शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

“यहाँ गौमाता शिव को दूध से नहलाती थी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“शिवरात्रि को सात रंग बदलती शिव की पिण्डी”

बरेली-पिथौरागढ़ राष़्टीय राजमार्ग पर खटीमा से 7 किमी दूर श्री वनखण्डी महादेव के नाम से विख्यात एक प्राचीन शिव मन्दिर है!
यह दिल्ली से 300 किमी और बरेली से 100 किमी दूर है।
कभी यह स्थान घने जंगलों के मध्य में हुआ करता था परन्तु अब यह चकरपुर गाँव से बिल्कुल सटा हुआ है। इसके साथ ही बरेली-पिथौरागढ़ राष़्टीय राजमार्ग है।
वनखण्डी महादेव समिति, चकरपुर ने अब यहाँ सुन्दर तोरण-द्वार बना दिया है।

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समिति ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करके इसे सजाया और सँवारा भी है।

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मन्दिर के भीतर का दृश्य देखकर तो आपको आश्चर्य होगा कि यहाँ कोई शिवलिंग नही है अपितु कलश के ठीक नीचे एक साधारण सा दिखाई देने वाला पत्थर है।
अवधारणा है कि शिवरात्रि को यह पत्थर सात बार रंग बदलता है।

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मन्दिर के मुख्य-महन्त ने इससे जुड़ी कहानी सुनाते हुए कहा-
“प्रणवीर महाराणा प्रताप के वीरगति को प्राप्त होने के उपरान्त कुछ राजपूत महिलाएँ तो सती हो गईं थी, लेकिन कुछ राजकुमारियों ने अपने सेवकों के साथ मेवाड़ से पलायन कर खटीमा के समीप नेपाल की तराई के जंगलों में अपना ठिकाना बना लिया था। यह कबीला “थारू” जनजाति के नाम से जाना जाता है।
उसी समय की बात है कि एक थारू की गाय घर में बिल्कुल दूध नही देती थी। लोगों ने जब इसका कारण खोजा तो पता लगा कि यह गाय प्रतिदिन जंगल में जाकर एक पत्थर के पास जाती है और अपने थनों से दूध गिरा कर आ जाती है।”
थारू समाज के लोगों ने यहाँ एक साधारण सा शिवालय बना दिया।
मन्दिर में कलश के नीचे वही पत्थर है जिस पर गाय अपने थनों से दूध गिरा कर इसको प्रतिदिन स्नान कराती थी।
प्रत्येक वर्ष यहाँ शिवरात्रि को एक विशाल मेला लगता है। जो सात दिनों तक चलता है।
कभी आपका भी इधर आना हो तो “वनखण्डी-महादेव” के इस प्राचीन शिव-मन्दिर का दर्शन करना न भूलें!

6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी है अगर आप मेज्क़बानी के लिये तैयार हैं तो जरूर आयेंगे। बधाई

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  2. bahut hi badhiya jankari di aapne.........shukriya..........agar kabhi mauka mila to darshan karne bhi jaroor aayenge.

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