कुछ दिनों पहले मुझे साधना वैद की “एक
फुट के मजनू मियाँ” प्राप्त हुई मैंने सोचा कि शायद ये कोई उपन्यास होगा। लेकिन
जब मैंने इसको खोलकर देखा तो पता लगा कि यह एक बालकृति है। जिसमें बच्चों के
लिए छोटी-छोटी बीस बालोपयोगी लघुकथाएँ संकलित हैं।
मैंने अपनी साहित्य की लम्बी यात्रा में
यह पाया है कि आजकल बच्चों के लिए बहुत कम साहित्य लिखा जा रहा है। इसीलिए बच्चों
का मन पढ़ाई से ऊबने लगा है और वह टी.वी. के भौंडे धारावाहिकों में उलझकर अपना मनोरंजन
कर रहे हैं।
इस बालकृति पर चर्चा करने से पहले मैं इसकी
रचयिता श्रीमती साधना वैद के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। इससे पहले भी इनकी
एक पुस्तक “संवेदना की नम धरा पर” प्रकाशित हो चुकी है जिसकी समीक्षा में मैंने
लिखा था- “जिसको मन मिला है एक कवयित्री का, वो सम्वेदना की प्रतिमूर्ति तो एक
कुशल गृहणी ही हो सकती है। ऐसी प्रतिभाशालिनी कवयित्री का नाम है साधना वैद।
जिनकी साहित्य निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री सुमित्रानन्दन
पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
"वियोगी होगा पहला कवि, हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों
से चुपचाप, बही
होगी कविता अनजान।।"
अब “एक फुट के
मजनू मियाँ” की बात करता हूँ जिसमें दादी-नानी के मुँह से सुनी हुई बीस रोचक बाल
कहानियों का उल्लेख है।
बालकथा संग्रह की शीर्षक कथा “एक फुट के मजनूँ
मियाँ” अपने आप में बहुत रोचक है। जिसमें एक छोटे कद के व्यक्ति ने अपनी पसन्द की
राजकुमारी से शादी करने के लिए एक गाड़ी बनाई थी, जिसका विवरण कथा निम्नवत् दिया
गया है-
“एक फुट के मजनूँ मियाँ, दो फुट की
दाढ़ी,
चूहे जोत चलाते थे, सरकंडे की गाड़ी।“
माना कि यह कथा सत्य से परे बिल्कुल
काल्पनिक है मगर रोचकता से भरपूर है और ऐसी ही कहानी शिशुओं को बहुत पसन्द आती
है।
बाल कथा “आलसी-लालची मकड़ी” में मकड़ी
ने गिलहरी, खरगोश, चूहे, छछून्दर, गौरैया, बया, मैना आदि के घर आने-जाने के लिए
जन्माष्टमी के अवसर पर अपने जाले फैला दिये थे और उनमें उसकी खुद की ही टाँगें
फँस गयीं थी। इसी तरह से चिड़ा-चिड़िया और बिल्ली, गपोड़शंख, चीँटी और चील, बन्दर
और कछुआ, शेखचिल्ली, आदि सभी दादी नानी की कहानियों में बच्चों को सीख और प्रेरणा
मिलती है।
"दिवाली की रात" और "चलो चलें माँ" कहानियों को
लेखिका साधना बैद ने अपनी कल्पनाशक्ति से स्वयं रचा है।
"दिवाली की रात" में
लेखिका ने यह समझाने की कोशिश की है कि हम त्यौहारों पर आनन्द जरूर मनायें लेकिन उससे
किसी को भी कष्ट न हो, साथ ही कथा में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की भी सीख दी है।
इनकी
दूसरी बालकथा “चलो चलें माँ” होली के रंगों और कर्कश आवाजों में बजने वाले ढोल
से से होने वाली कठिनाइयों से है। होली के त्यौहार पर बच्चे कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटते हैं जिससे
पर्यावरण तो नष्ट होता ही है साथ ही पेड़ों पर जन्तुओं को घोंसले भी उजड़ जाते
है। अतः इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि त्यौहारों पर हमारी खुशियों से दूसरों
को रंज न हो इसका हमें ध्यान रखना चाहिए।
“एक फुट के मजनू मियाँ” बालकथासंग्रह
को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि लेखिका साधना वैद ने बालकों की रुचियों को ध्यान
में रखकर बालकहानियों की सभी विशेषताओं का जो निर्वहन किया है वह बच्चों के मन
को समझने वाली एक कुशल लेखिका ही कर सकती है। मुझे पूरा विश्वास है कि बच्चे ही
नहीं अपितु बड़े भी “एक फुट के
मजनू मियाँ” बालकथासंकलन को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों
की दृष्टि से भी उपयोगी सिद्ध होगी।
“एक फुट के मजनू मियाँ” बालकथासंकलन
को आप लेखिका के पते – श्रीमती साधना
वैद,
33/23, आदर्श नगर, रकाबगंज, आगरा (उ.प्र.)
