आओ अभिनन्दन करें, नये साल का आज।
श्रमिक-किसान-जवान
से, जीवित देश समाज।१।
--
गुलदस्ते में सजे
हैं, सुन्दर-सुन्दर फूल।
सुमनों सा जीवन
जियें, बैर-भाव को भूल।२।
--
शस्य-श्यामला धरा
है, जीवन का आधार।
आओ पौधों से करें, धरती का शृंगार।३।
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जनमानस पर कर रहे, कोटि-कोटि अहसान।
सबका भरते पेट हैं, ये श्रमवीर
किसान।४।
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मातृभूमि के वास्ते, देते जो बलिदान।
रक्षा में संलग्न
हैं, अपने वीर जवान।५।
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मंगलवार, दिसंबर 31, 2013
"दोहे-धरती का शृंगार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लेबिल:
दोहे,
धरती का शृंगार,
नववर्ष
शनिवार, दिसंबर 14, 2013
"ब्लॉगरों के लिए उपयोगी सुझाव" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बहुत दिनों से यह तकनीकी पोस्ट लगाने की सोच रहा था। मगर समय नहीं निकाल पा रहा था। वैसे तो यह पोस्ट सभी ब्लॉगर्स की समस्याओं को ध्यान में रखकर लिख रहा हूँ। मगर विशेषतया उन साथियों के लिए है जो चर्चा मंच के चर्चाकार हैं या चर्चाकार बनने की कतार में हैं।
अपनी नयी पोस्ट लगाने के लिए सबसे पहले आपको अपना डैशबोर्ड खोलना होगा इसके लिए आप https://draft.blogger.com/....लिखकर अपने डैशबोर्ड पर आसानी से जा सकते हैं। मगर सबसे पहले आप अपनी ई मेल जरूर खोलकर रखिए।
यह तो मेरा डैशबोर्ड है लेकिन आपको भी अपने ब्लॉगों के साथ कुछ ऐसा ही दिखाई देगा। जिसमें आपके ब्लॉग होंगे।
395754 पृष्ठदृश्य - 1459 पोस्ट, Nov 25, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 1138 अनुसरणकर्ता
5966 पृष्ठदृश्य - 131 पोस्ट, Nov 25, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 86 अनुसरणकर्ता
49330 पृष्ठदृश्य - 227 पोस्ट, Nov 24, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 111 अनुसरणकर्ता
2939 पृष्ठदृश्य - 20 पोस्ट, Nov 24, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 14 अनुसरणकर्ता
9477 पृष्ठदृश्य - 421 पोस्ट, Nov 24, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 56 अनुसरणकर्ता
351076 पृष्ठदृश्य - 2078 पोस्ट, Nov 23, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 607 अनुसरणकर्ता
6923 पृष्ठदृश्य - 50 पोस्ट, Nov 23, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 34 अनुसरणकर्ता
31838 पृष्ठदृश्य - 114 पोस्ट, Nov 22, 2013 को अंतिम बार प्रकाशित - 180 अनुसरणकर्ता
इसमें ब्लॉगों के आगे नारंगी रंग में एक पेन दिखाई दे रहा है। आपको जिस ब्लॉग पर पोस्ट लिखनी है केवल उसी के सामने नारंगी रंग के पेन पर क्लिक करना है।
अब आपको इस तरह का दृश्य दिखाई देगा-
सबसे पहले आपको इस कॉलम में पोस्ट का शीर्षक लिखना चाहिए।
उसके बाद आप अपनी पोस्ट से सम्बन्धित लेबल यहाँ लिख दीजिए।
आप अपनी पोस्ट को किस तारीख को प्रकाशित करना चाहते हैं। यह यहाँ पर क्लिक करने से आयेगा।
तारीख के दाहिनी ओर समय लिखा दिखाई दे रहा है। आप समय पर क्लिक करेंगे तो आपको निम्न सारिणी दिखाई देगी।
आप अपने अनुकूल समय का चयन करके उस पर क्लिक कर दीजिए।
यदि आप इस पोस्ट को तत्काल प्रकाशित करना चाहते हैं तो स्वत: (Automatic) पर ही क्लिक कीजिए।
--
इसके बाद चर्चा के कुछ गुर की बात आपको बताता हूँ।
जब आप कोई लेख या लिंक कॉपी करके यहाँ पेस्ट करें तो मैटर को के सलेक्ट करके, सामान्य या Normal पर क्लिक करके सबसे नीचे सामान्य या Normal का विकल्प आयेगा। उस पर अवश्य क्ल्कि कर दें। इससे आपकी पोस्ट एक समान दिखाई देगी और गैप भी नहीं दिखाई देगा।
अब यदि आपकी इच्छा शब्दों को छोटा-बड़ा या सबसे छोटा या सबसे बड़ा करने की इच्छा हो तो बायीं ओर T बनी है इस पर क्लिक करके आप अपने शब्दों को मनचाहा आकार दे सकते हैं।
एक बात और भी ध्यान रखिए
निम्न टेबिल में A और कलम का निशान
आपको दिखाई दे रहा होगा।
A को क्लिक करके से आप अक्षरों का रंग
और कलम को क्लिक करके आप
अक्षरों की पृष्ठभूमि का रंग भी बदल सकते हैं।
अब बात आती है चित्र लगाने की।
यदि आपको अपने कम्प्यूटर में सेव हुए किसी चित्र को लेना है
तो नीचे दिये हुए चित्र में link के दाहिनी ओर
आसमानी रंग का एक आइकॉन है।
आप उसे क्लिक करके वांछित चित्र लगा सकते हैं।
अग किसी वेबसाइट या किसी ब्लॉग से चित्र लेना हो तो
उसे आप सीधे ही उस साइट से कापी करके
अपनी पोस्ट में लगा सकते हैं।
अरे अभी टैक्स्ट पर लिंक लगाने का बिन्दु तो छूट ही गया है।
इसके लिए आपको जिस किसी वेब साइट या पोस्ट या प्रोफाइल का
लिंक अपने लिखे हुए किसी अंश पर या चित्र पर लगाना है
तो सबसे पहले आप उस स्थान पर जाइए
जहाँ से आपको लिंक लेना है।
यह लिंक पोस्ट के सबसे ऊपर एचटीटीपी://एबीसीडी.....
