गुरुवार, दिसंबर 31, 2009

“तुम्हारी बहुत याद तड़पायेगी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर साहित्य शारदा मंच, खटीमा के तत्वावधान में एक कवि गोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खटीमा के सभागार में सम्पन्न हुआ।
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कवि गोष्ठी का शुभारम्भ विधिवत् दीप प्रज्वलन के बाद पीली भीत से पधारे कवि देवदत्त प्रसून ने सरस्वती वन्दना से किया।
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राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने अपनी निम्न रचना का वाचन किया-
“हर बार कैलेण्डर का आखिरी पन्ना हो जाता है,
सचमुच आखिरी…..”
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अन्तर-जाल पर प्रकाशित बाल पत्रिका “सरस पायस” के सम्पादक रावेन्द्रकुमार रवि ने जाते हुए वर्ष को बहुत ही गरिमामय और भाव-भीनी विदाई देते हुए अपनी इस कविता का पाठ किया-
“जाओ बीते वर्ष,तुम्‍हारी बहुत याद तड़पाएगी!”
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कवि गोष्ठी के संयोजक और उच्चारण के सम्पादक
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” ने नये वर्ष का स्वागत कुछ नये अन्दाज मे इस गीत के साथ किया- “पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!”
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रूमानी शायर गुरू सहाय भटनागर”बदनाम” ने अपने परिचय के साथ नये साल का स्वागत करते हुए कहा-
“हर किसी से हँसके है मिलती गले,
इसलिए बदनाम मेरी जिन्दगी।”
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गोष्ठी में कैलाश पाण्डेय, डॉ. गंगाधर राय, आर.पी. भटनागर, सतपाल बत्रा, राजकिशोर सक्सेना राज आदि कव्यों ने भी काव्य पाठ किया।
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इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक परिषद् खटीमा के श्री गेंदा लाल, बी.ड़ी.वैश्य, महेशकुमार, नारायण सिंह ऐर, डी.सी.तिवारी आदि भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
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गोष्ठी का संचालन देवदत्त प्रसून और अध्यक्षता राज किशोर सक्सेना राज ने की!
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शुक्रवार, दिसंबर 25, 2009

"संस्कृति एवं सभ्यता----2" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"संस्कृति एवं सभ्यता" गतांक से आगे....
5- दान प्रत्येक मानव का अनिवार्य कर्तव्य है तो लोग भीख, जुआँ, चोरी आदि क्यों करते हैं?..........
मनुष्य प्रजापति के पास गये और उनसे प्रार्थना की-
"महाराज! हमें उपदेश कीजिए।"
प्रजापति ने कहा-
"दान दिया करो, यही संस्कृति है।"
धन की तीन गति हैं-"दान, भोग और नाश।"
जो लोग न दान करते हैं, न भोग करते हैं। उनके धन का नाश हो जाता है। ऐसे धन को या तो चोर चुरा लेते हैं, या अग्नि में दहन हो जाता है , या राजदण्ड में चला जाता है।
दान देते रहना चाहिए, दान देने से धन घटता नही है। जैसे कुएँ का पानी बराबर निकालते रहने से कम नही होता है। यदि उसमें से पानी निकालना बन्द कर दिया जाय तो पानी सड़ जाता है।
जिस घर में वायु आने का एक ही द्वार है, निकलने का नही है तो उस घर में वायु नही आती है।
"यावद् भ्रियेतजठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।
यो अधिकमभि मन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।"
जितने से जिसका पेट भर जाये उतना ही उसका स्वत्व है। जो अधिक माँगता है वह स्तेन है, अर्थात दण्ड के योग्य है। अतः मनुष्य को दान करते रहना चाहिए।
िहृया देयम्- लज्जा से देना चाहिए, भिया देयम्-भय से देना चाहिए, संविदा देयम्- ज्ञानपूर्वक देना चाहिए। देयम्- यही हमारा प्रथम कर्तव्य है।
कुछ लोग दान लेना नही चाहते, अपितु वे उधर लेना चाहते हैं। अर्थात् जितना लेंगे, समर्थ होने पर उतना ही वापिस कर देंगे। यह कुसीद है। इस पर बढ़ाकर लेना ब्याज है, छल-कपट है-सूद है। इससे समाज नही बल्कि समज (दस्यु) बन रहा है। इसी का परिणाम है कि एक ओर असंख्य पूंजीपतियों को जन्म हो रहा है और दूसरी ओर वित्तविहीन भोजन तक के लिए तरस रहा है। यह व्यापार में लाभ के स्थान पर फायदा (प्रॉफिट) लेने के कारण हो रहा है।
लाभ लीजिए परन्तु शोषण मत कीजिए।
अब विचारिए-
क्रमशः..............
(साभार "संस्कृति एवं सभ्यता")

