फ़ॉलोअर

मंगलवार, अक्टूबर 27, 2009

"नाम के कुत्ते - काम के वफादार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")




स्वामीभक्ति की 
जीती-जागती मिसाल -


नाम के कुत्ते - 
काम के वफादार,


बिन झोली के भिखारी
रोटी के 
चन्द टुकड़ों के लिए -


स्वामी पर 
जान न्योछावर करने वाले-

इन सदस्यों के हवाले 
आज घर की

पूरी रखवाली सौंपकर
दिल्ली जा रहा हूँ।


परसों
फिर ब्लॉगिंग की 
सेवा में 
हाजिर हो जाऊँगा।


तब तक के लिए
नमस्ते!!!


मोबाइल नं.
09368499921
09997996437

रविवार, अक्टूबर 25, 2009

"छठ-पूजा महोत्सव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! खटीमा में छठ-पूजा !!

छठ-पूजा का त्यौहार आज केवल बिहार तक ही सीमित नही रह गया है। अब यह न केवल भारत के कोने-कोने में तो मनाया ही जाता है, बल्कि विदेशों में भी धूम-धाम से मनाया जाने लगा है।
इसमें महिलाएँ 36 घण्टों तक व्रत रखती हैं। इसमें अस्ताञ्चल भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है। छठ-देवी सूर्य पुत्री हैं। किन्तु मेरी स्वयं की मान्यता और तर्क के अनुसार पुत्री अपने पिता को उदय होने और अस्त होने पर भी अर्घ्य प्रदान करती है। अतः पुत्री का महत्व आदिकाल से ही हमारी सभ्यता में वर्णित है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे समाज में पुत्री को अभिशाप समझने वालों के लिए यह पावन पर्व यह सन्देश देता है कि बेटियों को भी बेटों के समान आदर और मान समाज में मिलना चाहिए।

इस पावन पर्व को उत्तराखण्ड के खटीमा में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया।
रेलवे ग्राउण्ड में बने सरोवर के किनारे एक भव्य आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता पूर्व मन्त्री (उ.प्र.) ठा. प्रेमप्रकाश सिंह ने की। समारोह के मुख्य-अतिथि खटीमा फाईबर्स के स्वामी श्री आर.सी. रस्तोगी थे।
इस अवसर पर पूर्वाञ्चल से छठ-माता के गुण-गान करने के लिए गायक और गायिकाओं को भी बुलाया गया था। पूरी रात भजन गायिकी का कार्यक्रम चला। जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने बड़े उत्साह से भाग लिया।

मंगलवार, अक्टूबर 20, 2009

"नानकमत्ता साहिब का दिवाली मेला" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! उत्सवप्रियाः मानवाः !!




(चित्रों में नानकमत्ता दीपावली मेले के अद्यतन दृश्य)
नानकमत्ता साहिब एक ऐतिहासिक महत्व का सिक्खों का धार्मिक सुविख्यात स्थान होने के साथ-साथ यहाँ लगने वाला दीपावली का मेला भी इस क्षेत्र का विशालतम माना जाता है। इसमे 5 से 10 लाख लोगों की भीड़ जमा होती है।
दस दिनों तक चलने वाले मेले का दीपावली से दो दिन पूर्व शुभारम्भ हो जाता है। तीन दिनों तक तो सिख-पन्थ से लोगों के द्वारा बड़े-बड़े दीवान आयोजित किये जाते हैं। जिनमें उच्र्च कोटि के धार्मिक व्याख्यानकर्ता तथा रागी अपने भजन-कीर्तन तथा व्याख्यान देते हैं। इसके बाद आदिवासी रानाथारू जन-जाति के लोगों के साथ-साथ इस क्षेत्र के सभी धर्मों के लोग और दूर-दराज से आने वाले दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहता है।
नानकमत्ता साहिब में आधुनिक सुविधाओं से युक्त 200 कमरों की एक सराय भी है। वह इस समय बिल्कुल भरी रहती है। इसके साथ ही मेलार्थियों के लिए अलग से टेण्ट लगाकर भी रहने की व्यवस्था गुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी, नानकमत्ता द्वारा की जाती है।
गुरू महाराज के दरबार साहिब में बारहों मास तीन स्थानों पर अनवरतरूप से लंगर चलता रहता है। इसलिए इस मेले में खाने का कोई होटल नही होता है। हाँ ! चाट-मिष्ठान आदि की बहुत सी दूकाने होती हैं। सुबह से शाम और रात तक चलने वाले लंगर में लाखों लोग प्रतिदिन प्रसाद के रूप मे लंगर छकते हैं।
मेले की व्यवस्था सुचारूरूप से चलाने के लिए मेला-अवधि में यहाँ 24 घण्टे बाकायदा एक पुलिस कोतवाली अपना काम करती रहती है।
आज की तेजी से भागती हुई जिन्दगी में भी इस मेले में 3-4 अस्थायी टेण्ट टाकीज, 2-3 नाटक कम्पनियाँ, सरकस, 10-15 झूले, मौत का कुआँ और इन्द्र-जाल, काला-जादू आदि अनेकों मनोरंजन के साधन यहाँ पर होते हैं।
वस्त्रों, खिलौनों और घरेलू सामानों की तो इस मेले में हजारों दूकानें होती हैं। इसके साथ ही यहाँ पर तलवारों, कृपाणों, भाला, बरछी और लाठी-डण्डों की भी सैकड़ों दूकानें सजी होतीं हैं।
यदि आप भी उत्सवप्रिय हैं तो कभी इस मेले का भी आनन्द उठा सकते हैं।
मेले के साथ-साथ आपका देशाटन भी हो जायेगा और गुरू नानकदेव के दरबार में मत्था टेकने का भी 
आपको सौभाग्य प्राप्त हो जायेगा।
गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब उत्तराखण्ड के जिला-ऊधमसिंहनगर में स्थित है। यह दिल्ली से 275 किमी दूर है तथा मुरादाबाद से 130 किमी दूर है। अन्तिम रेलवे स्टेशन रुद्रपुर-सिटी और छोटी लाइन का स्टेशन खटीमा या किच्छा है।
यह रुद्रपुर-सिटी से 58 किमी, खटीमा से 16 किमी तथा किच्छा से 38 किमी है।

