गुरुवार, दिसंबर 31, 2009

“तुम्हारी बहुत याद तड़पायेगी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर साहित्य शारदा मंच, खटीमा के तत्वावधान में एक कवि गोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खटीमा के सभागार में सम्पन्न हुआ।
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कवि गोष्ठी का शुभारम्भ विधिवत् दीप प्रज्वलन के बाद पीली भीत से पधारे कवि देवदत्त प्रसून ने सरस्वती वन्दना से किया।
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राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने अपनी निम्न रचना का वाचन किया-
“हर बार कैलेण्डर का आखिरी पन्ना हो जाता है,
सचमुच आखिरी…..”
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अन्तर-जाल पर प्रकाशित बाल पत्रिका “सरस पायस” के सम्पादक रावेन्द्रकुमार रवि ने जाते हुए वर्ष को बहुत ही गरिमामय और भाव-भीनी विदाई देते हुए अपनी इस कविता का पाठ किया-
“जाओ बीते वर्ष,तुम्‍हारी बहुत याद तड़पाएगी!”
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कवि गोष्ठी के संयोजक और उच्चारण के सम्पादक
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” ने नये वर्ष का स्वागत कुछ नये अन्दाज मे इस गीत के साथ किया- “पड़ने वाले नये साल के हैं कदम!
स्वागतम्! स्वागतम्!! स्वागतम्!!!”
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रूमानी शायर गुरू सहाय भटनागर”बदनाम” ने अपने परिचय के साथ नये साल का स्वागत करते हुए कहा-
“हर किसी से हँसके है मिलती गले,
इसलिए बदनाम मेरी जिन्दगी।”
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गोष्ठी में कैलाश पाण्डेय, डॉ. गंगाधर राय, आर.पी. भटनागर, सतपाल बत्रा, राजकिशोर सक्सेना राज आदि कव्यों ने भी काव्य पाठ किया।
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इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक परिषद् खटीमा के श्री गेंदा लाल, बी.ड़ी.वैश्य, महेशकुमार, नारायण सिंह ऐर, डी.सी.तिवारी आदि भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
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गोष्ठी का संचालन देवदत्त प्रसून और अध्यक्षता राज किशोर सक्सेना राज ने की!
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शुक्रवार, दिसंबर 25, 2009

"संस्कृति एवं सभ्यता----2" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"संस्कृति एवं सभ्यता" गतांक से आगे....
5- दान प्रत्येक मानव का अनिवार्य कर्तव्य है तो लोग भीख, जुआँ, चोरी आदि क्यों करते हैं?..........
मनुष्य प्रजापति के पास गये और उनसे प्रार्थना की-
"महाराज! हमें उपदेश कीजिए।"
प्रजापति ने कहा-
"दान दिया करो, यही संस्कृति है।"
धन की तीन गति हैं-"दान, भोग और नाश।"
जो लोग न दान करते हैं, न भोग करते हैं। उनके धन का नाश हो जाता है। ऐसे धन को या तो चोर चुरा लेते हैं, या अग्नि में दहन हो जाता है , या राजदण्ड में चला जाता है।
दान देते रहना चाहिए, दान देने से धन घटता नही है। जैसे कुएँ का पानी बराबर निकालते रहने से कम नही होता है। यदि उसमें से पानी निकालना बन्द कर दिया जाय तो पानी सड़ जाता है।
जिस घर में वायु आने का एक ही द्वार है, निकलने का नही है तो उस घर में वायु नही आती है।
"यावद् भ्रियेतजठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।
यो अधिकमभि मन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।"
जितने से जिसका पेट भर जाये उतना ही उसका स्वत्व है। जो अधिक माँगता है वह स्तेन है, अर्थात दण्ड के योग्य है। अतः मनुष्य को दान करते रहना चाहिए।
िहृया देयम्- लज्जा से देना चाहिए, भिया देयम्-भय से देना चाहिए, संविदा देयम्- ज्ञानपूर्वक देना चाहिए। देयम्- यही हमारा प्रथम कर्तव्य है।
कुछ लोग दान लेना नही चाहते, अपितु वे उधर लेना चाहते हैं। अर्थात् जितना लेंगे, समर्थ होने पर उतना ही वापिस कर देंगे। यह कुसीद है। इस पर बढ़ाकर लेना ब्याज है, छल-कपट है-सूद है। इससे समाज नही बल्कि समज (दस्यु) बन रहा है। इसी का परिणाम है कि एक ओर असंख्य पूंजीपतियों को जन्म हो रहा है और दूसरी ओर वित्तविहीन भोजन तक के लिए तरस रहा है। यह व्यापार में लाभ के स्थान पर फायदा (प्रॉफिट) लेने के कारण हो रहा है।
लाभ लीजिए परन्तु शोषण मत कीजिए।
अब विचारिए-
क्रमशः..............
(साभार "संस्कृति एवं सभ्यता")

