मंगलवार, सितंबर 22, 2009

‘‘बुढ़ऊ सुधर गये हो क्या?" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



यह कथा सच्ची नही अपितु एक बुढ़ऊ की तो हो ही सकती है। जिनकी उम्र 50 के लपेटे में होगी।
कविता क्या होती है?

इससे उनका कोई भी लेना-देना नही था। मगर कविताएँ ठेलने का उन्हें बड़ा शौक चर्राया हुआ था।
इस आयु में भी वह आशिक-माशूक की पराकाष्टा की सीमा को लाँघते हुए रात-दिन लेखन में मशगूल रहते थे।
बड़े-बड़े दिग्गज भी उपहास की दृष्टि से मजा लेने के लिए उनको टिपियाते रहते थे।
ये ज़नाब भी रसिया थे और कभी भी गम्भीरता से अपने सत्-साहित्य पर मनन नही करते थे।

एक दिन किसी हास्य रस के एक सशक्त हस्ताक्षर ने अपनी टिप्पणी में इन्हें एक मीठी-फटकार और नेक सलाह भी दे थी। मगर ये उनका आशय नही समझे और अपना रसिया-राग नही छोड़ा।
अन्ततः एक सुधि पाठक ने ये टिप्पणी देकर
BAHUT KOOB ..... JI.
AAPKI HALAT TO US DOGGI JAISI HAI JISE KHUJALI VALI KUTIYA BHI PARI NAZAR AATI HAI.
KYA TUM APANI BIBI SE SANTUST NAHI HO.
इन्हें इस ब्रह्मास्त्र से परास्त कर ही दिया। आज भी यह टिप्पणी इनकी किसी पोस्ट पर अभी भी चमक रही होगी।
लेकिन, इसके बाद महोदय ने टिप्पणियों पर माडरेशन लागू कर दिया। शायद ये कुछ तो सुधर ही गये होंगे।

बहुत बधाई जी!

16 टिप्‍पणियां:

  1. bahot badiya bataya aapne shastriji
    tipni karne vale mhapurush bhi dhanya hai jinhone inhe rasta dikhaya
    baut achha laga apke blog pe aake baut badhiya hai ab aata hi rhunga.

    जवाब देंहटाएं
  2. dhnya ho shaastri ji.............

    bahut meethee maar maarte ho.........

    aapki kaarigari nko pranam !

    badhaai !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! अच्छी जानकारी भी मिली!

    जवाब देंहटाएं
  4. टिप्पणीकार ने ठीक किया ज़रा शब्दों के चयन में संयम की ज़रुरत थी.
    रोचक. शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ये तो जोर का झटका धीरे से हुया। धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत से लोग है जो ऐसे ही कविता ठेलते रहते है..उन्हे बढ़िया टिप्पणी भी मिलती है मगर कहाँ सुधारने वाले हैं..आदत से मजबूर है ऐसे भाई लोग...बढ़िया टाइम पास है..

    बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूब शास्त्री जी, मगर आपकी बहुमुखी प्रतिभा के तरकस से निकला तीर गया किधर, मैं ये नहीं समझ पाया ! अगर बात आप जैसे बुजुर्ग साहित्यकार ने लिखी है तो अवस्य ही कही कोई गूढ़ छिपा होगा !

    जवाब देंहटाएं
  8. ऐसे ही एक बुजुर्ग की कविता हम भी रोज ही पढते हैं। कविता कितनी भी अच्‍छी हो लेकिन आवश्‍यकता से अधिक ता अरुचिकर हो ही जाती है। टिप्‍पणीकारों से ही यह ब्‍लाग की दुनिया चल रही है।

    जवाब देंहटाएं
  9. sahi kah rahe hain shastri ji.........apni maryadaon ka dhyan to sabhi ko rakhna chahiye .......agar kuch anuchit hai to uske liye sachet kiya jana bhi jaroori hai.aapke lekhan ko naman.

    जवाब देंहटाएं
  10. ha ha ha ha ha ha ha ha ha.......

    waqt ke saath zindagi mein limitations ka hona bhi zaruri hai....

    जवाब देंहटाएं
  11. ise kahte hai miyan ki jooti miyan ke sar .
    kaoun kahta hai buddhe ishq nhi karte !
    bas frk itnaaaaaaaaaaa hai ki log un par shaq nhi karte !
    waah !!

    जवाब देंहटाएं
  12. Achha laga ki, aap jaisa koyi diggaj blogger saath khada ho gaya...har taraf achhayi burai, hathon me haath dale chalti hain..saath, saath...dard tab hota hai,jab waar peechhese hota hai..
    Aapka rahmo karam bana rahe, yahee dua karti hun..

    जवाब देंहटाएं
  13. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना. बिलकुल सही पर टिप्पणियों में संयम बहुत ज़रूरी है, शायद टिप्पणियों में ही नहीं बल्कि ज़िन्दगी में भी, वर्ना कब शेर को सवा शेर, स्मार्ट को सुपर स्मार्ट, रावण को राम, विद्यार्थी को शास्त्री मिल जाये, कोई नहीं जनता, फिर मत कहना "भई गति सांप छछूंदर केरी............... "

    रोचक और शिक्षाप्रद पोस्ट पर आपका हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।