"शकुन्तला-महाकाव्य”
लगभग एक वर्ष पूर्व जयप्रकाश चतुर्वेदी का महाकाव्यसंकलन मुझे प्राप्त हुआ। लेकिन व्यस्तता के कारण इस पुस्तक के बारे
में कुछ लिख ही नहीं पाया। आज जब अपनी बुकसैल्फ इस पुस्तक पर नज़र पड़ी तो सोचा कि
सारे काम छोड़कर सुबह-सुबह ही कुछ लिखने का मन बना लिया।
यद्यपि अच्छे शब्दों का मेरे पास
सर्वथा अभाव रहा है लेकिन फिर भी भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम तो शब्द ही हैं।
पेपरबैक
की जिल्द से सुसज्जित 154 पृष्ठों के इस महाकाव्य को कवि ने स्वयं प्रकाशित
किया गया है। जिसका मूल्य मात्र रु.100/- रखा गया है।
महाकवि जयप्रकाश चतुर्वेदी ने अपने दो शब्दों में उल्लेख किया है-
“काव्य मनुष्य के जीवन का
पाप-ताप-सन्ताप हरण करने वाला मधुपर्क महौषधि है। जिसमें स्वभावतः जन-कल्याण भावना
निहित होती है। यद्यपि इस महाकाव्य का विषय दुष्यन्त एवं शकुन्तला के पवित्र-परिणय
प्रेम की कथा है परन्तु यह विषय महाभारत, पद्मपुराण, तथा श्रीमद्भागवत जैसे पवित्र
ग्रन्थों का अंगभूत होने के कारणलोककल्याणकर भी है।.... इसीलिए मैंने इसे अपना
प्रतिपाद्य विषय भी बनाया...”
"शकुन्तला-महाकाव्य” को विद्वान कवि ने नौ
सर्गों में विभाजित किया है और इनको समुल्लास का नाम दिया है।
प्रथम समुल्लास में शब्द ब्रह्म की वन्दना करते हुए-मालिनी नदी, कण्वआश्रम,
महर्षि कण्व, गौतमी, शकुन्तला एसं अन्य पात्रों का सजीव चित्रण किया है-
"हे शब्दब्रह्म विनती तुमसे,
नतमस्तक होकर करता हूँ।
स्वीकार करो मम् वन्दन को,
मैं पाँव तुम्हारे पड़ता हूँ।।"
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"वन्दन करता उस कुटिया का,
जो कण्व ऋषि का आश्रम है।
मालिनी नाम की नदिया का,
जिसके समीप ये आश्रम है।।"
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अतिशय सुन्दर कन्या ऋषि की,
शकुन्तला वहाँ ही रहती थी।
माता से हीन जन्म से थी,
कुटिया में सुख से रहती थी।।“
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“गौतम, हरीत, शारद्वत् भी,
उस कुटिया में निवास करता।
जिसका जुबान पर वाग्-देवता,
क्षण-प्रतिक्षण निवास करता।।“
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द्वितीय समुल्लास में कवि ने दुस्यन्त का कण्व
ऋषि आश्रम में आना, दुष्यन्त एक शकुन्तला के मन में प्रेम का उद्भव एवं दुष्यन्त
का पुरी जाने के वत्तान्त को काव्य में बाँधा है-
“पुरुवंशी हस्तिना पुरी में,
राजा जन निवास करते।
सबकी रक्षा का भार उठा,
अपने कन्धों पर घरते।।
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दुष्यन्त नाम के राज भी,
राज वहाँ पर रजते थे।
रणवीर और पराक्रमी थे,
ईश्वर को नित भजते थे।।"
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तृतीय समुल्लास में गौतमा द्वारा दु,यन्त को
बुलवाने और उसके विरह का वर्णन सरस छन्दों में किया गया है।
“माँ गौतमी ने अपना
निर्णय उन्हें सुनाया।
दो ऋषिकुमार जायें,
निज पास में बुलाया।।
--
बोलीं हे ऋषि कुमारों,
अतिशीघ्र लौट आना।
राजा से तुम यहाँ की,
सारी व्यथा बताना।।"
चतुर्थ समुल्लास में दुष्यन्त का आश्रम में आगमन
तथा शकुन्तला-दुष्यन्त के विवाह का चित्र खींचा गया है।
"राजा ने मन्त्रीवर को,
सानिध्य में बुलाया।
चलना है अभी कुटी में,
अवगत उन्हें कराया।।"
पञ्चम् समुल्लास में शकुन्तला की विरह व्यथा,