होता है आप इसको कॉपी कर लीजिए।
अब आप अपनी पोस्ट के सम्पादन में आकर
उस मैटर/चित्र को सलेक्ट कर लीजिए।
जिस पर कि आपको लिंक लगाना है।
इसके बाद आप ऊपर दिये हुए चित्र में
लिंक को क्लिक कीजिए।
वहाँ आपसे लिंक माँगा जायेगा।
आपके पास जो लिंक कॉपी है वह आप
यहाँ पेस्ट करके ओके कर दीजिए।
आपके वांछित मैटर/चित्र पर लिंक आ जायेगा।
मेरे विचार से अब शायद कोई महत्वपूर्ण
बात शेष नहीं रही है।
बस इतने से ही आपका काम चल जायेगा।
ऊपर दिये हुए चित्र में सबसे दाहिनी ओर
जो डाउनऐरो दिखाई दे रहा है
उसे क्लिक करके आप अपनी पोस्ट की सामग्री को
बाईं ओर, मध्य में या दाहिनी ओर भी
स्थापित कर सकते हैं।
इसके लिए आपको पहले मैटर को सलेक्ट करना होगा।
उसके बाद आप डाउनऐरो को क्लिक करके
मनचाहा अपना विकल्प कर सकते हैं।
अब आप अपनी पोस्ट का प्रकाशित करने के लिए
Publish पर क्लिक कर दीजिए।
शुक्रवार, अगस्त 30, 2013
"पुस्तकसमीक्षा-पानी पर लकीरें" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लहरों का सरगम है
"पानी पर लकीरें"
-0-0-0-
आभासी
दुनिया में कुछ ऐसे सम्बन्ध बन जाते हैं, जिनके आभास की महक से मन गद-गद हो जाता
है। डॉ. सारिका मुकेश उनमें से एक हैं जो मुझे प्यार से चाचाजी कहती हैं। कुछ समय पूर्व इन्होंने मुझे अपने काव्यसंकलन "पानी पर लकीरें" की प्रति डाक से भेजी थी। जीवन की आपाधापी में से समय निकाल कर मेंने
"पानी पर लकीरें" के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास मैंने किया है।
रचना लिखना बहुत सरल है लेकिन उन रचनाओं का प्रकाशन कठिन और जटिल है। जिसमें धन के साथ-साथ प्रकाशित साहित्य को जन-जन तक पहुँचाना
हँसी-खेल नहीं है। डॉ. सारिका मुकेश से कभी मेरा साक्षात्कार तो नहीं हुआ लेकिन
पुस्तक के माध्यम से इतना तो आभास हो ही गया कि मन में लगन और ललक हो तो रचनाओँ
को साथ-साथ उनका प्रकाशन असम्भव नहीं है।
डॉ. सारिका मुकेश की कृति "पानी पर लकीरें" की भूमिका में सोहागपुर, जिला-होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) के डॉ. गोपाल
नारायण आवटे लिखते हैं-
“संवेदनाएँ जब उत्कर्ष होतीं हैं तब रचना बनकर प्रकट होतीं हैं।.....रचनाएँ मनुष्य को जीवित रखतीं हैं या मनुष्य रचनाओं को जीवित रखता है, यह अनसुलझा
प्रश्न हो सकता है लेकिन इस कविता संग्रह में अनसुलझे प्रश्नों को भी उठाया गया
है। सदियों से जो प्रश्न आज तक मनुष्य के सामने अनुत्तरित हैं फिर उनके उत्तर की
खोज क्यों नहीं की जा रही है? जिन प्रश्नों को खोज लिया गया उन पर भी हम अनजान
बनकर भोले बालक की तरह लड़ाइयाँ संघर्ष कर रहे हैं। इस पर भी कवयित्री ने अपनी
चिन्ता प्रकट की है।..."