शनिवार, अक्टूबर 17, 2009

"श्रद्धाञ्जलि" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)


!! श्रद्धाञ्जलि !!

(श्री रामचन्द्र आर्य)
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
अस्सी वर्षों तक दुनिया में,
पुष्प कुंज बनकर चमके तुम।
दीवाली पर नील-गगन में,
ज्योति पुंज बनकर दमके तुम।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
कुप्रथाओं से लड़ने में ही,
जीवन भर संलग्न रहे तुम।
सबको शिक्षित करने में ही,
अपनी धुन में मग्न रहे तुम।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।
पिंड-दान और मृतक-भोज का,
तुमने घोर विरोध किया था।
जीते-जी लिख गये वसीयत,
तुमने हमको बोध दिया था।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।। 

श्रद्धा-सुमन समर्पित करते,
दीप जला कर दीवाली में।
दमक रहे हो ‘रामचन्द्र’ तुम,
अन्तरिक्ष की थाली में।
मेरे मामा तुम थे मेरी माँ के प्यारे भाई।
तुम थे ऋषि दयानन्द के सच्चे अनुयायी।।

मंगलवार, अक्टूबर 13, 2009

‘‘प्रेस से सम्बन्धित कुछ कानून’’ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

‘‘प्रेस से सम्बन्धित कुछ कानून’’


मीडिया (प्रैस) को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। किन्तु जहाँ पत्रकार को निर्भयता पूर्वक लिखने और स्वतन्त्रतापूर्वक प्रकाशित करने का अधिकार है वहीं उसे प्रैस से सम्बन्धित नियमावली और अपनी सीमाओं की भी जानकारी का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।

इससे सम्बन्धित लेखमाला का आज पहला अध्याय आपकी सेवा में प्रस्तुत है।

!! मानहानि !!
मानहानि दो रूपों में हो सकती है-
1- लिखित रूप में।
2- मौखिक रूप में।
यदि किसी के विरुद्ध प्रकाशितरूप में या लिखितरूप में झूठा आरोप लगाया जाता है या उसका अपमान किया जाता है तो यह "अपलेख" कहलाता है।
जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपमानजनक कथन या भाषण किया जाता है। जिसे सुनकर लोगों के मन में व्यक्ति विशेष के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न हो तो वह "अपवचन" कहलाता है।

मानहानि के अपराध में दण्डित व्यक्ति पर दीवानी और फौजदारी मुकदमें चलाए जा सकते हैं। जिसमें दो वर्ष की साधारण कैद अथवा जुर्माना या दोनों सजाएँ हो सकती हैं।

सार्वजनिक हित के अतिरिक्त न्यायालय की कार्यवाही की मूल सत्य- प्रतिलिपि मानहानि नही मानी जाती। न्यायाधीशों के निर्णय व गुण-दोष दोनों पर अथवा किसी गवाह या गुमास्ते आदि के मामले में सदभावनापूर्वक विचार प्रकट करना मानहानि नही कहलाती है। लेकिन इसके साथ ही यह आवश्यक है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ या राय न्यायालय का निर्णय होने के बाद ही दिये जाने चाहिएँ।

सार्वजनिक हित में संस्था या व्यक्ति पर टिप्पणी भी की जा सकती है या किसी भी बात का प्रकाशन किया जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखा जाये कि अवसर पड़ने पर बात की पुष्टि की जा सके।
कानून का यह वर्तमानरूप ही पत्रकारों के लिए आतंक का विषय है।