सोमवार, दिसंबर 21, 2009

"तिजोरी आपकी है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

कोठी-कुठले सभी तुम्हारे,
चाबी को मत हाथ लगाना।
सुख हैं सारे साथ हमारे,
तुम दुख में मुस्काते रहना।।
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इशारों-इशारों में हम कह रहे हैं,
अगर हो सके तो इशारे समझना।

मेरे भाव अल्फाज बन बह रहे हैं,
नजाकत समझना नजारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।
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हमारी वेदना यह है कि हमने एक घर में साझा कर लिया। बहुत से सुनहरी स्वप्न सजाए। घर को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। लेकिन आज भी हम अपने साझीदार के लिए सिर्फ और सिर्फ कमाने की मशीन हैं। यानि सबसे ज्याद मेंहनत हमने ही की। जिस तिजोरी को हम परिश्रम करके आज तक भर रहे हैं, अफसोच् कि उसकी चाभी आज भी हमारे पास नही है।

इसीलिए तो हमने अपना नया घर बना लिया है।

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संयुक्त परिवारों की यही तो वेदना है कि घर का स्वामी अन्य सद्स्यों को केवल कमाने की मशीन समझता है।

शायद इसीलिए नये घर बन जाते हैं। पुराने घर से मोह तो रहता है लेकिन अपने पराये की भावना तो आ ही जाती है।

यदि घरों को टूटने से बचाना है तो गृह स्वामियों को घर के सभी सदस्यों को कर्तव्य के साथ अधिकार भी देने होंगे।

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गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं।

मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।

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बुधवार, दिसंबर 16, 2009

"संस्कृति एवं सभ्यता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

 "संस्कृति एवं सभ्यता" (स्वामी इन्द्रदेव यति)
किम् संस्कतिः?
(संस्कृति क्या है?)
या सम्यक् क्रियते सा संस्कृतिः।
(जो सम्यक् (भद्र) किया जाता है, वह संस्कृति है।)
अब प्रश्न उठता है कि - सम्यक् क्या है?
किसी कार्य को करने से पहले यदि उत्साह, निर्भीकता और शंका न उत्पन्न हो तो उसे सम्यक् कहा जायेगा और शंका,भय और लज्जा उत्पन्न हो तो वह सम्यक् अर्थात् भद्र नही कहा जा सकता।
ओम् अच्छिन्नस्यते देव सों सुवीर्यस्य
रायस्पोषस्य दद्तारः स्याम।
सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्वारा
स प्रथमो वरुणो मित्रो अग्निः।। (यजुर्वेद 7 । 14)
(अर्थ- हे सोमदेव, शान्ति प्रदाता, दिव्यगुण युक्त परमेश्वर! आपसे प्राप्त अच्छिन्न और सुवीर्ययुक्त पोषण करने वाले धन को देने वाले होवें, वह प्रथमा संस्कृति है, जिसको संसार ने स्वीकार किया था। प्रथम मित्र (अवगुणों को दूर करने वाला) और वरुण (सद् गुणों को देने वाला) वह अग्नि है जो सदा आगे ले जाने वाला (अग्रेनयति) और ऊपर ले जाने वाला (ऊर्ध्व गमयति) है।)
यजुर्वेद के उपरोक्त मन्त्र मे कहा गया है कि-
संस्कृति एक है क्योंकि  इस मन्त्र मे संस्कृति का एक वचन मे प्रयोग किया गया है।
संस्कृति के साथ किसी विशेषण का प्रयोग नही  हुआ है अर्थात् संस्कृति का कोई विशेषण नही होता है।
अच्छिन्न है अर्थात् संस्कृति में कोई छेद नही होता है। छिद्ररहित होने के कारण यह प्रणिमात्र के छिद्रों को दूर करती है।
वीर्य से परिपूर्ण है अर्थात् संस्कृति प्राणिमात्र को पुष्ट करती है और
संस्कृति का प्रमुख लक्षण है कि यह देने वाली है।
अब आप मनन और विचार कीजिए कि-
1- संस्कृति एक है तो संसार में अनेक संस्कृतियों की चर्चा क्यों की जाती है?
2- संस्कृति का कोई विशेषण नही है अर्थात् संस्कृति किसी नाम से नही पुकारी जाती है तो देश भेद से भारतीय संस्कृति, योरोपीय संस्कृति, अमेरिकन...,चीनी.....और मत मतान्तर भेद से हिन्दु संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति, ईसाई संस्कृति आदि पुकारने का क्या औचित्य है?
3- संस्कृति में छिद्र नहीं है तो  - प्रत्येक मत-मतान्तर तथाकथित अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों मानते हैं?
4- संस्कृति सबका पोषण करने वाली है तो प्रत्येक पदार्थ में मिलावट करके प्राणियों को नष्ट करने का उपक्रम तथाकथित संस्कृति वाले क्यों कर रहे हैं?
5- दान प्रत्येक मानव का अनिवार्य कर्तव्य है तो लोग भीख, जुआँ, चोरी आदि क्यों करते हैं?...........
क्रमशः..............
(साभार "संस्कृति एवं सभ्यता")





