हमारी रिश्तेदारी में एक सज्जन हैं ‘‘श्री रामचन्द्र आर्य’’ वो रिश्ते में हमारे मामाश्री लगते हैं। उनकी उम्र इस समय 80 वर्ष के लगभग है। प्रारम्भ से ही उनका क्रोधी स्वभाव रहा है। आज से 28 वर्ष पूर्व उनकी श्रीमती अर्थात हमारी मामी जी का देहान्त हो गया था। तब से तो वो बिल्कुल उन्मुक्त ही हो गये थे। क्योंकि सद्-बुद्धि देने वाला कोई घर में रहा ही नही। परिवार में 6 पुत्रियाँ तथा सबसे छोटा एक पुत्र है। सभी विवाहित हैं। मनमानी करने की तो शुरू से ही इनकी आदत रही है। अतः मामी जी की मृत्यु के उपरान्त इन्होंने पीले वस्त्र धारण कर लिए। दाढ़ी व केश भी बढ़ा लिए। मुकदमा लड़ना अपना पेशा बना लिया। इसके लिए इन्होंने अपने सगे पुत्र को भी नही बख्शा। छहों पुत्रियों में गुट-बन्दी करा दी। क्योंकि उस समय इनके शरीर में बल था। अब एक वर्ष से ये बीमार रहने लगे हैं। अतः ऐंठ कुछ कम हो गयी है। ![]() मृत्यु का भय भी सता रहा है तो दाढ़ी व केश कटा लिए हैं। पुत्र एवं पुत्र-वधु भी खूब सेवा कर रहे हैं। यह संस्मरण लिखने का कारण यह है कि यदि विनम्रता और सहनशीलता हो गैर भी अपने बन जाते हैं। काश् इन्होंने बलशाली होते हुए इस गुण को अपनाया होता। |
---|
विनम्रता और सहनशीलता जीवन को सुखद रखने का सूत्र है.
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha...........jo kaam vinamrta se ho sakta ho wahan bakr ki dhauns nhi dikhani chahiye.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपका शुक्रिया की आप मेरे ब्लॉग पे आयें और मेरा होशला बढाया...सच में विनम्रता से मनुष्य कुछ भी हासिल कर सकता है...और हाँ आपके सारे पोस्ट कुछ न कुछ सन्देश दे जाते हैं ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है |
जवाब देंहटाएंचलिए देर से ही सही थोडी विनम्रता तो आई !
पर दुर्भाग्य तो यही है कि लोगों को अंत समय में ही अक्ल आती है।
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-S, T }