शनिवार, जुलाई 04, 2009

‘‘तू से आप और आप से सर’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

लगभग २५-३० वर्ष पुरानी बात है। उस समय उत्तराखण्ड राज्य नही बना था। विशाल उत्तर-प्रदेश था।
मेरा निवास उन दिनों नेपाल सीमा पर बसे छोटे से स्थान बनबसा में हुआ करता था।
बनबसा में उस समय पुलिस-थाना भी नही था।
यानि पढ़े-लिखे व्यक्ति के लिए कोई अच्छा स्थान शाम को बैठने के लिए था ही नही। लेकिन सोसायटी तो हर व्यक्ति को चाहिए ही, इसलिए मैं अक्सर शाम को 4 किमी दूर शारदा नदी के पार बने कस्टम-कार्यालय या इमीग्रेशन चेक-पोस्ट पर बैठने चला जाया करता था।
गर्मियों के दिन थे। समय यही कोई शाम के सात बजे का रहा होगा। एक आफीसर क्लास व्यक्ति नेपाल से घूम कर आ रहा था। उसने कुछ छोटी-मोटी खरीदारी भी नेपाल से की थी।
कस्टम अधिकारी ने उसे रोक लिया। जब उसने अपना परिचय दिया तो कस्टम आफीसर उसे तू-तू करके सम्बोधित करने लगा।
उसे बुरा लगा और उसने- "कहा महोदय आप सभ्यता से तो बात कीजिए।"
इस पर कस्टम अधिकारी ने कहा- "भाई मैं तो मेरठ का रहने वाला हूँ। मेरी बोलचाल की यही भाषा है।"
यह वार्तालाप चल ही रहा था कि - उप-जिलाधिकारी उन सज्जन को लेने के लिए आ गये।
अब तो कस्टम आफीसर का बात करने का लहजा ही बदल चुका था। वो अब तू से आप पर आ गये थे।
कस्टम अधिकारी ने बड़े विनम्र भाव से उन सज्जन से कहा - ‘‘सर! आपने बताया नही कि आप एस0डी0एम0 साहब के रिलेशन में हैं।’’
लेकिन यह सज्जन भी खेले-खाये थे, तपाक से बोले- ‘‘क्यों भाई! अब तुम्हारी मेरठ की भाषा कहाँ चली गयी?’’
इस पर कस्टम अधिकारी की बोलती बन्द हो गयी थी।

7 टिप्‍पणियां:

  1. इसीलिये कहते हैं किया तो पैसा हो या रसूख हो तो ही आजकल इज्जत मिलती है. गुण तो अब शायद गौण हो गये.

    रामराम.

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  2. Aapne mere "landscaping"pe dee tippaneeke liye dhanywaad kehne aayee thee...lekin itnee rochak post padhe bina raha nahee gaya...!

    Meree yahee post aap:

    http://shama-bagwaanee.blogspot.com

    is blog pe gar dekhe to "bageechon kee rachnaatmak yaaden" is sheershak tehet, aapko unke saath judee yaaden padhne milengee...shayad usme adhik aanand aaye, aisa mujhe lagta hai...
    waise aap is blog pe kaise phonch gaye...?Ek sukhad achraj hua....!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  3. बहुत सुंदर
    यादों की झरोखों से जो संस्मरण आप खींच कर ला
    रहे हैं,अत्यन्त रोचक हैं.

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  4. apne bachpan ke din....
    ..jo pithoragarh, almora,nainital, ranikhet main guzre the yaad ho aaiye !!

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  5. सबसे पहले तो यह बता दूँ कि, मैं भी ऎसे अनुभव से गुज़रा हूँ ।
    पर, यहाँ यह सम्मान मुझे अपनी पत्नी का पति होने के नाते से मिल सका ।
    जब तक उनसे दोस्ती थी, तब मैं " तू " था ।
    फिर लव-शव हो गया, और मैं रातोंरात एक लज़ाया हुआ ’ आप ’ हो गया ।
    अब जब कि यही ( भूतपूर्व ) कन्या मेरी पत्नी हैं, मैं ’ अजी सुनते हैं जी ’ हो गया !

    कारक और वाचक वही पर सँज्ञायें बदलती गयीं, है ना मज़ेदार बात ?

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