सोमवार, दिसंबर 21, 2009

"तिजोरी आपकी है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

कोठी-कुठले सभी तुम्हारे,
चाबी को मत हाथ लगाना।
सुख हैं सारे साथ हमारे,
तुम दुख में मुस्काते रहना।।
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इशारों-इशारों में हम कह रहे हैं,
अगर हो सके तो इशारे समझना।

मेरे भाव अल्फाज बन बह रहे हैं,
नजाकत समझना नजारे समझना।
अगर हो सके तो इशारे समझना।।
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हमारी वेदना यह है कि हमने एक घर में साझा कर लिया। बहुत से सुनहरी स्वप्न सजाए। घर को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। लेकिन आज भी हम अपने साझीदार के लिए सिर्फ और सिर्फ कमाने की मशीन हैं। यानि सबसे ज्याद मेंहनत हमने ही की। जिस तिजोरी को हम परिश्रम करके आज तक भर रहे हैं, अफसोच् कि उसकी चाभी आज भी हमारे पास नही है।

इसीलिए तो हमने अपना नया घर बना लिया है।

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संयुक्त परिवारों की यही तो वेदना है कि घर का स्वामी अन्य सद्स्यों को केवल कमाने की मशीन समझता है।

शायद इसीलिए नये घर बन जाते हैं। पुराने घर से मोह तो रहता है लेकिन अपने पराये की भावना तो आ ही जाती है।

यदि घरों को टूटने से बचाना है तो गृह स्वामियों को घर के सभी सदस्यों को कर्तव्य के साथ अधिकार भी देने होंगे।

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गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं।