बुधवार, दिसंबर 09, 2009

"H.C.L. का लैपटॉप तो भूलकर भी न लें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सावधान!               सावधान!!                    सावधान!!!
धोखेबाज कम्पनी है एच.सी.एल. इन्फोसिस्टम्स लि.
H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD.
का लैपटॉप तो भूल कर भी न लें!
आपकी जानकारी के लिए निवेदन है कि-
"मैंने 2 अगस्त 2008 को H.C.L का  G.L.-9200 मॉडल का लैपटॉप H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD. रुद्रपुर में सीधे ही कम्पनी से ड्राफ्ट लगा कर खरीदा था। एक महीने के भीतर ही इसकी हार्ड-डिस्क खराब हो गई। लगभग एक महीने में कम्पनी द्वारा यह बदली गई।
इसके बाद इसका ऑन/ऑफ स्विच खराब हो गया। अपने कार से आने-जाने के खर्चे पर कम्पनी से वह बदलवाकर लाया गया। कम्पनी ने यह स्विच पुराना घिसा-पिटा लगा दिया, जो आज भी काम छोड़ जाता है।
इसके बाद इसका कैमरा शो होना बन्द हो गया।
अब वारण्टी में 2 माह शेष रहे थे। अतः कम्पनी द्वारा टाल-मटोल शुरू हो गई।
यहाँ तक के सफर मे इसका बैटरी बैक-अप 3 घण्टे से घटकर अब मात्र 40 मिनट रह गया है।
मैं आज तक इस लैपटॉप की समस्याओं से जूझ रहा हूँ।
कुल मिलाकर  H.C.L का लैपटॉप गुणवत्ता में जीरो ही साबित हुआ है।
सभी ब्लॉगर मित्रों को सावधान कर रहा हूँ कि 
भूलकर भी H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD का कोई उत्पाद न खरीदें।

गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

"कहाँ सोया है उत्तराखण्ड का वन विभाग? " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! बाघ (शेर) ने एक बालिका को फिर निवाला बनाया...!!

कहाँ सोया है उत्तराखण्ड का वन विभाग?

क्षेत्र के लोग कब तक शेर के मुँह का ग्रास बनते रहेंगे?

सोमवार, नवंबर 23, 2009

"अपनी जान की सुरक्षा में चूक न होने दें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

जी हाँ!
ये तस्वीरें कुछ बोलती हैं।
उत्तराखण्ड में स्वाइन-फ्लू दस्तक दे चुका है।


नगर की रौनक बदहाल है। गहमा-गहमी से भरी सड़कें सूनी-सूनी हो गईं हैं। 

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुफ्त मास्क  बाँटे जा रहे हैं।
आनन-फानन में यह अपील जारी की गई।


मगर,
बाघ (शेर) से बजाव के लिए कोई उपाय नही सुझाये जा रहे हैं।
आइए- एक जागरूक नागरिक होने के नाते मैं ही आपको बाघ (शेर) से बचाव के कुछ उपाय बताता हूँ-
1- वन विभाग को आदमखोर शेर को पकड़ने के लिए टीम गठित करनी चाहिए।
2- महिलाएँ घने जंगलों में घास और लकड़ी काटने न जाये।
3- अकेले जंगल में न जाएँ।
4- जंगल के किनारे बने घरों में रात को दरवाजे ठीक से बन्द करके सोयें।
5- बच्चों को अपनी नजर से ओझल न होने दें।
6- रात में गौशाला में और बकरी-बाड़ों मे जानवरों को बन्द रखें और उनकी सुरक्षा के लिए आवश्यकरूप से दरवाजे जरूर बन्द कर दें।
7- विभाग को शेर के छिपने के ठिकानों के बारे में सूचना देने में कोताही न करें।
8- अपनी जान की सुरक्षा में चूक न होने दें।

मेशा याद रखें, आपका जीवन अनमोल है। 
आपके परिवार को आपकी आवश्यकता है।

बुधवार, नवंबर 18, 2009

"साहित्यकार और सम्पादक वाचस्पति जी के साथ एक दिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

हिन्दी साहित्य के इंसाइक्लोपीडिया  श्री वाचस्पति जी 
सितम्बर 1988 से जून 1990 तक राजकीय महाविद्यालय, खटीमा  में
हिन्दी-विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे।
राजकीय सेवा से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात,
बहुत लम्बे अन्तराल के बाद आप खटीमा पधारे!
प्रस्तुत है उनके साथ गुजरे एक दिन का दिन-नामा।


बुधवार, 18 नवम्बर,2009 प्रातः 8 बजे, 
खटीमा में डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" के निवास पर  प्रातराश (जलपान)


प्रातः 9 बजे 
राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के विभागाध्यक्ष 
डॉ.सिद्धेश्वर सिंह के निवास "हिमाञ्चल" पर



प्रातः 11 बजे

94 वर्षीय वयोवृद्ध साहित्यकार श्री आनन्द प्रकाश रस्तोगी जी के
निवास "प्रभात-फार्म" पर।

(चित्र में-श्री आनन्द प्रकाश रस्तोगी,  श्री वाचस्पति एवं डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


(चित्र में-श्री आनन्द प्रकाश रस्तोगी,  श्री वाचस्पति  जी को विदाई देते हुए।)

सायं 5 बजे
"साहित्यकार और सम्पादक वाचस्पति जी के सम्मान में ब्लागर-मीट का आयोजन"



(चित्र में-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक",श्री रावेंद्रकुमार रवि-सम्पादकःसरस पायस ,श्री वाचस्पति-सम्पादकः आधारशिला (त्रिलोचन विशेषांक) एवं डॉ.सिद्धेश्वर सिंह )

सोमवार, नवंबर 09, 2009

"उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

राष्ट्रीय मानव कल्याण समिति, खटीमा (उत्तराखण्ड) द्वारा आज 9 नवम्बर को 
"उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस " की 10वीं वर्ष-गाँठ सांस्कृतिक संध्या के रूप में 
मनाई गयी।
इस अवसर पर क्षेत्र की जानी-मानी और नवोदित 
प्रतिभाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये 
गये।

नीचे के चित्र में थ्री स्टार डांस ग्रुप द्वारा मुख से ज्वाला निकाल कर हैरत-अंगेज कार्यक्रम पेश किया गया।

इस कार्यक्रम के मुख्य-अतिथि खटीमा के उप-जिलाधिकरी बी.एस.चलाल विशिष्ट-अतिथि पुलिस उपाधीक्षक अमित श्रीवास्तव ने सभी उत्तराखण्ड-वासियों को शुभ-कामनाएँ देते हुए कहा कि उत्तराखण्ड भविष्य में भारत का आदर्श राज्य होगा। 

राष्ट्रीय मानव कल्याण समिति, खटीमा के अध्यक्ष महेश जोशी ने इस अवसर पर समिति के सभी सदस्यों का परिचय कराते हुए कहा कि हम सभी लोग मिलकर राज्य के सभी तबकों के उत्थान के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहेंगे।

गुरुवार, नवंबर 05, 2009

"चीन की सीमा तक जा पाओगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"ला-परवाही का नमूना देख लीजिए"

जी हाँ !
यह वो पुल है जो पिछले दो वर्षों से टूटा पड़ा है। सन् 2007 में बरसात में इसका एक छोर 200 मीटर बह गया था। जगबूढ़ा नदी सड़क काटकर पुल से अलग बहने लगी थी। तीन माह तक चम्पावत जिले का सम्बन्ध सारे देश से कट गया था। टनकपुर डिपो कार्यशाला की आधी बसें टनकपुर डिपो में कैद थी तो आधी बसें पुल के इस पार थीं। जिनके लिए नानकमत्ता बस-स्टैण्ड को अस्थायी कार्यशाला बनाना पड़ा था। परन्तु न तो उत्तराखण्ड सरकार के कान पर जूँ रेंगी तथा न ही केन्द्र सरकार ने इसकी कोई सुध ली।

कई बार डाईवर्जन के रूप में वैकल्पिक मार्ग बना और जगबूढ़ा नदी में पानी बढ़ने के साथ ही वह ध्वस्त होता रहा।
यह पुल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 125 पर खटीमा और बनबसा के मध्य स्थित है। यह भारत के पिथौरागढ़, चम्पावत ही नही अपितु नेपाल की सीमा और चीन की संवेदनशील सीमा को भी जोड़ने वाला एक मात्र मार्ग है।


लगभग दो वर्षों से इसका यही हाल है।
वैकल्पिक मार्ग (डाईवर्जन) नदी में पानी आ जाने के कारण ध्वस्त हो गया था कि चीन की सीमा पर हल-चल बढ़ने लगी। सेना के तो होश फाख्ता हो गये। 
जैसे-तैसे सेना ने 24 घण्टे में पुनः डाईवर्जन तैयार किया।
जितनी बार यह डाईवर्जन बहे हैं और उनको पुनः बनाने में जो लागत खर्च हुई है। उससे तो 2-3 बार नये पुल का निर्माण हो सकता था। मगर इससे लोक निर्माण विभाग और एन.एच. को मलाई नही मिल पाती।
इस पुल के दोनों ओर तो डबल रोड है मगर पुल इतना सँकरा है कि इसमें से केवल एक वाहन ही पास हो सकता है।
भारत-चीन सीमा पर हल-चल बढ़ जाने के कारण मन्थर गति से अब इस पर कार्य होना प्रारम्भ शुरू हो रहा है। परन्तु पुल तो सिंगल ही रहेगा।
अन्त में तो मैं यही कहूँगा कि- 
" मेरा भारत महान"

मंगलवार, नवंबर 03, 2009

"सोच-समझ कर उत्तर दो!" का सही उत्तर (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

पिछली पोस्ट में हमने एक प्रश्न पूछा था!

अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जना क्या हैं?
इस प्रश्न का सही उत्तर देने वाले हैं-
Mishra Pankaj ने कहा…
अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्तियाँ हैं। शब्द का अर्थ और बोध कराने वाली शक्ति को शब्द-शक्ति कहते हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं।
अभिधा- जिस शक्ति से शब्द अपने स्वाभाविक साधारण बोल-चाल के प्रसिद्ध अर्थ को बताता है उसे अभिधा कहते हैं।
लक्षणा- जहाँ पर वाच्यार्थ का स्पष्ट बोध न हो परन्तु रूढ़ि या प्रयोजन के सहारे उससे सम्बन्धित अन्य अर्थ का बोध हो उसे लक्षणा शक्ति कहते हैं। लक्षणा दो प्रकार की होती है- शुद्धा लक्षणा और गौणी लक्षणा।
व्यंजना- जो अर्थ अभिधा और लक्षणा से न बताया जा सके उसको बताने वाली शक्ति का नाम व्यंजना व्यंजना है। ऐसे शब्द को व्यंजक और अर्थ को व्यंग्य कहते हैं।
व्यंजना शक्ति भी दो प्रकार की होती है- अभिधा मूला व्यंजना और लक्षणा मूला व्यंजना।


ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अभिधा, लक्षणा और व्यंजना शब्द-शक्तियाँ हैं. ये निम्न तीन प्रकार की होती हैं.
उदाहरण सहित देखिये.
अभिधा - से बात का मुख्यार्थ प्रकट होता है. उदाहरणार्थ सुर्य पुर्व दिशा से उदय होता है.
लक्षणा - से लक्ष्यार्थ प्रकट होता है. उदाहरणार्थ लाल पगडी जा रही है या भारत जाग उठा.
व्यंजना- से व्यंग्यार्थ प्रकट होता हैं. उदाहरण के लिये अंधेरा होगया.
रामराम.
वन्दना ने कहा…
अभिधा-------कथन, नाम, शब्द की वह शक्ति जिससे उनके नियत अर्थ ही निकलते हैं ।
लक्षणा-------शब्द की वह शक्ति जो अर्थ क बोध होने पर केवल रूढि के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन के लिये मुख्य अर्थ से सम्बद्ध किसी दूसरे अर्थ का ज्ञान कराती है ,यह तीन प्रकार की कही गयी है ----अजहत्लक्षणा,जहत्लक्षणा और जहद जहलक्षणा। एक अप्सरा का नाम , शब्द की वह शक्ति जिसके द्वारा उसके अभिप्रेत अर्थ का बोध होता है , हंसी,सारसी ।
व्यञ्जना---------व्यक्त या प्रकट करने की क्रिया या भाव, तीन प्रकार की शब्द शक्तियों में से एक जो अभिधा और लक्षणों के विरत हो जाने पर संकेतार्थ प्रकत करती है ।


Murari Pareek ने कहा…

ये तीनो शब्दों की शक्ति को दर्शाते है| जिन्हें शब्द शक्ति कहा गया है ! यूँ कहिये की शब्दों की शक्ति के ये तीन रूप हैं !
लेकिन Mishra Pankaj  तथा ताऊ रामपुरिया ने उपरोक्त प्रश्न का विस्तार से समझाकर उत्तर लिखा है। 
अतः "साहित्य शारदा मंच" खटीमा (उत्तराखण्ड) द्वारा श्री पंकज मिश्र तथा श्री ताऊ रामपुरिया को "साहित्य-श्री" की उपाधि से अलंकृत करने का निर्णय लिया गया है।
कृपया आप अपना सही डाक-पता और सम्पर्क फोन नम्बर मुझे ई-मेल से भेज दें।
इनके अतिरिक्त विनोद कुमार पांडेयDhiraj ShahSumanGagan Sharma, Kuchh Alag sa , तथा Babli जी ने भी पोस्ट पर टिप्पणी देकर अनुग्रहीत किया

रविवार, नवंबर 01, 2009

"सोच-समझ कर उत्तर दो!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



अभिधा, लक्षणा और व्यञ्जना क्या हैं?


