियाँ चहकती, लगता है बसन्त आया है!”…. अन्त में दिल्ली से पधारे लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकार और सर्वोदय साहित्य मण्डल के सम्पादक “मदन ‘विरक्त” ने होली के अवसर पर अपनी इस रचना का सस्वर पाठ किया- शृंगार किया है, पहली बार राधिका ने, कान्हा ने ब्रज में, पहली रास रचाई है। उन्मत्त सहेली वृन्दावन में झूम रही, साँवरिया ने पहली ही होली गाई है।। गोष्ठी के अन्त में होली के मिष्ठानों और पकवानों का भी आनन्द लिया गया! |
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शनिवार, फ़रवरी 27, 2010
“एक शाम मदन ‘विरक्त’ के नाम” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
“दोहा लिखिएः वार्तालाप” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
“धुरन्धर साहित्यकार” |
वार्तालाप आज मेरे एक “धुरन्धर साहित्यकार” मित्र की चैट आई- धुरन्धर साहित्यकार- शास्त्री जी नमस्कार! मैं- नमस्कार जी! धुरन्धर साहित्यकार- शास्त्री जी मैंने एक रचना लिखी है, देखिए! मैं- जी अभी देखता हूँ! (दो मिनट के् बाद) धुरन्धर साहित्यकार- सर! आपने मेरी रचना देखी! मैं- जी देखी तो है! क्या आपने दोहे लिखे हैं? धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी! मैं- मात्राएँ नही गिनी क्या? धुरन्धर साहित्यकार- सर गिनी तो हैं! मैं- मित्रवर! दोहे में 24 मात्राएँ होती हैं। पहले चरण में 13 तथा दूसरे चरण में ग्यारह! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी जानता हूँ! (उदाहरण) ( चलते-चलते थक मत जाना जी, साथी मेरा साथ निभाना जी।) मैं- इस चरण में आपने मात्राएँ तो गिन ली हैं ना! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी! चाहे तो आप भी गिन लो! मैं- आप लघु और गुरू को तो जानते हैं ना! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ शास्त्री जी! मैं लघु हूँ और आप गुरू है! मैं-वाह..वाह..आप तो तो वास्तव में धुरन्धर साहित्यकार हैं! धुरन्धर साहित्यकार- जी आपका आशीर्वाद है! मैं-भइया जी जिस अक्षर को बोलने में एक गुना समय लगता है वो लघु होता है और जिस को बोलने में दो गुना समय लगता है वो गुरू होता है! धुरन्धर साहित्यकार-सर जी आप बहुत अच्छे से समझाते हैं। मैंने तो उपरोक्त लाइन में केवल शब्द ही गिने थे! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! |
शनिवार, फ़रवरी 13, 2010
“यहाँ गौमाता शिव को दूध से नहलाती थी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
“शिवरात्रि को सात रंग बदलती शिव की पिण्डी”
बरेली-पिथौरागढ़ राष़्टीय राजमार्ग पर खटीमा से 7 किमी दूर श्री वनखण्डी महादेव के नाम से विख्यात एक प्राचीन शिव मन्दिर है! समिति ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करके इसे सजाया और सँवारा भी है।
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शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010
“निठल्ला चिन्तन” व्यंग्यः (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
मित्रों! आज कुछ सामग्री पोस्ट करने के लिए मेरे पास नही है! मात्र एक विचार मन में आया है- “चर्चा मंच” पर दिन की एक चर्चा तो लगा ही देता हूँ, कभी-कभी दो भी हो जाती हैं। सोच रहा हूँ कि इसमें ढाई दर्जन सदस्य सम्मिलित कर लूँ। इससे चर्चा करने में सुविधा रहेगी। प्रतिदिन कोई एक सदस्य शेष सभी की पोस्टों की चर्चा किया करेगा। यह शर्त चर्चामण्डली के सभी सदस्यों पर लागू होगी! किन्तु, इसके बाद भी यदि चर्चा में अन्तराल हुआ तो……? अर्थ आप लगाइए! मैं तो चला……! |
गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010
“तुम्हारे प्यार का आभार है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।
"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी