शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

“काम की बातें” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

पण्डित किसे कहते हैं?
जो धर्मात्मा, सत्यवादी, विद्वान और सत्य और असत्य को अपने विवेक से समझकर कार्य करता है। उसको पण्डित कहते हैं!
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मूर्ख किसे कहते हैं?
जो अज्ञान, हठ, दुराग्रह और अविवेक से कार्य करता है। उसको मूर्ख कहते हैं!
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प्रसंगवश् मुझे एक संस्मरण याद आ रहा है - 
लगभग 15 वर्ष पूर्व की बात है एक भानजे ने अपने मामा पर स्थानीय न्यायालय में मानहानि का वाद दर्ज करा दिया। दो गवाह भी खोज लिए!
दो वर्षों तक केस चलता रहा!
लेकिन कुदरत की माया थी कि 6 – 6 माह के अन्तराल में उसके दोनों गवाह ऊपर वाले ने बुला लिए!
अब तो केस में कुछ रहा ही नही था!
एक दिन मैंने इस व्यक्ति से पूछा कि तुम अपना समय क्यों व्यर्थ की बातों में जाया करते हो?
उसने उत्तर दिया- “मेरा समय नष्ट होता है इसका मुझे को गम नही है। लेकिन मेरे मामा जी का समय बहुत कीमती होता है। यदि उनका समय नष्ट होता है तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है!” 

आज अक्सर यही मानसिकता हमारे समाज में तेजी के साथ विकसित हो रही है! जो चिन्ता का विषय है! --
चीनी सन्त कन्फ्यूसियस मृत्यु-शैय्या पर पड़े थे! एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया और अपना मुँह खोल कर एक-एक को दिखते और पूछते- “देखो मेरे मुँह में दाँत है!”
सभी शिष्यों ने नही में उत्तर दिया!
अब कन्फ्यूसियस ने पुनः प्रश्न किया- “मेरे मुँह में जीभ है!”
सभी शिष्यों ने उत्तर दिया- “जी हाँ!”
सन्त ने अपने शिष्यों को कहा- “प्रिय शिष्यों देखो! दाँत मुझे भगवान ने बाद में दिये थे और जीभ माँ के उदर से साथ में आई थी। आज मैं दुनिया से जा रहा हूँ। दाँत मुझे वर्षों पूर्व छोड़ गयो और और जीभ आज भी मेरे साथ है!”
जानते हो क्यों?
दाँत अपनी कठोरता के कारण समय से पूर्व ही विदा हो गये! लेकिन जीभ अपनी कोमलता के कारण आजीवन साथ रही!

तुम लोग भी कोमल व मधुर स्वभाव के बने रहना! यही मेरा अन्तिम उपदेश है!

रविवार, अप्रैल 18, 2010

“स्वर्ग क्या है?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

बहुत समय पहले की बात है। चीन के एक दार्शनिक के पास एक व्यक्ति पहुँचा और स्वर्ग के विषय में अपनी जिज्ञासा प्रकट की। साथ ही यह भी बताया कि मैं एक सेनापति हूँ और अपनी वीरता की डींगे भी मारनी शुरू कर दी।
दार्शनिक ने कहा कि शक्ल-सूरत से तो आप सेनापति नही भिखमंगे लगते हैं। नझे तो विश्वास ही नही हो रहा है कि आपको हथियार चलाना तो दूर, उसे उठने की भी क्षमता नही है।
सेनापति ने इतना सुनते ही म्यान से अपनी तलवार निकाल ली।
दार्शनिक ने कहा- “अच्छा तो आप तलवार भी रखते हैं। परन्तु यह तो मुझे लकड़ी की लगती है। यदि लोहे की होती तो आपके हात से छूट कर गिर गई होती।”
दार्शनिक की यह बात सुनते ही सेनापति की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। एक क्षण को तो ऐसे लगा कि वह दार्शनिक पर हमला कर देगा।
तभी दार्शनिक गम्भीर होकर बोले- “देख रहे हो! यही तो नर्क है। क्रोध से उन्मत्त होकर तुमने अपना विवेक खो दिया और हत्या जैसा जघन्य कृत्य करने को तैयार हो गये।”
दार्शनिक की इस बात को सुनकर सेनापति शान्त हो गया। तलवार को उसने वापिस म्यान में डाल लिया।
अब दार्शनिक ने कहा- “विवेक के कारम व्यक्ति को अपनी गलतियों का बोध होने लगता है। मन शान्त होने पर मस्तिष्क में स्थिरता आ जाती है और एक विलक्षण आनन्द की अनुभूति होने लगती है। इसी आनन्दपूर्ण स्थिति का नाम स्वर्ग है।”

मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

“ये ज़िन्दगी के मेले…..” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

ब्लॉगिंग तो छोड़नी  है लेकिन..”


 उतर भी आओ अब तो साथ लगी सीढ़ी से!


तुम्हें तो ब्लॉग की दुनिया अभी सजानी है!


