हिन्दी के उन्नायक
जयशंकर प्रसाद
"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो"
यशस्वी
साहित्यकार ‘‘जय शंकर प्रसाद’’ को नमन
करते हुए छायावाद के उन्नायक कवि को अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ। जय शंकर
प्रसाद जी का जन्म वाराणसी के वैश्य परिवार में सन् 1890 में हुआ था। इनके बाबा का नाम बाबू शिवरत्न गुप्त
तथा पिता का नाम देवीप्रसाद गुप्त था। जो सुंघनी साहु के रूप में काशी भर में
विख्यात थे। दानवीरता और कलानुरागी के रूप में यह परिवार जाना जाता था। प्रसाद
जी को भी ये गुण विरासत में मिले थे।
बचपन
में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया था। इससे इनका परिवार विपन्नता की
स्थिति में पहुँच गया था। दुःख और विषाद के बीच झूलते हुए इनकी पढ़ाई भी सातवीं
कक्षा से ही छूट गयी थी। लेकिन धुन के धुनी जयशंकर प्रसाद ने अध्यवसाय नही छोड़ा।
देखते ही देखते वे अपनी लगनशीलता के कारण संस्कृत, हिन्दी, उर्दु, फारसी, अंग्रेजी तथा बंगला भाषा में पारंगत हो गये।
अत्यधिक
परिश्रम के कारण उन्होंने फिर से अपनी आर्थिक शाख भी प्राप्त कर ली थी। जिसके
परिणामस्वरूप उन्हें क्षय ने अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया और मात्र 47 वर्ष की आयु में ही उनका देहान्त हो गया।
साहित्यिक
योगदान-
जयशंकर
प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे केवल छायावाद के ही प्रमुख स्तम्भ नही थे
अपितु उन्होंने नाटक, कहानी, उपन्यास
आदि के क्षेत्र में अपनी लेखनी का लोहा मनवा लिया था।
कविरूप-
प्रसाद
जी खड़ी बोली के प्रमुख कवि थे। लेकिन शुरूआती दौर में उन्होंने ब्रजभाषा में भी
अपनी कवितायें लिखीं थी। जो बाद में चित्राधार में संकलित हुईं। उनकी काव्य
कृतियों की संख्या नौ है।
1- चित्राधार
(1908)। 2- करुणालय
(1913)। 3- प्रेम
पथिक (1914)। 4- महाराणा
का महत्व (1914)। 5- कानन
कुसुम (1918)। 6- झरना (1927)। 7- आँसू (1935)। 8- लहर (1935) और 9- कामायनी
(1936)।
उपन्यासकार-
प्रसाद
जी ने अपने जीवनकाल में तीन उपन्यास हिन्दी साहित्य को दिये। 1-कंकाल और 2-तितली
उनके सामाजिक उपन्यास हैं। इनका तीसरा उपन्यास ‘इरावती’ है। लेकिन यह अपूर्ण है। यदि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर
लिखा यह उपन्यास पूर्ण हो जाता तो प्रसाद जी उपन्यास के क्षेत्र में भी अपना
लोहा मनवा लेते।
कहानीकार-
प्रसाद
जी ने लगभग 35 कहानियाँ लिखी है। जो छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप
, आँधी और इन्द्रजाल के नाम से पाँच संग्रहों में
संकलित हैं।
उन्होंने
अपनी पहली कहानी स्वयं ही इन्दु नामक पत्रिका में सन् 1911 में ‘ग्राम’ शीर्षक से छापी थी। उनकी अन्तिम कहानी है सालवती।
प्रसाद
जी की अधिकांश कहानियाँ ऐतिहासिक या काल्पनिक रही हैं, किन्तु सभी में प्रेम भाव की सलिला प्रवाहित होती
रही है।
निबन्धकार-
प्रसाद
जी के निबन्धकार का दिग्दर्शन हमें उनकी विभिन्न कृतियों की भूमिकाओं में
दृष्टिगोचर होता है। काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध उनकी प्रख्यात निबन्ध रचना
है। उनके चिंतन, मनन और गम्भीर अध्ययन की छवि उनके निबन्धों में
परिलक्षित होती है।
नाटककार-
जयशंकर
प्रसाद जी एक महान कवि होने के साथ-साथ एक सफल नाटककार भी थे। उनके कुल नाटकों
की संख्या तेरह है।
1- सज्जन (1910)।
2- कल्याणी
परिणय (1912)।
3- करुणालय
(1913)।
4- प्रायश्चित
(1914)।
5- राज्यश्री
(1915)।
6- विशाख (1921)।
7- जनमेजय
का नागयज्ञ (1923)।
8- अजात
शत्रु (1924)।
9- कामना (1926)।
10- एक घूँट
(1929-30)।
11- स्कन्द
गुप्त (1931)।
12- चन्द्रगुप्त
(1932)। और
13- ध्रुव
स्वामिनी (1933)।
प्रसाद
जी ने अपने नाटकों में तत्सम शब्दावलि प्रधान भाषा, काव्यात्मकता, गीतों
का आधिक्य, लम्बे सम्वाद, पात्रों
का बाहुल्य तथा देश-प्रेम को प्रमुखता दी है।
अन्त
में इतना ही लिखना पर्याप्त होगा कि जयशंकर प्रसाद जी का व्यक्तित्व और कृतित्व
साहित्य-जगत में अपनी अलग और अद्भुद् पहचान लिए हुए है।
छायावाद
के इस महान उन्नायक ने हिन्दी साहित्य को उपन्यास, कहानियों, नाटकों और निबन्धों धन्य कर दिया। कामायिनी जैसा
महाकाव्य रच कर एक प्रख्यात कवि के रूप में अपना विशेष स्थान बनानेवाले प्रसाद जी को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता
हूँ। स्वदेशानुरागी इस महान साहित्यकार को भला कौन हिन्दी प्रेमी भूल सकता है।
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शनिवार, मई 30, 2015
‘‘जय शंकर प्रसाद’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लेबिल:
जयशंकर प्रसाद,
व्यक्तित्व और कृतित्व
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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।
मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
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4- Google Map is not working.
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6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
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8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!
"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
>> 17 January, 2013 – चेतावनी, नापतोल.कॉम चैनल से कोई सामान न खरीदें
जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।