अपनी टिप्पणियों के माध्यम से स्पष्ट करें।


प्राप्त टिप्पणियों का विश्लेषण करके किसी एक टिप्पणीकार को "साहित्य शारदा मंच. खटीमा उत्तराखण्ड" द्वारा "साहित्य-श्री" की मानद उपाधि से अलंकृत करने का निर्णय किया गया है।
समय-सीमाः 3 नवम्बर,2009 के सायं 6 बजे तक।

मंगलवार, अक्तूबर 27, 2009

"नाम के कुत्ते - काम के वफादार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")




स्वामीभक्ति की 
जीती-जागती मिसाल -


नाम के कुत्ते - 
काम के वफादार,


बिन झोली के भिखारी
रोटी के 
चन्द टुकड़ों के लिए -


स्वामी पर 
जान न्योछावर करने वाले-

इन सदस्यों के हवाले 
आज घर की

पूरी रखवाली सौंपकर
दिल्ली जा रहा हूँ।


परसों
फिर ब्लॉगिंग की 
सेवा में 
हाजिर हो जाऊँगा।


तब तक के लिए
नमस्ते!!!


मोबाइल नं.
09368499921
09997996437

रविवार, अक्तूबर 25, 2009

"छठ-पूजा महोत्सव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! खटीमा में छठ-पूजा !!

छठ-पूजा का त्यौहार आज केवल बिहार तक ही सीमित नही रह गया है। अब यह न केवल भारत के कोने-कोने में तो मनाया ही जाता है, बल्कि विदेशों में भी धूम-धाम से मनाया जाने लगा है।
इसमें महिलाएँ 36 घण्टों तक व्रत रखती हैं। इसमें अस्ताञ्चल भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है। छठ-देवी सूर्य पुत्री हैं। किन्तु मेरी स्वयं की मान्यता और तर्क के अनुसार पुत्री अपने पिता को उदय होने और अस्त होने पर भी अर्घ्य प्रदान करती है। अतः पुत्री का महत्व आदिकाल से ही हमारी सभ्यता में वर्णित है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे समाज में पुत्री को अभिशाप समझने वालों के लिए यह पावन पर्व यह सन्देश देता है कि बेटियों को भी बेटों के समान आदर और मान समाज में मिलना चाहिए।

इस पावन पर्व को उत्तराखण्ड के खटीमा में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया।
रेलवे ग्राउण्ड में बने सरोवर के किनारे एक भव्य आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता पूर्व मन्त्री (उ.प्र.) ठा. प्रेमप्रकाश सिंह ने की। समारोह के मुख्य-अतिथि खटीमा फाईबर्स के स्वामी श्री आर.सी. रस्तोगी थे।
इस अवसर पर पूर्वाञ्चल से छठ-माता के गुण-गान करने के लिए गायक और गायिकाओं को भी बुलाया गया था। पूरी रात भजन गायिकी का कार्यक्रम चला। जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने बड़े उत्साह से भाग लिया।

मंगलवार, अक्तूबर 20, 2009

"नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! उत्सवप्रियाः मानवाः !!




(चित्रों में नानकमत्ता दीपावली मेले के अद्यतन दृश्य)
नानकमत्ता साहिब एक ऐतिहासिक महत्व का सिक्खों का धार्मिक सुविख्यात स्थान होने के साथ-साथ यहाँ लगने वाला दीपावली का मेला भी इस क्षेत्र का विशालतम माना जाता है। इसमे 5 से 10 लाख लोगों की भीड़ जमा होती है।
दस दिनों तक चलने वाले मेले का दीपावली से दो दिन पूर्व शुभारम्भ हो जाता है। तीन दिनों तक तो सिख-पन्थ से लोगों के द्वारा बड़े-बड़े दीवान आयोजित किये जाते हैं। जिनमें उच्र्च कोटि के धार्मिक व्याख्यानकर्ता तथा रागी अपने भजन-कीर्तन तथा व्याख्यान देते हैं। इसके बाद आदिवासी रानाथारू जन-जाति के लोगों के साथ-साथ इस क्षेत्र के सभी धर्मों के लोग और दूर-दराज से आने वाले दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहता है।
नानकमत्ता साहिब में आधुनिक सुविधाओं से युक्त 200 कमरों की एक सराय भी है। वह इस समय बिल्कुल भरी रहती है। इसके साथ ही मेलार्थियों के लिए अलग से टेण्ट लगाकर भी रहने की व्यवस्था गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी, नानकमत्ता द्वारा की जाती है।
गुरू महाराज के दरबार साहिब में बारहों मास तीन स्थानों पर अनवरतरूप से लंगर चलता रहता है। इसलिए इस मेले में खाने का कोई होटल नही होता है। हाँ ! चाट-मिष्ठान आदि की बहुत सी दूकाने होती हैं। सुबह से शाम और रात तक चलने वाले लंगर में लाखों लोग प्रतिदिन प्रसाद के रूप मे लंगर छकते हैं।
मेले की व्यवस्था सुचारूरूप से चलाने के लिए मेला-अवधि में यहाँ 24 घण्टे बाकायदा एक पुलिस कोतवाली अपना काम करती रहती है।
आज की तेजी से भागती हुई जिन्दगी में भी इस मेले में 3-4 अस्थायी टेण्ट टाकीज, 2-3 नाटक कम्पनियाँ, सरकस, 10-15 झूले, मौत का कुआँ और इन्द्र-जाल, काला-जादू आदि अनेकों मनोरंजन के साधन यहाँ पर होते हैं।
वस्त्रों, खिलौनों और घरेलू सामानों की तो इस मेले में हजारों दूकानें होती हैं। इसके साथ ही यहाँ पर तलवारों, कृपाणों, भाला, बरछी और लाठी-डण्डों की भी सैकड़ों दूकानें सजी होतीं हैं।
यदि आप भी उत्सवप्रिय हैं तो कभी इस मेले का भी आनन्द उठा सकते हैं।
मेले के साथ-साथ आपका देशाटन भी हो जायेगा और गुरू नानकदेव के दरबार में मत्था टेकने का भी 
आपको सौभाग्य प्राप्त हो जायेगा।
गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब उत्तराखण्ड के जिला-ऊधमसिंहनगर में स्थित है। यह दिल्ली से 275 किमी दूर है तथा मुरादाबाद से 130 किमी दूर है। अन्तिम रेलवे स्टेशन रुद्रपुर-सिटी और छोटी लाइन का स्टेशन खटीमा या किच्छा है।
यह रुद्रपुर-सिटी से 58 किमी, खटीमा से 16 किमी तथा किच्छा से 38 किमी है।

