चित्र में- (खड़े हुए) टीकाराम पाण्डेय एकाकी (चारपाई पर बैठे हुए) डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक", बाबा नागार्जुन, देवदत्त प्रसून  इस संस्मरण को लिखने का मेरा उद्देश्य है कि बाबा नागार्जुन के मन में कहीं यह जरूर छिपा हुआ था कि देश के भावी कर्णधार शिक्षित हों। भारत अन्य देशों की तुलना में शिक्षा में पिछड़ा हुआ न हो। साथ ही विद्यार्थियों को इससे प्रेरणा भी मिले कि उन्हें परीक्षा में प्रथम-श्रेणी उत्तीर्ण होना चाहिए। शायद यही प्रेरणा उस महान विभूति की थी कि मेरा बड़ा पुत्र हाई-स्कूल के बाद इण्टर में भी प्रथम श्रेणी मे ही पास हुआ। आज बाबा को साथ लेकर जाना था पीलीभीत जिले के मझोला कस्बे में। मझोला कस्बे में को-आपरेटिव शुगर फैक्ट्री में एक साहित्य विभाग भी था। यह विभाग बनवाने में पीलीभीत के महान साहित्य-सेवी स्व0 रोशन लाल शर्मा का योगदान था। इसके पीछे उनकी यह सोच थी कि इससे किसी गरीब साहित्यकार के बच्चों और उसके परिवार का पेट-पालन होगा और दूसरी बात यह थी कि फैक्ट्री की स्टेशनरी की खरीद-फरोख्त, उसकी प्रिंटिंग तथा पत्र पत्रिकाओं में फैक्ट्री के विरुद्ध या अनुकूल जो कुछ छप रहा है, उस पर दृष्टि रखना व उसका जवाब देना।
इसी शुगर फैक्ट्री में एक मदन विरक्त भी थे। उन दिनों वे इसके साहित्य विभाग में सम्पादक के पद पर नियुक्त थे। वे बाबा से बहुत लगाव रखते थे। एक दिन वे भी बाबा से मिलने के लिए आये। बाबा से बतियाते रहे और मझोला शुगर फैक्ट्री में कवि-गोष्ठी आयोजित करने के लिए बाबा से अनुमति ले ली।
रविवार के दिन मझोला शुगर फैक्ट्री के गेस्ट-हाउस में गोष्ठी निश्चित हो गयी। बाबा के सुझाव पर गोष्ठी भी ऐसी वैसी नही उच्च-कोटि की रखी गयी। बाबा ने कहा था कि गोष्ठी में क्षेत्र के उन सभी विद्यार्थियों को बुलाना है जिन्होंने 10वीं या 12वीं की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त की हो। बस अपनी मार्क-शीट की फोटो स्टेट कापी जमा करनी होगी। शुगर फैक्ट्री की ओर से इन सब विद्यार्थियों को पुरस्कार भी बाबा के ही कर-कमलों से दिलवाया गया। मेरे ज्येष्ठ-पुत्र नितिन को भी हाई-स्कूल में प्रथम श्रेणी लाने पर एक कांस्य मैडल व प्रमाण पत्र बाबा के कर कमलों से दिया गया था।
गोष्ठी में टीकाराम पाण्डेय एकाकी, देवदत्त प्रसून, वाचस्पति जी, डा0 शम्भू शरण अवस्थी, गेन्दालाल शर्मा निर्जन, डा।रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, ध्रुव सिंह धु्रव, रवीन्द्र पपीहा, रामदेव आर्य, मदन विरक्त, फैक्ट्री के तत्कालीन प्रशासक (जिलाधिकारी-पीलीभीत),विजय कुमार, खूबसिंह विकल, अम्बरीश कुमार आदि ने भाग लिया।
गोष्ठी के संयोजक मदन विरक्त ने तो -
‘‘वीरों की माता हूँ, वीरों की बहना।
पत्नी उस वीर की हूँ, शस्त्र जिसका गहना।’’
का सस्वर पाठ किया। जिसकी बाबा ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
इसके बाद बाबा ने अपनी रचना-
‘अकाल और उसके बाद’ का पाठ किया और
इसकी एक-एक लाइन की व्याख्या करके सुनाई।
कई दिनो तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास, कई दिनों तक कानी कुतिया, सोई उनके पास, कई दिनों तक लगी भीत पर, छिपकलियों की गश्त, कई दिनों तक चूहों की भी, हालत रही शिकश्त। दाने आए घर के अंदर, कई दिनों के बाद, धुआँ उठा आँगन से ऊपर, कई दिनों के बाद, चमक उठी घर भर की आँखें, कई दिनों के बाद, कौए ने खुजलाई पाँखें, कई दिनों के बाद। |
बाबा नागार्जुन से जुड़ी बातें आप भी धीरे-धीरे से मिठाई के डिब्बे की तरह खोल रहे हैं...ताकि लोग ज़्यादा चटखारे ले-ले कर आनंद उठाएं :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआनन्द आया जानकर.
जवाब देंहटाएंआप लोग मेरी वजह से ब्लागर मीट में आने का कार्यक्रम न छोड़े. वह तो अविनाश वाचस्पति साहब ने ही अपनी पोस्ट में लिखा था कि जलजला मौजूद रहेगा इसलिए मैं दिल्ली पहुंच गया था. अब लौट रहा हूं. आप सभी लोग लाल-पीली-नीली जिस तरह की टीशर्ट संदूक से मिले वह पहनकर कार्यक्रम में पहुंच सकते हैं.
जवाब देंहटाएंयह दुनिया बड़ी विचित्र है..... पहले तो कहते हैं कि सामने आओ... सामने आओ, और फिर जब कोई सामने आने के लिए तैयार हो जाता है तो कहते हैं हम नहीं आएंगे. जरा दिल से सोचिएगा कि मैंने अब तक किसी को क्या नुकसान पहुंचाया है. किसकी भैंस खोल दी है। आप लोग न अच्छा मजाक सह सकते हैं और न ही आप लोगों को सच अच्छा लगता है.जलजला ने अपनी किसी भी टिप्पणी में किसी की अवमानना करने का प्रयास कभी नहीं किया. मैं तो आप सब लोगों को जानता हूं लेकिन मुझे जाने बगैर आप लोगों ने मुझे फिरकापरस्त, पिलपिला, पानी का जला, बुलबुला और भी न जाने कितनी विचित्र किस्म की गालियां दी है. क्या मेरा अपराध सिर्फ यही है कि मैंने ज्ञानचंद विवाद से आप लोगों का ध्यान हटाने का प्रयास किया। क्या मेरा अपराध यही है कि मैंने सम्मान देने की बात कही. क्या मेरा यह प्रयास लोगों के दिलों में नफरत का बीज बोने का प्रयास है. क्या इतने कमजोर है आप लोग कि आप लोगों का मन भारी हो जाएगा. जलजला भी इसी देश का नागरिक है और बीमार तो कतई नहीं है कि उसे रांची भेजने की जरूरत पड़े. आप लोगों की एक बार फिर से शुभकामनाएं. मेरा यकीन मानिए मैं सम्मेलन को हर हाल में सफल होते हुए ही देखना चाहता हूं. आप सब यदि मुझे सम्मेलन में सबसे अंत में श्रद्धाजंलि देते हुए याद करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा. मैं लाल टीशर्ट पहनकर आया था और अपनी काली कार से वापस जा रहा हूं. मेरा लैपटाप मेरा साथ दे रहा है.
बढ़िया पोस्ट! बहुत अच्छा लगा जानकर बाबा नागार्जुन से जुडी बातें !
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