शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

“निठल्ला चिन्तन” व्यंग्यः (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

चर्चा मंच
मित्रों!
आज कुछ सामग्री पोस्ट करने के लिए मेरे पास नही है!

मात्र एक  विचार मन में आया है-

“चर्चा मंच” पर दिन की एक चर्चा तो लगा ही देता हूँ, कभी-कभी दो भी हो जाती हैं।

सोच रहा हूँ कि इसमें ढाई दर्जन सदस्य सम्मिलित कर लूँ। इससे चर्चा करने में सुविधा रहेगी।

प्रतिदिन कोई एक सदस्य शेष सभी की पोस्टों की चर्चा किया करेगा।

यह शर्त चर्चामण्डली के सभी सदस्यों पर लागू होगी!

किन्तु,

इसके बाद भी यदि चर्चा में अन्तराल हुआ तो……?

अर्थ आप लगाइए!

मैं तो चला……!

10 टिप्‍पणियां:

  1. शाश्त्रीजी, आप तो एकला चलो रे! क्योंकि आप एकेले ही ढाई दर्जन से भारी हैं. आपका मतलब समझ आरहा है कुछ कुछ.

    रामराम.

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  2. शास्त्री जी-
    क्या धांसु व्यंग्य दिया है,
    चर्चा का नया ढंग दि्या है।
    आप सवा लाख के है सम,
    होली के रंग मे रंग दिया है।

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  3. लगता है कि शास्त्री जी पर वासन्ती मौसम का रंग चढने लगा है :) हा हा हा...
    हमें तो आप के द्वारा की गई चर्चा का ही आनन्द आता है....इसलिए इसे अपना कर्तव्य मानकर आप अकेले ही लगे रहिए :)

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  4. आप तो अकेले ही संभाले हैं पूरी जंग जी..बहुत बधाई.

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  5. Wese bhi aapke jesi charcha kar pane wale log birale hi milenge....mujhe lagata hai blog par post karana kafi aasan hai bajay posts par charcha karane ke !!
    To pahale to aapko aapke jesi charcha karavane ke liye traning programe chalana hoga :)
    Aabhar!!

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  6. बहुत अच्चा लगा पड आप का


    अमृत 'वाणी'.कॉम
    http://kavyakalash.blogspot.com/

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  7. are aap akele hi dhai sau se kam nhi hain..........hamein to aapki charcha hi padhni hai........lage rahiye.

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  8. सही है...कभी कभी नहाने का मन भी नहीं ही करता है न :)

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