शनिवार, अक्तूबर 17, 2009

"श्रद्धाञ्जलि" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)


!! श्रद्धाञ्जलि !!

(श्री रामचन्द्र आर्य)
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
अस्सी वर्षों तक दुनिया में,
पुष्प कुंज बनकर चमके तुम।
दीवाली पर नील-गगन में,
ज्योति पुंज बनकर दमके तुम।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
कुप्रथाओं से लड़ने में ही,
जीवन भर संलग्न रहे तुम।
सबको शिक्षित करने में ही,
अपनी धुन में मग्न रहे तुम।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
पिंड-दान और मृतक-भोज का,
तुमने घोर विरोध किया था।
जीते-जी लिख गये वसीयत,
तुमने हमको बोध दिया था।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।। 

श्रद्धा-सुमन समर्पित करते,
दीप जला कर दीवाली में।
दमक रहे हो ‘रामचन्द्र’ तुम,
अन्तरिक्ष की थाली में।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।

मंगलवार, अक्तूबर 13, 2009

‘‘प्रेस से सम्बन्धित कुछ कानून’’ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

‘‘प्रेस से सम्बन्धित कुछ कानून’’


मीडिया (प्रैस) को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। किन्तु जहाँ पत्रकार को निर्भयता पूर्वक लिखने और स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकाशित करने का अधिकार है वहीं उसे प्रैस से सम्बन्धित नियमावली और अपनी सीमाओं की भी जानकारी का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।

इससे सम्बन्धित लेखमाला का आज पहला अध्याय आपकी सेवा में प्रस्तुत है।

!! मानहानि !!
मानहानि दो रूपों में हो सकती है-
1- लिखित रूप में।
2- मौखिक रूप में।
यदि किसी के विरुद्ध प्रकाशितरूप में या लिखितरूप में झूठा आरोप लगाया जाता है या उसका अपमान किया जाता है तो यह "अपलेख" कहलाता है।
जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपमानजनक कथन या भाषण किया जाता है। जिसे सुनकर लोगों के मन में व्यक्ति विशेष के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न हो तो वह "अपवचन" कहलाता है।

मानहानि के अपराध में दण्डित व्यक्ति पर दीवानी और फौजदारी मुकदमें चलाए जा सकते हैं। जिसमें दो वर्ष की साधारण कैद अथवा जुर्माना या दोनों सजाएँ हो सकती हैं।

सार्वजनिक हित के अतिरिक्त न्यायालय की कार्यवाही की मूल सत्य- प्रतिलिपि मानहानि नही मानी जाती। न्यायाधीशों के निर्णय व गुण-दोष दोनों पर अथवा किसी गवाह या गुमास्ते आदि के मामले में सदभावनापूर्वक विचार प्रकट करना मानहानि नही कहलाती है। लेकिन इसके साथ ही यह आवश्यक है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ या राय न्यायालय का निर्णय होने के बाद ही दिये जाने चाहिएँ।

