सोमवार, अगस्त 02, 2010

“गीत मेरा:स्वर-अर्चना चावजी का!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

आज सुनिए मेरा यह गीत!
इसको मधुर स्वर में गाया है -
अर्चना चावजी ने!
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही!



अब जला लो मशालें, गली-गाँव में,
रोशनी पास खुद, चलके आती नही।
राह कितनी भले ही सरल हो मगर,
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही।।

लक्ष्य छोटा हो, या हो बड़ा ही जटिल,
चाहे राही हो सीधा, या हो कुछ कुटिल,
चलना होगा स्वयं ही बढ़ा कर कदम-
साधना पास खुद, चलके आती नही।।

दो कदम तुम चलो, दो कदम वो चले,
दूर हो जायेंगे, एक दिन फासले,
स्वप्न बुनने से चलता नही काम है-
जिन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।

ख्वाब जन्नत के, नाहक सजाता है क्यों,
ढोल मनमाने , नाहक बजाता है क्यों ,
चाह मिलती हैं, मर जाने के बाद ही-
बन्दगी पास खुद, चलके आती नही।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह
    अदभुत गीत
    सधे सुरों पे सवार
    दिल की गहराई में उतर गया

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  2. आनन्द आ गया. बेहतरीन गीत और उम्दा गायन!

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  3. जितनी सुन्दर शब्द हैं उतनी ही मधुर आवाज़ में अर्चना जी ने इसे गया है...आनंद आ गया...वाह...
    नीरज

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  4. अर्चना जी की मधुर आवाज़ के साथ गीत बहुत ही सुन्दर बन गया है……………बधाई।

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