जी हाँ यह शाश्वत सत्य है कि
एक दिन ब्लॉगिंग ही नही
दुनिया भी छोड़नी पड़ेगी!
लेकिन
मैं ढिंढोरा पीटकर नहीं छोड़ूँगा!
आये थे अपनी मर्जी से
बिना शोर-शराबे के
और बिना किसी को बताए हुए !
भई हम तो जब जायेंगे
बिना किसी शोर शराबे के ही चले जायेंगे!
न कोई मुहूर्त
और न कोई दिन बार!
न त्याग पत्र देंगे
और न ही किसी को कोई सूचना देंगे!
न कोई स्वागत करेगा
और न ही कोई भाव-भीनी विदाई देगा!
मैंने ब्लॉग जगत में कई बार पढ़ा है कि
अमुक ब्लॉगर ने ब्लॉगिंग छोड़ने की घोषणा कर दी है!
लेकिन एक विदेशी मूल की महिला की भाँति कोई भी अपने निर्णय पर अडिग नही रह सका!
परन्तु हम तो-
जब मन होगा आयेंगे
और जब मन होगा जायेंगे!
यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है!



ये ज़िंदगी के मेले
दुनिया में कम न होंगे,
अफ़सोस हम न होंगे...

रविवार, अप्रैल 11, 2010

“यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“ब्लॉगिंग छोड़नी ही पड़ेगी लेकिन..”

जी हाँ यह शाश्वत सत्य है कि
एक दिन ब्लॉगिंग ही नही
दुनिया भी छोड़नी पड़ेगी!
लेकिन
मैं ढिंढोरा पीटकर नहीं छोड़ूँगा!
आये थे अपनी मर्जी से
बिना शोर-शराबे के
और बिना किसी को बताए हुए !
भई हम तो जब जायेंगे
बिना किसी शोर शराबे के ही चले जायेंगे!
न कोई मुहूर्त
और न कोई दिन बार!
न त्याग पत्र देंगे
और न ही किसी को कोई सूचना देंगे!
न कोई स्वागत करेगा
और न ही कोई भाव-भीनी विदाई देगा!
मैंने ब्लॉग जगत में कई बार पढ़ा है कि
अमुक ब्लॉगर ने ब्लॉगिंग छोड़ने की घोषणा कर दी है!
लेकिन एक विदेशी मूल की महिला की भाँति कोई भी अपने निर्णय पर अडिग नही रह सका!

परन्तु हम तो-
जब मन होगा आयेंगे
और जब मन होगा जायेंगे!
यही तो ब्लॉगिंग का मज़ा है!


ये ज़िंदगी के मेले
दुनिया में कम न होंगे,
अफ़सोस हम न होंगे

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

"दुष्ट पर विश्वास मत करो!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

 एक बार जंगल में एक शेर ने हिरन का शिकार किया! शेर के पूरे परिवार ने हिरन का मांस खाया!
जब कुछ हड्डियाँ शेष रह गईं तो शेर का परिवार उन्हें छोड़कर अपनी माँद  में चला गया!
एक भेड़िया तो इस ताक  इस इन्तजार में कब से आस लगाए  बैठा  था! शेर के जाते ही उसने भी हड्डियाँ चाटनी शुरू कर दीं! छोटी मोटी हड्डियों को वो चबा भी लेता था! लेकिन एक हड्डी उसके गले में फँस गई!
भेड़िये के तो प्राण ही निकले जा रहे थे! अतः वह दर्द से छटपटाता हुआ इधर-उधर भागने लगा!
तभी उसकी नजर एक सारस पर पड़ी! उसने सारस से अपने प्राणों की भीख माँगते हुए गिड़गिड़ाकर कहा कि सारस भइया तुम अपनी लम्बी चोंच से मेरे गले में फँसी हुई हड्डी निकाल दो! मैं आपका बहुत ही उपकार मानूँगा और इसके बदले में मैं तुम्हें ईनाम भी दूँगा!
इस पर सारस को दया आ गई और उसने अपनी लम्बी चोंच भेड़िये के गले में डाल कर उसमें फँसी हड्डी को निकाल दिया! इससे भेड़िए को काफी आराम मिल गया!
अव सारस ने भेड़ि से कहा कि भइया मेरा ईनाम तो मुझे दे दो!
यह सुनते ही भेड़िए की आँखें लाल हो गई! 

वह बड़े गुस्से में सारस से बोला- "अरे मूर्ख! तुझे ईनाम चाहिए! भेड़िए के मुँह में चोंच डालकर भी तू जिन्दा है, क्या यह किसी ईनाम से कम है? जा भाग जा यहाँ से! नही तो तुझे मैं कच्चा ही चबा जाऊँगा!"
भेड़िया का रौद्र रूप देख कर सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा और उसने यहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समझी!
सारस अपने मन में सोच रहा था कि दुष्ट का कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए!

गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

“मूर्ख-दिवस पर अवकाश घोषित!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“महत्वपूर्ण घोषणा”

150320091917मैं श्री रूपचन्द्र जी,  शास्त्री जी, मयंक जी आज एक महत्वपूर्ण घोषणा कर रहा हूँ!
कृपया आज चर्चा मंच पर न जायें! क्योंकि आज यहाँ फर्स्ट-अप्रैल के उपलक्ष्य में सबसे छोटी चर्चा लगी है!
जिन्होंने मूर्ख-दिवस पर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखा है! उन्हें तो यहाँ जाकर अवश्य ही निराशा हाथ लगेगी!
अरे हाँ!
महत्वपूर्ण घोषणा तो रह ही गई!
आज मैंने इस परम-पावन पर्व पर अवकाश घोषित किया है!
अवकाश का नाम है-

“टिप्पणी अवकाश”

आज छुट्टी है जी!
मुझसे किसी भी टिप्पणी की अपेक्षा न करें!
क्योंकि मैं आज ब्लॉगिंग छोड़ रहा हूँ!