अधिकांश मामलों में बचाव इस प्रकार हो सकता है कि - 1- कथन की सत्यता का प्रमाण। 2- विशेषाधिकार तथा 3- निष्पक्ष टिप्पणी तथा आलोचना।
यदि किये गये कथनों का प्रमाण हो हो तो अच्छा बचाव होता है। विशेषाधिकार सदैव अनुबन्धित और सीमित होता है। समाचारपत्रों का यह विशेषाधिकार विधायकों आर न्यायालयों को भी प्राप्त होता है। अतः कहने का तात्पर्य यह है कि आलोचना का विषय सार्वजनिक हित का होना चाहिएऔर स्पष्टरूप से कहे गये तथ्यों का बुद्धिवादी मूल्यांकन होने के साथ-साथ यह पूर्वाग्रह से भी परे होना चाहिए। क्रमशः................

शुक्रवार, अक्टूबर 09, 2009

"दो तोतों की कथा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



एक बहेलिया बाजार में घूम रहा था। उसके पास दो तोतों के पिंजड़े थे। दोनों में एक से ही तोते बन्द थे और समान आयु के ही लगते थे। 
बहेलिए के पास जो भी ग्राहक आता वह उनकी कीमत सुनकर आगे बढ़ जाता था।
अन्त में एक धनी ग्राहक आया। उसने बहेलिए से इन तोतों की कीमत पूछी।
बहेलिए ने कहा- "यह तोता 100 रुपये का है।"


ग्राहक ने पूछा- "और यह तोता कितने का है?"
बहेलिए ने उत्तर दिया- "यह तोता 20 रुपये का है।"

धनी ग्राहक ने जब इसका कारण पूछा तो बहेलिए ने कहा- "साहब इन दोनो को अपने साथ घर ले जाइए। आपको इनका अन्तर पता लग जायेगा।"
धनी ग्राहक कीमत देकर खुशी-खुशी दोनों तोतों को अपने घर ले आया।
अगले दिन जब सुबह को यह धनी व्यक्ति सोकर उठा तो सवसे पहले वो 100 रुपये वाले तोते के पास गया।
तोता उससे बड़ी मीठी वाणी में बोला- "स्वागतम! आपका दिन शुभ हो!!"
धनी व्यक्ति तोते की वाणी सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ।
अब यह उत्सुकतावश् 20 रुपये वाले तोते के पास गया। यह तोता इसे देखते ही चिल्लाने लगाः "कमीने! हरामी!! मैं तेरा खून पी जाऊँगा।"
धनी व्यक्ति यह नज़ारा देखकर दंग रह गया। उसने अपने नौकरों से इसे मार डालने का आदेश दिया।
इस पर 100 रुपये वाले तोते ने कहा- "मालिक साहब! इसे मारिए मत, यह मेरा भाई है। मैं आपके पास आने से पहले एक साधू के पास रहता था। लेकिन दुर्भाग्यवश् इसे एक डाकू पकड़कर ले गया था। बुरी संगति के कारण ही यह ऐसे बोलता है।"
इस तोते ने आगे कहा- "शठ् सुधरहिं सत् संगति पाई। अब यह मेरी संगति पाकर सुधर जायेगा।"
अब दोनों तोतों के मूल्य का अन्तर धनी व्यक्ति की समझ में आ गया था।

शनिवार, अक्टूबर 03, 2009

"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!"

आज दो अक्टूबर है।
हर साल की तरह इस बार भी खटीमा तहसील में श्रद्धेय बापू जी और पं.लालबहादुर शास्त्री का जन्म-दिन मनाया जाना था। मैं विगत 26 वर्षों से राष्ट्रीय पर्वों पर तहसील में होने वाले कार्यक्रमों में अवश्य जाता हूँ। मगर इस बार तो नज़ारा बदला-बदला सा था।
तहसीलदार 25 हजार की घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा जा चुका था। एस.डी.एम. छुट्टी पर था। ले-देकर नायबतहलीलदार ही औपचारिकता निभाने के लिए बचा था।
इस अवसर पर न महात्मा गांधी जी का गुणगान, न कोई व्याख्यान। जल्दबाजी में गांधी जी और पं.लालबहादुर शास्त्री जी के चित्र पर तिलक किया और समापन।
जब कारण पूछा गया तो पता लगा कि पास के किसी गाँव में शिक्षा-मन्त्री जी आ रहे हैं।


अब अपने प्यारे तिरंगे की बात करते हैं।
तहसील के एक छोटे कर्मचारी ने चुपचाप जाकर तिरंगा फहरा दिया।
न राष्ट्र-गान और न सलामी।


वाह री देव-भूमि, उत्तराखण्ड।


"मन्त्री प्रमुख! बापू गौण!!"

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।