मंगलवार, जुलाई 07, 2009

‘‘नकल मत करना’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


हम हिन्दुस्तानियों की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम बिना कुछ सोचे विचारे नकल करने लगते हैं। विदेशी संस्कृति की नकल करने में तो हमने सारे कीर्तिमान भंग कर दिये हैं।

सौन्दर्य सदैव परोक्ष में निहित होता है, लेकिन हम लोग प्रत्यक्ष को सौन्दर्य मान कर इसका भौंडा प्रदर्शन करने लगे हैं।

आज हमारी स्थिति रुई से लदे हुए गधे जैसी हो गयी है।

प्रस्तुत है यह मजेदार लघु-कथा-

एक व्यापारी घोड़े पर नमक और गधे पर रुई लाद कर बाजार जा रहा था। मार्ग में एक नदी थी। नदी में घुसते ही घोड़े ने पानी में 2-3 डुबकी लगाईं और चलने लगा। नमक पानी में घुल जाने से उसका वजन कुद हल्का हो गया था।

गधे ने भी यह देख कर बिना कुछ सोचे विचारे पानी में 2-3 डुबकी लगा दी। डुबकी लगाते ही रुई की गाँठें भीग कर इतनी भारी हो गई थीं कि उसका चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया था।

किसी ने सच ही कहा है-

‘‘बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय।

काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हँसाय।।’’


10 टिप्‍पणियां:

  1. बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय...सही है मगर अधिकतर गधा बुद्धि लिए हैं.

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  2. ठीक कहा आपने। कहते भी हैं कि नकल करने के लिए भी अकल की जरूरत होती है नहीं तो शकल खराब होने का डर बना रहता है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. तभी तो कहते है नक़ल के लिए भी अकल की जरूरत होती है....

    regards

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  4. बंदर( गधे) की तरह नकल करो तो यही होता है ।

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  5. इससे शिक्षा मिलती है कि
    बंदर और गधा बुद्धि होने से
    तो बेबुद्धि होना अच्‍छा।

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  6. bahut hi jnyanvardhak baten kahi aapne
    bas aaj ke log maan le yahi dua karata hoon..

    sundar ..badhayi

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  7. सही फरमाया आपने! किन्तु काश ऐसा ना होता!
    मगलकामनाओ सहीत
    हे प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर

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  8. आपकी बात बिल्कुल सही है! बहुत बढ़िया लगा!

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