गुरुवार, अगस्त 20, 2009

"हिन्दी-व्याकरण" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’


बहुत समय से हिन्दी व्याकरण पर कुछ लिखने का मन बना रहा था। परन्तु सोच रहा था कि लेख प्रारम्भ कहाँ से करूँ।

आज इस लेख की शुभारम्भ हिन्दी वर्ण-माला से ही करता हूँ।

मुझे खटीमा (उत्तराखण्ड) में छोटे बच्चों का विद्यालय चलाते हुए 25 वर्षों से अधिक का समय हो गया है।

शिशु कक्षा से ही हिन्दी वर्णमाला पढ़ाई जाती है।

हिन्दी स्वर हैं-

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ए ऐ ओ औ अं अः।

यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक ही लगता है।

लेकिन जब व्यञ्जन की बात आती है तो इसमें मुझे कुछ कमियाँ दिखाई देती हैं।

शुरू-शुरू में-

क ख ग घ ड.।

च छ ज झ ञ।

ट ठ ड ढ ण।

त थ द ध न।

प फ ब भ म।

य र ल व।

श ष स ह।

क्ष त्र ज्ञ।

पढ़ाया जाता है। जो आज भी सभी विद्यालयों में पढ़ाया जाता है।

उन दिनों एक दिन कक्षा-प्रथम के एक बालक ने मुझसे एक प्रश्न किया कि ड और ढ तो ठीक है परन्तु गुरू जी!

यह और

कहाँ से आ गया? कल तक तो पढ़ाया नही गया था।

प्रश्न विचारणीय था।

अतः अब 20 वर्षों से-

ट ठ ड ड़ ढ ढ़ ण।

मैं अपने विद्यालय में पढ़वा रहा हूँ।

आज तक हिन्दी के किसी विद्वान ने इसमें सुधार करने का प्रयास नही किया।

आजकल एक नई परिपाटी एन0सी0ई0आर0टी0 ने निकाली है। इसके पुस्तक रचयिताओं ने आधा अक्षर हटा कर केवल बिन्दी से ही काम चलाना शुरू कर दिया है। यानि व्याकरण का सत्यानाश कर दिया है।

हिन्दी व्यंजनों में-

कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अन्तस्थ और ऊष्म का तो ज्ञान ही नही कराया जाता है। फिर आधे अक्षर का प्रयोग करना कहाँ से आयेगा?

हम तो बताते-बताते, लिखते-लिखते थक गये हैं परन्तु कहीं कोई सुनवाई नही है।

इसीलिए हिन्दुस्तानियों की हिन्दी सबसे खराब है।

बिन्दु की जगह यदि आधा अक्षर प्रयोग में लाया जाये तभी तो नियमों का भी ज्ञान होगा। अन्यथा आधे अक्षर का प्रयोग करना तो आयेगा ही नही।

सत्य पूछा जाये तो अधिकांश हिन्दी की मास्टर डिग्री लिए हुए लोग भी आधे अक्षर के प्रयोग को नही जानते हैं।

नियम बड़ा सीधा और सरल सा है-

किसी भी परिवार में अपने कुल के बालक को ही चड्ढी लिया जाता है यानि पीठ पर बैठाया जाता है। अतः यदि आधे अक्षर को प्रयोग में लाना है तो जिस कुल या वर्ग का अक्षर बिन्दी के अन्त में आता है उसी कुल या वर्ग व्यंजन का अन्त का यानि पंचमाक्षर आधे अक्षर के रूप में प्रयोग करना चाहिए।

उदाहरण के लिए -

झण्डा लिखते हैं तो इसमें का आधा अक्षर की पीठ पर बैठा है। अर्थात टवर्ग का ही अक्षर है। इसलिए आधे अक्षर के रूप में इसी वर्ग का का आधा अक्षर प्रयोग में लाना सही होगा। परन्तु आजकल तो बिन्दी से ही झंडा लिखकर काम चला लेते है। फिर व्याकरण का ज्ञान कैसे होगा?