मीत पुराने, नये-जमाने अच्छे लगते हैं।

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बुधवार, दिसंबर 16, 2009

"संस्कृति एवं सभ्यता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

 "संस्कृति एवं सभ्यता" (स्वामी इन्द्रदेव यति)
किम् संस्कतिः?
(संस्कृति क्या है?)
या सम्यक् क्रियते सा संस्कृतिः।
(जो सम्यक् (भद्र) किया जाता है, वह संस्कृति है।)
अब प्रश्न उठता है कि - सम्यक् क्या है?
किसी कार्य को करने से पहले यदि उत्साह, निर्भीकता और शंका न उत्पन्न हो तो उसे सम्यक् कहा जायेगा और शंका,भय और लज्जा उत्पन्न हो तो वह सम्यक् अर्थात् भद्र नही कहा जा सकता।
ओम् अच्छिन्नस्यते देव सों सुवीर्यस्य
रायस्पोषस्य दद्तारः स्याम।
सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्वारा
स प्रथमो वरुणो मित्रो अग्निः।। (यजुर्वेद 7 । 14)
(अर्थ- हे सोमदेव, शान्ति प्रदाता, दिव्यगुण युक्त परमेश्वर! आपसे प्राप्त अच्छिन्न और सुवीर्ययुक्त पोषण करने वाले धन को देने वाले होवें, वह प्रथमा संस्कृति है, जिसको संसार ने स्वीकार किया था। प्रथम मित्र (अवगुणों को दूर करने वाला) और वरुण (सद् गुणों को देने वाला) वह अग्नि है जो सदा आगे ले जाने वाला (अग्रेनयति) और ऊपर ले जाने वाला (ऊर्ध्व गमयति) है।)
यजुर्वेद के उपरोक्त मन्त्र मे कहा गया है कि-
संस्कृति एक है क्योंकि  इस मन्त्र मे संस्कृति का एक वचन मे प्रयोग किया गया है।
संस्कृति के साथ किसी विशेषण का प्रयोग नही  हुआ है अर्थात् संस्कृति का कोई विशेषण नही होता है।
अच्छिन्न है अर्थात् संस्कृति में कोई छेद नही होता है। छिद्ररहित होने के कारण यह प्रणिमात्र के छिद्रों को दूर करती है।
वीर्य से परिपूर्ण है अर्थात् संस्कृति प्राणिमात्र को पुष्ट करती है और
संस्कृति का प्रमुख लक्षण है कि यह देने वाली है।
अब आप मनन और विचार कीजिए कि-
1- संस्कृति एक है तो संसार में अनेक संस्कृतियों की चर्चा क्यों की जाती है?
2- संस्कृति का कोई विशेषण नही है अर्थात् संस्कृति किसी नाम से नही पुकारी जाती है तो देश भेद से भारतीय संस्कृति, योरोपीय संस्कृति, अमेरिकन...,चीनी.....और मत मतान्तर भेद से हिन्दु संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति, ईसाई संस्कृति आदि पुकारने का क्या औचित्य है?
3- संस्कृति में छिद्र नहीं है तो  - प्रत्येक मत-मतान्तर तथाकथित अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ क्यों मानते हैं?
4- संस्कृति सबका पोषण करने वाली है तो प्रत्येक पदार्थ में मिलावट करके प्राणियों को नष्ट करने का उपक्रम तथाकथित संस्कृति वाले क्यों कर रहे हैं?
5- दान प्रत्येक मानव का अनिवार्य कर्तव्य है तो लोग भीख, जुआँ, चोरी आदि क्यों करते हैं?...........
क्रमशः..............
(साभार "संस्कृति एवं सभ्यता")





बुधवार, दिसंबर 09, 2009

"H.C.L. का लैपटॉप तो भूलकर भी न लें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सावधान!               सावधान!!                    सावधान!!!
धोखेबाज कम्पनी है एच.सी.एल. इन्फोसिस्टम्स लि.
H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD.
का लैपटॉप तो भूल कर भी न लें!
आपकी जानकारी के लिए निवेदन है कि-
"मैंने 2 अगस्त 2008 को H.C.L का  G.L.-9200 मॉडल का लैपटॉप H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD. रुद्रपुर में सीधे ही कम्पनी से ड्राफ्ट लगा कर खरीदा था। एक महीने के भीतर ही इसकी हार्ड-डिस्क खराब हो गई। लगभग एक महीने में कम्पनी द्वारा यह बदली गई।
इसके बाद इसका ऑन/ऑफ स्विच खराब हो गया। अपने कार से आने-जाने के खर्चे पर कम्पनी से वह बदलवाकर लाया गया। कम्पनी ने यह स्विच पुराना घिसा-पिटा लगा दिया, जो आज भी काम छोड़ जाता है।
इसके बाद इसका कैमरा शो होना बन्द हो गया।
अब वारण्टी में 2 माह शेष रहे थे। अतः कम्पनी द्वारा टाल-मटोल शुरू हो गई।
यहाँ तक के सफर मे इसका बैटरी बैक-अप 3 घण्टे से घटकर अब मात्र 40 मिनट रह गया है।
मैं आज तक इस लैपटॉप की समस्याओं से जूझ रहा हूँ।
कुल मिलाकर  H.C.L का लैपटॉप गुणवत्ता में जीरो ही साबित हुआ है।
सभी ब्लॉगर मित्रों को सावधान कर रहा हूँ कि 
भूलकर भी H.C.L. INFOSYSTEMS.LTD का कोई उत्पाद न खरीदें।

गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

"कहाँ सोया है उत्तराखण्ड का वन विभाग? " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! बाघ (शेर) ने एक बालिका को फिर निवाला बनाया...!!

कहाँ सोया है उत्तराखण्ड का वन विभाग?

क्षेत्र के लोग कब तक शेर के मुँह का ग्रास बनते रहेंगे?