महर्षि कण्व का आगमन और साक्ष्य बनकर दोनों के विवाह का अनुमोदन करना-
“दिवस ऐसे बहुत से गुजरते,
कुछ पता न चलता लृपति का।
अब तक न कोई पाती आयी,
हाल कैसे भला है नृपति का।।"
षष्ठ समुल्लास में शकुन्तला की आश्रम से विदायी
का वर्णन है।
“बताओ बात आश्रम में,
विदायी की शकुन्तल के।
करो सब लोग तैयारी,
विदायी की शकुन्तल के।।"
सप्तम् समुल्लास में शकुन्तला का राजसभा में
जाना और साक्ष्य न प्रस्तुत करने का सशक्त भाषा में उल्लेख किया गया है।
“शिष्यों के संग शकुन्तला भी,
सिंह द्वार तक पहुँची।
उसके वहाँ पहुँच जाने की,
बात सभा तक पहुँची।।
--
आदेश हुआ दुष्यन्त राज का,
सभा मध्य तक लाओ।
निराकरण-निरण्य हो जाए,
उसको यहाँ बुलाओ।।"
अष्टम् समुल्लास में शकुन्तला द्वारा अपने बचपन
का वृत्तान्त और पुत्रोत्पत्ति का प्रसंग है।
“विश्वास कर लिया मैंने,
इसने वचन लिया है।
अपना तन-मन-जीवन भी,
मैंने स्वयं दिया है।।"
इस महाकाव्य के नवम् समुल्लास में दुष्यन्त को
मुद्रिका का मिलना और शकुन्तला को पत्नी स्वीकार करके पुरी में लाने का सार्थ
वर्णन है।
“पाया आदेश लाकर दिया मुद्रिका,
देख दुष्यन्त विस्मित आकुल हो गया।
जैसे सर्वस्व था अब तलक पाश् में,
एक क्षण में ही लगता सकल खो गया।।
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हो गयी भूल मुझसे न पहचान की,
थी शकुन्तल वही अब कहाँ खो गयी।
ये अँगूठी स्वयं मैंने दी थी उसे,
जो दिखा न सकी वो कहाँ खो गयी।।"
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महाकाव्य के अन्तिम पद्य में कवि लिखता है-
“शब्द नैवैद्य अरु भाव की आरती,
करता छन्दों को अर्पित सुपम मैं तुम्हें।
आपका सौम्य सानिध्य मिलता रहे,
कर रहा ब्रह्म फिर-फिर नमन मैं तुम्हें।।
छन्दों की दृष्टि से देखा जाये तो यद्यपि इस काव्यसंग्रह में छन्दों में शब्दों की पुनरावृत्ति हुई
है लेकिन महाकाव्य लिखना सबके बस की बात नहीं होती है। इस पिस्तक का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि यह महाकाव्य अपनी पुरातन
ऐतिहासिक धरोहर को अपने में समेटे हुए है।
शकुन्तला
महाकाव्य से पाठकों को अपने विस्मृत इतिहास को जानने का अवसर अवश्य मिलेगा ऐसी
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास भी है।
अन्त में इतना ही कहूँगा कि “शकुन्तला
महाकाव्य” एक पठनीय और संग्रहणीय काव्यसंकलन है।
मेरा विश्वास है कि “शकुन्तला
महाकाव्य” सभी
वर्गों के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम सिद्ध होगा। इसके साथ ही मुझे आशा है कि
यह काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
“शकुन्तला
महाकाव्य” जयप्रकाश चतुर्वेदी जी के पते ग्राम-चौबेपुर (जाना बाजार),
पोस्ट-खपराडीह, तहसील-बीकापुर, जिला फैजाबाद (उत्तर-प्रदेश) से प्राप्त किया जा
सकता है।
इनके सम्पर्क नम्बर – 9936955486,
9415206296 पर फोन करके आप विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943) 250129 मोबाइल-09997996437
महाकवि जयप्रकाश चतुर्वेदी द्वारा रचित शकुन्तला-महाकाव्य की समीक्षा कर अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने के सार्थक प्रयास के लिए साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसमीक्षा ने पुस्तक पढ़ने की लालसा जगादी |
जवाब देंहटाएंलेखक एवं समीक्षक दौनों को हार्दिक बधाई |
सुंदर समीक्षा।
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