से प्राप्त कर सकते
हैं।
इनका सम्पर्क नम्बर - 09319912798
तथा
E-Mail . sadhana.vaid@gmail.com है।
100 पृष्ठों की
सजिल्द पुस्तक का मूल्य
मात्र रु. 300/- है।
दिनांकः 19-11-2018(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) कवि एवं साहित्यकार टनकपुर-रोड, खटीमा जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308 E-Mail . roopchandrashastri@gmail.c Website. http:// Mobile No. 7906360576 |
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सोमवार, नवंबर 19, 2018
समीक्षा "एक फुट के मजनू मियाँ” (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लेबिल:
“एक फुट के मजनू मियाँ”,
समीक्षा
रविवार, जुलाई 01, 2018
‘स्मृति उपवन’ संस्मरण साहित्य की अपूर्व निधि (डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय)
संस्मरण साहित्य की अपूर्व निधि
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय
|
हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर आधिपत्य रखनेवाले डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की संस्मरण
आधारित पुस्तक ‘स्मृति उपवन’ की पाण्डुलिपि मेरे
समक्ष है। ‘मयंक’ जी ने अभी तक आठ
पुस्तकों का प्रकाशन किया है उन सभी पुस्तकों के विषय विभिन्न सामाजिक सरोकारों, परिवर्तनों, सुधारों तथा मनरंजन
पर आधारित रहे हैं, कई अच्छे गीतों की रचना भी आपने की है परन्तु आज जिस
पाण्डुलिपि की बात मैं कर रहा हूँ वह
अपने में अलग विधा है तथा हिन्दी प्रेमियों, शोथार्थियों हेतु
उपयोगी होगी। हिन्दी साहित्य की सबसे लचकदार विधा संस्मरण को कहा गया है।
अनेकानेक साहित्यकारों तथा महापुरुषों ने अपने जीवन के अनेक स्वणर्णिम पलों को
गद्य की इस विधा द्वारा प्रस्तुत किया है, सम्प्रति अतीत की
स्मृतियों को बड़े ही आत्मीयता के साथ कल्पना से दूर रहकर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री
‘मयंक’ ने ‘स्मृति-उपवन’ का सृजन किया है
जिसके भाग एक में बाबा नागार्जुन के साथ बिताए पलों को बड़ी ही आत्मीयता के साथ
साहित्य प्रेमियों के समक्ष रखने का सार्थक प्रयास किया है। तत्कालीन छायाचित्र
भी उन घटनाओं को प्रामाणिक सिद्ध करते हैं।
बाबा
नागार्जुन एक कवि नहीं बल्कि एक विचारक भी थे। हिन्दी साहित्य लेखन में त्रुटियों
से परे रहने की शिक्षा, क्रान्तिकारी विचारों की प्रकृति के साथ तादात्म्य तथा
जनता के शोषण संकट आदि को परोसने में उन्होंने एक नया कौशल दिखाया।
डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी ने बाबा
नागार्जुन द्वारा प्रेषित पत्रों को तथा उनके द्वारा समय-समय पर वाचन की जाने
वाली विशेष कविताओं को उल्लेखित कर साहित्य प्रेमियों पर उपकार किया है। बाबा की
बहुत सी कविताओं का सही अर्थ तो मैंने भी मयंक जी का संग-साथ पाकर ही जाना है।
छायावादी कवियों की श्रृंखला में ‘‘कई दिनों तक चूल्हा
रोया...’’ तथा ‘‘आए दिन बहार के’’ शीर्षक की कविता में जल-संकट और अकाल का वर्णन सरलतम
रूप में बाबा जी ने किया है जिसे ‘मयंक’ जी ने ‘स्मृति-उपवन’ में विशेष स्थान
दिया है। बाबा की श्रेष्ठतम कविता ‘‘बादल को घिरते देखा
है’’ का पुस्तक में संपूर्ण प्रकाशन किया गया है। बाबा नागार्जुन के लिए
समर्पित ‘मयंक’ जी द्वारा लिखा
संस्मरण ‘बाबा को
लिखते देखा है’ बहुत ही रोचक है और उम्र के अंतिम पड़ाव तक भी
साहित्यकार को लिखते रहने की प्रेरणा देता है।
बाबा
नागार्जुन के साथ बिताए गए लेखक के स्वर्णिम पल और उनके साथ को स्मरण कराते
छायाचित्र ही ‘स्मृति उपवन’ के सृजन के कारक बने
हैं जो हिन्दी प्रेमियों को नवल दिशा प्रदान करने में सक्षम है। ‘मयंक’ जी सौभाग्यशाली हैं
कि उन्होंने बाबा के साथ रहकर हिन्दी साहित्य की विभिन्न बारीकियाँ सीखीं।
--
संस्मरणों
की द्वितीय श्रृंखला में मयंक जी ने अपने जीवन के सुखद क्षणों को पाठकों के