"पानी पर लकीरें" काव्य संग्रह की रचनाओँ में दैनिक जीवन से जुड़ी तमाम घटनाओं का सजीव चित्रण है, जो प्रेरणा के साथ-साथ सोजने को बाध्य भी करता है।
श्रीमती सारिका मुकेश ने अपने निवेदन में भी यह स्पष्ट किया है-
“मैंने जब कभी भी कविता के बारे में एकान्त में सोचा है तो सदा ये ही महसूस
किया है कि कविता मेरे लिए इस घुटन भरे माहौल में एक ताजा और स्वच्छ साँस की तरह
है। कविता जीवन के तमाम हकीकतों से हमें रूबरू होने का मौका देती है, कविता खुद
हमसे हमारा परिचय कराती है। जीवन की आपाधापी में स्वयं का हाथ कहीं स्वयं से न
छूट जाये। इसलिए कविता लिखती रहती हूँ। मैं कवि होने का दावा तो नहीं करती पर
हाँ कविता से विश्वास के साथ कह सकती हूँ, जो काव्य सृजन में लगे हैं उनके प्रति
मेरी कृतज्ञता और सादर शुभकामनाएँ और उन सभी तमाम काव्यप्रेमियों के प्रति अहो
भाव जो कविता के प्रति प्रें रखते हैं और उन्हें पढ़ते हैं...!”
"पानी पर लकीरें" में प्रेम का स्वर मुखरित करते हुए कवयित्री कहती है-
“प्रेम शाश्वत है
भले ही हो
इसमें
बिछुड़ना...”
कवयित्री अपनी एक और रचना में लिखती है-
“तुम से
अलग रहने की
कल्पना मात्र से
हो जाती हूँ
भयभीत
यह
तन्तु हैं
निजी स्वार्थ के
या
इसी को
कहते हैं
प्रीत.”
कवयित्री के "पानी पर लकीरें" काव्यसंग्रह में कुछ कालजयी कविताओं का भी समावेश है जो किसी भी
परिवेश और काल में सटीक प्रतीत होते हैं-
“मस्जिद से आती
अजान की आवाज हो
या मन्दिर में
गूँजते
मन्त्रों के
स्वर....
पर सभी हैं
रास्ते
प्रार्थना के
जो पहुँचाते हैं
परमात्मा तक...”
कवयित्री अपनी एक
और कविता में कहती हैं-
“आओ नवयुग का करें आह्वान
मिटे द्वेष-ईष्या
हृदयों से
जन-जन का होवे
कल्याण
आओ नवयुग का करें
आह्वान...”
कवयित्री ने अपनी
व्यथा और आशंका को शब्द देते हुए लिखा है-
“ठीक से
याद नहीं
पर मैंने
पढ़ा था
कहीं पर
जो तलवार
धारण करते हैं
उतरते हैं
तलवार के घाट
हे प्रभू!
पर मेरा क्या होगा
मैंने तो
धारण की है कलम
तो फिर क्या
मैं उतरूँगी
कलम के घाट?”
रिश्तों
के प्रति अपनी अपना स्वर मुखरित करते हुए कवयित्री कहती है-
“रिश्ते हो गये
घर के उस सामान
की तरह
जिसकी हम
पहले तो कर देते
हैं छँटनी
कबाड़ी को देने
के लिए
और फिर
यह सोच कर रख
लेते हैं
वापिस घर में
कि यह कुछ तो
काम आयेगा
भविष्य में
कहीं न कहीं
कभी न कभी..!”
संकलन की अन्तिम रचना में कवयित्री लिखतीं है-
“कभी-कभी
मन भी बुनता है
मकड़ी जैसे जाले
और फिर उनमें
खुद ही फँस जाता
है...!”
समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि
इस काव्य संकलन में हमारे आस-पास जो भी घटता है उन छोटे-छोटे क्रिया-कलापों को
कवयित्री ने बहुत कुशलता से शब्दों में पिरोया है। यह कृति पठनीय ही नही अपितु
संग्रहणीय भी है और कृति में बिना लीपा-पोती किये हुए अतुकान्त काव्य का
नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के दिल पर सीधा असर करता है और सोचने को
विवश कर देता है।
"पानी पर लकीरें" काव्य संग्रह को पुण्य प्रकाशन, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। हार्डबाइंडिंग
वाली इस कृति में 109 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य मात्र 200/- रुपये है।
अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि मुझे पूरा विश्वास है कि "पानी पर लकीरें" काव्यसंग्रह प्रत्येक वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम होगा। इसके साथ ही मुझे आशा
है कि "पानी पर लकीरें" काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
"पानी पर लकीरें" को प्राप्त करने के लिए कवयित्री से चलभाष-09952199557 या
09566760691 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
शुभकामनाओं के
साथ!
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं
साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943)
250129
मोबाइल-09368499921
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लेबिल:
पानी पर लकीरें,
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कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।
मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!
"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
>> 17 January, 2013 – चेतावनी, नापतोल.कॉम चैनल से कोई सामान न खरीदें
जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
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मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।