बहुत समय पहले की बात है। चीन के एक दार्शनिक के पास एक व्यक्ति पहुँचा और स्वर्ग के विषय में अपनी जिज्ञासा प्रकट की। साथ ही यह भी बताया कि मैं एक सेनापति हूँ और अपनी वीरता की डींगे भी मारनी शुरू कर दी। दार्शनिक ने कहा कि शक्ल-सूरत से तो आप सेनापति नही भिखमंगे लगते हैं। नझे तो विश्वास ही नही हो रहा है कि आपको हथियार चलाना तो दूर, उसे उठने की भी क्षमता नही है। सेनापति ने इतना सुनते ही म्यान से अपनी तलवार निकाल ली। दार्शनिक ने कहा- “अच्छा तो आप तलवार भी रखते हैं। परन्तु यह तो मुझे लकड़ी की लगती है। यदि लोहे की होती तो आपके हात से छूट कर गिर गई होती।” दार्शनिक की यह बात सुनते ही सेनापति की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। एक क्षण को तो ऐसे लगा कि वह दार्शनिक पर हमला कर देगा। तभी दार्शनिक गम्भीर होकर बोले- “देख रहे हो! यही तो नर्क है। क्रोध से उन्मत्त होकर तुमने अपना विवेक खो दिया और हत्या जैसा जघन्य कृत्य करने को तैयार हो गये।” दार्शनिक की इस बात को सुनकर सेनापति शान्त हो गया। तलवार को उसने वापिस म्यान में डाल लिया। अब दार्शनिक ने कहा- “विवेक के कारम व्यक्ति को अपनी गलतियों का बोध होने लगता है। मन शान्त होने पर मस्तिष्क में स्थिरता आ जाती है और एक विलक्षण आनन्द की अनुभूति होने लगती है। इसी आनन्दपूर्ण स्थिति का नाम स्वर्ग है।” |
सुंदर बोधकथा.
जवाब देंहटाएंप्रेरक बोधकथा।
जवाब देंहटाएंवाह्………………बहुत ही प्रेरक प्रसंग्।
जवाब देंहटाएंयह प्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संदेश दे रहा है!
बहुत सही कहा--तेरा मन दर्पन कहलाये...
जवाब देंहटाएंmarg darshan deti apki ye rachna bahut acchhi lagi aur kuchh kuchh sarita ji (apnatav) ji ki post se milti julti baat.
जवाब देंहटाएंमेरी रुचि थी ब्लॉगिंग में इसलिए आ गया था कुछ प्यार पाने के लिए आप मित्रों की संगति में! आपको अच्छा नही लग रहा है तो अपने को इस नशे से मुक्त कर लूँगा!
जवाब देंहटाएंमै चर्चा मंच और नन्हें सुमन के अतिरिक्त अपने सभी ब्लॉगों से टिप्पणी का विकल्प बन्द कर रहा हूँ!
क्योंकि नन्हें सुमन बच्चों का ब्लॉग है और बच्चों से कोई शत्रुता ऱखता नही है! चर्चा मंच अब मेरा व्यक्तिगत ब्लॉग नही है क्योकि इसमें कई लोग योगदानकर्ता है!
सोनी जी आपका बहुत-बहुत आभार!