मंगलवार, मई 25, 2010

"तुम तो अखबार पढ़ना भी नही जानते" - बाबा नागार्जुन! (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)

“बाबा नागार्जुन की संस्मरण शृंखला-8”

मेरी 6 जुलाई 1989 की सुबह, बाबा नागार्जुन की से डाँट से शरू हुई। प्रातःकाल अखबार बाँटने वाला नित्य की तरह अखबार डाल कर गया। मैं अखबार पढ़ने लगा।

बाबा भी पास ही बैठे थे। मैंने पाँच मिनट में सुर्खियाँ देख कर अखबार रख दिया ।

बाबा बोले- ‘‘शास्त्री जी! आपने अखबार पढ़ लिया।’’

मैंने कहा- ‘‘जी बाबा !

‘‘बाबा ने कहा- ‘‘आपको अखबार भी ढंग से पढ़ना नही आता।‘‘

मैंने उत्तर दिया- ‘‘बाबा आप ये क्या कह रहे हैं? अखबार कैसे पढ़ूँ ? आप ही बता दीजिए।’’

बाबा बोले - ‘‘देखो सबसे पहले समाचार पत्र में जो चित्र छपे होते हैं। उनको देखना जरूरी होता है। उसके बाद ही सुर्खियाँ पढ़ी जाती हैं। आपने तो सरसरी नजर से सिर्फ हेड-लाइन्स पढ़ जी और अखबार का काम तमाम कर दिया।’’

बाबा ने कहा- ‘‘मुझे भी इस अखबार की कुछ खबरें सुनाओ।’’

मैंने उन्हें समाचार पत्र पढ़कर सुनाना शुरू कर दिया। बाबा की नजर उम्र के इस पड़ाव में जवाब दे चुकीं थी। इसलिए वे मैग्नेफाइंग-ग्लास से ही थोड़ा-बहुत लिख पढ लेते थे।

बाबा ने अपने हाथ में मैग्नेफाइंग-ग्लास पकड़ा हुआ था।

सबसे पहले उन्होंने अखबार में छपे चित्रों को देखा और उसके नीचे लिखा विवरण मुझसे सुना।

अब बाबा को पूरा अखबार सुनाना था। मैंने अखबार सुनाना शुरू किया। सबसे पहले हत्या और लूट-पाट की एक बड़ी खबर लगी थी।

बाबा ने अनमने ढंग उसे सुना। इसके बाद स्थानीय खबरें थीं। बाबा ने उन्हे भी सुनना पसन्द नही किया। अब गैंग-रेप की एक घटना थी।

बाबा ने कहा- आगे बढ़ो।

बाबा नागार्जुन ने कौन सी खबरें पसन्द कीं थी । यही मैं बताने जा रहा हूँ।

अखबार के बीच में एक पन्ना होता है, जिसमें सम्पादकीय होता हैं।

पहले तो बाबा ने उसे सुना। उसके बाद इस पन्ने पर राजनीतिज्ञों और वरिष्ठ पत्रकारों ने जो कुछ लिखा था। वो सब बाबा ने सुना। जिसे कि कुछ ही लोग पढ़ते हैं।

बाबा ने मुझे समझाया- ‘‘शास्त्री जी अखबार पढ़ने का यही सही तरीका है। जब एक रुपया खर्च कर रहे हो तो ढाई आने की बात क्यों पढते हो? पूरे रुपये का मजा लो। एक बात ध्यान में सदैव रखना कि अखबार मनोरंजन का ही साधन नही है। यह ज्ञानवर्धन का साधन भी है।’’

5 टिप्‍पणियां:

  1. बाबा की बात बिल्कुल सही है, हम भी अखबार का संपादकीय जरुर पढ़ते हैं, भले ही पूरा अखबार छूट जाये।

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  2. बाबा की बात बिल्‍कुल सौ फीसदी सही है, सम्‍पादकीय पढ़े बिना अखबार पढ़ना अधूरा है ।

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  3. ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी-

    सर
    बाबा नागार्जुन के साथ आपके संस्मरण को पढ़ कर बहुत कुछ सीखने को मिला .
    इस संस्मरण को हमलोग अपने वेब साईट मीडिया मंच पर प्रकाशित करना चाहते हैं
    आपकी की अनुमति की प्रतीक्षा है .
    आभार

    latikesh sharma
    editor
    www.mediamanch.com
    mumbai .
    email - latikeshsharma@gmail.com
    mediamunch@gmail.com
    latikesh@mediamanch.com
    mobile - 09029092571/72

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