सार्वजनिक हित में संस्था या व्यक्ति पर टिप्पणी भी की जा सकती है या किसी भी बात का प्रकाशन किया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखा जाये कि अवसर पड़ने पर बात की पुष्टि की जा सके।
कानून का यह वर्तमानरूप ही पत्रकारों के लिए आतंक का विषय है।

अधिकांश मामलों में बचाव इस प्रकार हो सकता है कि - 1- कथन की सत्यता का प्रमाण। 2- विशेषाधिकार तथा 3- निष्पक्ष टिप्पणी तथा आलोचना।
यदि किये गये कथनों का प्रमाण हो हो तो अच्छा बचाव होता है। विशेषाधिकार सदैव अनुबन्धित और सीमित होता है। समाचारपत्रों का यह विशेषाधिकार विधायकों आर न्यायालयों को भी प्राप्त होता है। अतः कहने का तात्पर्य यह है कि आलोचना का विषय सार्वजनिक हित का होना चाहिएऔर स्पष्टरूप से कहे गये तथ्यों का बुद्धिवादी मूल्यांकन होने के साथ-साथ यह पूर्वाग्रह से भी परे होना चाहिए। क्रमशः................

शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2009

"दो तोतों की कथा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



एक बहेलिया बाजार में घूम रहा था। उसके पास दो तोतों के पिंजड़े थे। दोनों में एक से ही तोते बन्द थे और समान आयु के ही लगते थे। 
बहेलिए के पास जो भी ग्राहक आता वह उनकी कीमत सुनकर आगे बढ़ जाता था।
अन्त में एक धनी ग्राहक आया। उसने बहेलिए से इन तोतों की कीमत पूछी।
बहेलिए ने कहा- "यह तोता 100 रुपये का है।"


ग्राहक ने पूछा- "और यह तोता कितने का है?"
बहेलिए ने उत्तर दिया- "यह तोता 20 रुपये का है।"

धनी ग्राहक ने जब इसका कारण पूछा तो बहेलिए ने कहा- "साहब इन दोनो को अपने साथ घर ले जाइए। आपको इनका अन्तर पता लग जायेगा।"
धनी ग्राहक कीमत देकर खुशी-खुशी दोनों तोतों को अपने घर ले आया।
अगले दिन जब सुबह को यह धनी व्यक्ति सोकर उठा तो सवसे पहले वो 100 रुपये वाले तोते के पास गया।
तोता उससे बड़ी मीठी वाणी में बोला- "स्वागतम! आपका दिन शुभ हो!!"
धनी व्यक्ति तोते की वाणी सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ।
अब यह उत्सुकतावश् 20 रुपये वाले तोते के पास गया। यह तोता इसे देखते ही चिल्लाने लगाः "कमीने! हरामी!! मैं तेरा खून पी जाऊँगा।"
धनी व्यक्ति यह नज़ारा देखकर दंग रह गया। उसने अपने नौकरों से इसे मार डालने का आदेश दिया।
इस पर 100 रुपये वाले तोते ने कहा- "मालिक साहब! इसे मारिए मत, यह मेरा भाई है। मैं आपके पास आने से पहले एक साधू के पास रहता था। लेकिन दुर्भाग्यवश् इसे एक डाकू पकड़कर ले गया था। बुरी संगति के कारण ही यह ऐसे बोलता है।"
इस तोते ने आगे कहा- "शठ् सुधरहिं सत् संगति पाई। अब यह मेरी संगति पाकर सुधर जायेगा।"
अब दोनों तोतों के मूल्य का अन्तर धनी व्यक्ति की समझ में आ गया था।

शनिवार, अक्तूबर 03, 2009

"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!"

आज दो अक्टूबर है।
हर साल की तरह इस बार भी खटीमा तहसील में श्रद्धेय बापू जी और पं.लालबहादुर शास्त्री का जन्म-दिन मनाया जाना था। मैं विगत 26 वर्षों से राष्ट्रीय पर्वों पर तहसील में होने वाले कार्यक्रमों में अवश्य जाता हूँ। मगर इस बार तो नज़ारा बदला-बदला सा था।
तहसीलदार 25 हजार की घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा जा चुका था। एस.डी.एम. छुट्टी पर था। ले-देकर नायबतहलीलदार ही औपचारिकता निभाने के लिए बचा था।
इस अवसर पर न महात्मा गांधी जी का गुणगान, न कोई व्याख्यान। जल्दबाजी में गांधी जी और पं.लालबहादुर शास्त्री जी के चित्र पर तिलक किया और समापन।
जब कारण पूछा गया तो पता लगा कि पास के किसी गाँव में शिक्षा-मन्त्री जी आ रहे हैं।


अब अपने प्यारे तिरंगे की बात करते हैं।
तहसील के एक छोटे कर्मचारी ने चुपचाप जाकर तिरंगा फहरा दिया।
न राष्ट्र-गान और न सलामी।


वाह री देव-भूमि, उत्तराखण्ड।


"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!"