लघु-कथा गर्मियों के दिन थे। अतः सुबह के दस बजे भी काफी गरमी थी। एक बहेलिये ने 25-30 तोतों को एक बड़े से जालीदार पिंजड़े में कैद कर रखा था। गरमी और प्यास के कारण कुछ तोतों के मुँह खुले हुए थे, कुछ तोते हाँफ रहे थे और कुछ तोते अनमने से पड़े थे। बहेलिया आवाज लगा-लगा रहा था- ‘‘तोते ले लो........तोतेएएएएएएएएएए!’’ सामने एक सर्राफ की दूकान थी। दूकान पर बैठे लाला जी ने जब बहेलिए को देखा तो उसे इशारे से अपने पास बुलाया।उन्होंने बहेलिए से पूछा कि सारे तोतों के दाम बताओ।बहेलिए ने सारे तोतों के दाम पाँच सौ रुपये बताए। मोल-भाव करके लाला जी ने चार सौ रुपये में सारे तोते खरीद लिए। अब बहेलिए ने कहा कि लाला जी पिंजड़े मँगाइए। लाला जी ने जब यह सुना तो बहेलिए के हाथ में चार सौ रुपये देकर पिंजड़े का दरवाजा खोल दिया। एक-एक करके तोते आसमान में उड़ने लगे। जब तक उनका एक-एक साथी आजाद नही हो गया वो सभी वहीं आसमान में चक्कर लगाते रहे। सब तोते रिहा होते ही झुण्ड के रूप में एक तालाब पर गये। जी भरकर उन्होंने पानी पिया। अब तोते बहुत खुश थे। वे सबके-सब तालाब के किनारे पेड़ पर बैठ कर कलरव कर रहे थे। उनके हाव-भाव देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई देश आजाद हुआ हो और उसके बाशिन्दे मिल कर आजादी का जश्न मना रहे हों। |
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बहुत सुन्दर लघुकथा है बधाइ
जवाब देंहटाएंgulami to kisi ko bhi mili ho buri hi hoti hai aur azadi ka jashn sab ek hi tarah se manate hain phir chahe insaan hon ya panchi .sundar aur prernadayi kahani hai.
जवाब देंहटाएंयह कथा इस विचार को भी जन्म देती है कि लालाजी ने जो किया वह इस समस्या का स्थाई हल नहीं है।
जवाब देंहटाएंसरकार व समाज को चाहिए कि बहेलियों की रोजी-रोटी का प्रबंध करे ताकि वह पुनः तोतों को पकड़कर बेचने का प्रयास न करे।
सुन्दर लघुकथा! सचमुच उनका देश ही आजाद हुआ था. मगर जब तक उन्हें गुलाम बनाने वाला बहेलिया छुट्टा घूम रहा है उनकी आज़ादी खतरे में ही है.
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