इसी तरह मन्द लिखना है तो इसे अगर मंद लिखेंगे तो यह तो व्याकरण की दृष्टि से गलत हो जायेगा।

अब बात आती है संयुक्ताक्षर की-

जैसा कि नाम से ही ज्ञात हो रहा है कि ये अक्षर तो दो वर्णो को मिला कर बने हैं। इसलिए इन्हें वर्णमाला में किसी भी दृष्टि से सम्मिलित करना उचित नही है।

समय मिला तो अगली बार कई मित्रों की माँग पर हिन्दी में कविता लिखने वाले अपने मित्रों के लिए गणों की चर्चा अवश्य करूँगा।

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया डाक्टसाब। पंचमाक्षर नियमों को तो लोग भूल ही गए हैं। हर जगह अनुस्वार :)

    आपने बहुत अच्छा लिखा है। आगे भी व्याकरण के आसान गुर बताते हुए मार्गदर्शन करते रहें।
    धन्यवाद

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  2. बेहद जनोपयोगी जानकारी। इसके लिए तो ब्‍लॉग पर क्रांति चला देनी चाहिए और कोशिश की जाए कि ब्‍लॉग पर तो सभी इसे जानें और इसका प्रयोग करें। इस तरह की मुहिम चलाने की मैं जोरदार अनुशंसा करता हूं।
    आपको इस पोस्‍ट को नुक्‍कड़ पर भी अवश्‍य ही लगाना चाहिए। स्‍वागत है।

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  3. बहुत ही महत्वपूर्ण विषय उठाया है आपने. संभवतः कंप्यूटर पर टाइपिंग की सुविधा ही हिंदी व्याकरण और शब्दों की विविधता को प्रभावित कर रही हैं. मगर व्याकरण से छेड़ खानी हिंदी की समृद्ध विरासत को प्रभावित करेगी.

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  4. बहुत अच्‍छा विषय उठाया है आपने .. इसमें नियमित लिखिए .. ताकि जिन बातों की उपेक्षा हिन्‍दी जगत में हो रही हो .. उसपर ध्‍यान दिया जा सके .. धन्‍यवाद ।

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  5. बहुत बढ़िया साहब. इस विषय पर आज अध्ययन के उपरान्त ही कुछ लिख सकूँगा.

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  6. लाभप्रद जानकारि के लिए आभार।

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  7. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख है. कृप्या इसे एक नियमित श्रृंखला बनायें.

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  8. बहुत महत्वपूर्ण श्रंखला बनेगी जारी रखें
    श्याम सखा

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  9. बहुत ही उत्तम, उपयोगी, ज्ञानवर्धक और महत्वपूर्ण जानकारी मिली!आपने बड़े ही सुंदर ढंग से प्रयोग किया है और सुबह सुबह अच्छी जानकारी प्राप्त हुई!बहुत बहुत धन्यवाद!

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  10. आपने एक अच्छी शुरुवात की है। धन्यवाद!!

    कृपया अन्यथा न लें, मैं कोई गलती नहीं निकाल रहा हूँ वरन् एक भूल की ओर इशारा कर रहा हूँ, कृपया स्वरों में 'ऋ' को भी जोड़ लें। वास्तव में हिन्दी के लिये देवनागरी लिपि को अपनाया गया है जिसके स्वरों में "ऋ, ॠ, ऌ और ॡ" भी आते हैं जिनमें से अंतिम तीन का संस्कृत में तो प्रयोग होता है पर हिन्दी में नहीं। हाँ, 'ऋ' का प्रयोग हिन्दी में अवश्य होता है इसीलिये इसे जोड़ने का अनुरोध किया है।

    मेरी जानकारी के अनुसार 'ड़ और ढ़' संयुक्ताक्षर हैं और वर्णमाला के अन्तर्गत नहीं आते।

    आपने अनुस्वार अर्थात् बिन्दी के विषय में बहुत अच्छा लिखा है! आजकल लोग पाञ्चजन्य को पांचजन्य लिखना ही पसंद करते हैं।

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  11. बहुत अच्छी जानकारी.. इस क्रम को आगे बढ़ाएं और हिन्दी के प्रचलित स्वरूप व शुद्ध स्वरूप के बीच के अन्तर पर और प्रकाश डालें, जिससे हमारा ज्ञानवर्द्धन हो .. हैपी ब्लॉगिंग

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  12. इसके लिए तो ब्‍लॉग पर क्रांति चला देनी चाहिए और कोशिश की जाए कि ब्‍लॉग पर तो सभी इसे जानें और इसका प्रयोग करें। इस तरह की मुहिम चलाने की मैं जोरदार अनुशंसा करता हूं।

    सही बात कहा है अविनाश जी ने
    अच्छी और अलग तरह की जानकारी

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  13. is aur aapne dhyaan diya iske liye hum aabhari ,hamesha kuchh naya aur achchha karne ka khyal aap liye rahate hi aur sanskriti ko bachaye rakhate hai .is khoobi ke kayal hai hum .

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  14. शास्त्री जी आपने बड़ी उपयोगी जानकारी दी है |

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