शनिवार, सितंबर 18, 2010

"जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सन् 1979, बनबसा जिला-नैनीताल का वाकया है। उन दिनों मेरा निवास वहीं पर था । मेरे घर के सामने रिजर्व कैनाल फौरेस्ट का साल का जंगल था। उन पर काले मुँह के लंगूर बहुत रहते थे।
मैंने काले रंग का भोटिया नस्ल का कुत्ता पाला हुआ था। उसका नाम टॉमी था। जो मेरे परिवार का एक वफादार सदस्य था। मेरे घर के आस-पास सूअर अक्सर आ जाते थे। जिन्हें टॉमी खदेड़ दिया करता था । एक दिन दोपहर में 2-3 सूअर उसे सामने के कैनाल के जंगल में दिखाई दिये। वह उन पर झपट पड़ा और उसने लपक कर एक सूअर का कान पकड़ लिया। सूअर काफी बड़ा था । वह भागने लगा तो टॉमी उसके साथ घिसटने लगा। अब टॉमी ने सूअर का कान पकड़े-पकड़े अपने अगले पाँव साल के पेड़ में टिका लिए।
ऊपर साल के पेड़ पर बैठा लंगूर यह देख रहा था। उससे सूअर की यह दुर्दशा देखी नही जा रही थी । वह जल्दी से पेड़ से नीचे उतरा और उसने टॉमी को एक जोरदार चाँटा रसीद कर दिया और सूअर को कुत्ते से मुक्त करा दिया।
हमारे भी आस-पास बहुत सी ऐसी घटनाएँ आये दिन घटती रहती हैं परन्तु हम उनसे आँखे चुरा लेते हैं और हमारी मानवता मर जाती है। 
काश! जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता।

9 टिप्‍पणियां:

  1. लंगूर ने बिल्कुल सही किया! आखिर टोमी को सबक सिखाना ज़रूरी था! सूअर के चंगुल से आख़िर टोमी मुक्त हुआ! सही में हर इंसान के भीतर जानवरों सा जज्बा होना चाहिए!

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  2. सही कह रहे हैं……………काश ! ऐसा जज़्बा इंसान के पास भी होता।

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  3. काश! जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता।

    काश!

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  4. यह तो एक कहानी हो गयी। लंगूर ने कुत्ते को झापट मारा और सूअर को बचा लिया। क्‍या दोस्‍ती निभायी है? लेकिन हम कहाँ निभा पाते हैं दोस्‍ती? किसी मुसीबत में फँसे अपने दोस्‍त के साथ क्‍या व्‍यवहार करते हैं?

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  5. काश ! ऐसा जज़्बा इंसान के पास भी होता।........

    बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर ........

    इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
    आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??

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  6. sahi kaha h aapne kash yesa jajba inshano ke pas bhi hota
    .
    mai bhi 2 sal nanital rahi hu
    achha laga y padkar dhanyvad

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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