समक्ष रखने का सपफल प्रयास किया है। कुछ श्रेष्ठ संस्मरणों में लक्ष्मीनारायण
मिश्र के साथ बातचीत, ‘लंगूर का पालतू कुत्ते टॉमी को थप्पड़ मारना’, ‘जूली का पिल्लू और
उसकी स्वामीभक्ति’ जीवन्त दृश्य उपस्थित करते हैं। ‘बाल साहित्यकार की परिभाषा’, ‘सीनाजोरी’ संस्मरण के साथ-साथ
कहानी कला शिल्प के भी बेजोड़ उदाहरण हैं और हास्य का भान भी कराते हैं जिसके
कारण रोचकता बढ़ जाती है।
एक
मजदूर और पढ़े-लिखे शिक्षक की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के बीच का तुलनात्मक
अध्ययन बेरोजगारी का भयावह परिणाम ‘मनमाना का मनमाना
दाम’ संस्मरण में उदाहरण शैली के तौर पर देखने को मिलता है। ‘माँ-बाप का
सान्निध्य’, ‘वनसंरक्षण’, तथा ‘पिताजी की बाहों की
ताकत’ संस्मरण उल्लेखनीय है, तो वहीं माता-पिता
की कमी का एहसास कराते ‘पिताजी विदा हो गए’ तथा ‘मेरी प्यारी माँ’ के संस्मरण बहुत
मार्मिक हैं जो पाठकों को सेवाभावी और रिश्तों को समझने तथा सम्मान देने का
संदेश देते हैं। ‘तोते का बलिदान’, ‘भूख’, ‘बचपन बड़ा अजीब’, संस्मरण लेखन की
सरलता के कारण बाल कहानियाँ जैसे लगते हैं।
मयंक
जी ने ‘स्मृति उपवन’ में हर वर्ग के
पाठकों का ध्यान रखा है अन्धविश्वास को दूर करने में ‘भय का भूत’, ‘आशा की एक किरण’ एक गंभीर चिन्तन का
परिणाम है जो सांसारिकता का बोध कराता है और ‘शर्माना नहीं चाहिए’ एक प्रेरक प्रसंग का
कार्य करता है। ‘दादीजी प्रसाद दे दो’ बाल मनोभावों को
बताने में पूर्णरूपेण सक्षम है।
डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ के संस्कारों में
अतिथि देवो भवः है जिसका पूरा-पूरा प्रभाव उनकी धर्मपत्नी, पौत्र-पौत्री तथा
पुत्रों-पुत्रवधुओं पर भी पड़ा है। बाबा नागार्जुन सरीखे अनेक साहित्यकार मयंक जी
के सदन में आए, ब्लॉगरमीट और अन्तर्राष्ट्रीय दोहाकार समागम कार्यक्रम
के सम्मानसमारोह के साक्षी बने। ‘स्मृति उपवन’ के द्वारा पुराने
तथा अविकसित खटीमा का साहित्यिक और भौगोलिक
परिदृश्य पाठकों तक पहुँचेगा, साथ ही बाबा
नागार्जुन की बात ‘बूढ़े लोगों को अपना अनुभव सुनाने की ललक होती है’ तथा ‘नई पीढ़ी के लोग
पुराने लोगों के पास बैठना नहीं चाहते’ भी पाठकों के मन में
उत्प्रेरक का काम करेगी।
आशा
करता हूँ कि इस व्यस्ततम डिजिटल दुनिया में जहाँ बच्चे अपनी ही दुनिया में खोए
होते हैं वह बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ लेने की कोशिश करेंगे यही लेखक मयंक जी
के ‘स्मृति उपवन’ का शुभ-मधुर परिणाम
होगा।
कुल
मिलाकर यह संस्मरण संग्रह अपने में रोचकता लिए हुए है। इसकी सरलतम भाषा शैली और
दुर्लभ चित्रों का समावेश पाठकों को साहित्य लेखन के प्रति रुचि तो पैदा करेगा
ही, साथ ही पुस्तकों के पठन हेतु भी आनन्ददायी शिक्षा प्रदान करेगा। ‘स्मृति उपवन’ संस्मरण संग्रह के
लिए डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी को उनके यशस्वी
लेखन के लिए असीम-अनन्त और अशेष हार्दिक शुभकामनाएँ तथा कोटिशः बधाइयाँ। मुझे
पूरा विश्वास है कि उनका यह संकलन समीक्षकों की कसौटी पर भी खरा उतरेगा।
सद्भावी
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय
अध्यापक-हिन्दी
राज. उ. मा. विद्यालय
बिरिया मझोला (खटीमा)
जिला-ऊधम सिंह नगर
|
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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।
मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!
"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
>> 17 January, 2013 – चेतावनी, नापतोल.कॉम चैनल से कोई सामान न खरीदें
जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
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मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।