मैं आज किसी मीटिंग में गया था। उसमें मेरे एक मित्र जमील साहब भी पधारे थे। वे नीम बहरे थे। सुनने की मशीन वो लगाना पसन्द नही करते थे। मगर 80 साल की उम्र में भी जिन्दादिल थे। उनसे बातें होने लगीं। उनके ऊँचा सुनने के कारण मुझे ऊँचे स्वर में उनसे बात करनी पड़ती थी। लेकिन कभी-कभी तो वो धीमें से भी कही बात को सुन लेते थे और कभी-कभी जोर से बोलने पर भी ऐं.......आऐं.......ही करने लगते थे। मैंने उनसे कहा कि जमील साहब! एक बात बताइए- ‘‘अगर कोई आपको धीरे से गाली दे दे तो आपको तो पता ही नही लगेगा।’’ वो तपाक से बोले- ‘‘मियाँ जिनके कान नही होते वो चेहरा पढ़ना जानते हैं।’’ तब मैंने उनसे कहा- ‘‘जमील साहब! अगर कोई आपको हँस कर गाली दे दे तो आपको तो पता ही नही लगेगा।’’ उन्होंने कहा- "जिसके पास जो कुछ होगा वही तो देगा।" अन्त में जमील साहब हँसकर बोले- ‘‘शास्त्री जी! हँस कर कोई गाली ही नही जहर भी दे तो वो भी मुझे कुबूल है।’’ |
---|
kya baat kahi hai aur sach kahi hai.
जवाब देंहटाएंसुंदर बात।
जवाब देंहटाएंwaah bahut shia baat,haske jahar bhi de tho kabul hai waah
जवाब देंहटाएं"जिसके पास जो कुछ होगा वही तो देगा।"
जवाब देंहटाएंक्या अन्दाज है जमील साहब का.
बहुत सुन्दर प्रसंग
वाह बहुत सुंदर बार कही जमील साहब ने, जिस के पास जो होगा....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
वाह क्या बात हैं...हाजिरजबाबी और जिन्दादिली की ....साधू!!!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है! बहुत ही सुंदर और सही बात कहा है आपने! बढ़िया प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंहंसने वालों से डर लग रहा है अब ..कौन जहर का प्याला लिए खडा हो ..!!
जवाब देंहटाएंयह हुई न बात.. हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंBahut khobb kahaa hai.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जमील साहब विलक्षण सोच के धनी है...उनको दिल से सलाम...
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह क्या बात कही है |
जवाब देंहटाएंbahut hi bhaavpoorna sansmaran......... aur bilkul sahi baat kahi hai........
जवाब देंहटाएं