पहली ही बार मैं और श्रीमती जी लुधियाना जा रहे थे। अतः साडू साहिब ने हमारे आने के उपलक्ष्य में जम कर तैयारी की थी। हमारे सोने के लिए मार्केट से वो बिल्कुल नये दो फोल्डिंग बैड लाये थे। रात का खाना खाने के बाद कमरे में बैड बिछा दिये गये। जैसे ही मैं बैड पर बैठा कि बैड का पाइप टूट गया। थोड़ी देर हँसी-मजाक चला और हम लोग सो गये। एक दिन रुकने के बाद हम लोग स्वर्ण-मन्दिर देखने के लिए अमृतसर को प्रस्थान कर गये। उसी वर्ष मेरे साडू भाई और साली जी जून के माह में छुट्टियों में एक सप्ताह के लिए मेरे घर खटीमा पधारे। साडू जी के अपने मन से बैड टूटने की बात भुला नही पाये थे। अतः उन्होंने कोशिश करके हिल-डुल कर मेरी एक प्लास्टिक की चेयर तोड़ दी और बड़ी शान से खुश होकर बोले- ‘‘लो जी हिसाब बराबर। आप लोगों ने हमारा बैड तोड़ा था। हमसे कुर्सी टूट गयी।" खैर बात आई-गयी हो गयी। अगले दिन साडू साहब ने फिर हरकत करनी शुरू की। प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ कर झूलने लगे। अतः यह कुर्सी भी भर-भराकर टूट गयी। लेकिन इसकी सीट भी टूटी बौर एक टाँग भी टूटी और साडू साहब की सीट और गुप्तांग प्लास्टिक टूटने से फट गये। खैर उनकी सीट में 10-12 टाँके लगे। करीब 15 दिन में वो चलने-फिरने लायक हो पाये। अब मैंने और श्रीमती जी ने उनकी मजाक उड़ानी शुरू की। हमने कहा- ‘‘भाई साहब! एक कुर्सी आपने तोड़ी तो बैड टूटने का हिसाब बराबर हो गया। मगर जब आपने दूसरी कुर्सी तोड़ी तो कुर्सी ने अपना हिसाब बराबर कर दिया। आज भी जब कभी साडू साहब के सामने वो संस्मरण याद किया जाता है तो वो बड़े लज्जित हो जाते हैं। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया. बडा ही दिलचस्प वाकया सुनाया.
aisa bhi hota hai kabhi kabhi.
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