शुक्रवार, मई 29, 2009

‘‘पुण्य तिथि पर विशेष’’ अन्तिम कड़ी (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

धन्य-धन्य तुमवीर जवाहर, धन्य तुम्हारी माता।
जुड़ा रहेगा जन-गण-मन से, सदा तुहारा नाता।
पण्डित जवाहरलाल की बहिनें भी देश के इस कार्य में कभी पीछे नही रहीं। स्वतन्त्रता की लड़ाई में उन्होंने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। भारत भूमि को दासता से मुक्त कराने के लिए उन्होंने भी यातनाएँ सहीं।
पं0 नेहरु के ही शब्दों में............
"मेरी बहिनों की गिरफ्तारी के बाद शीघ्र ही कुछ युवती लड़कियाँ जिनमें से अधिकांश 15 या 16 वर्ष की थीं। इलाहाबाद में इस बात पर गौर करने के लिए इकट्ठा हुई थी कि अब क्या करना चाहिए। उन्हें कोई अनुभव तो था ही नही। उनमें जोश था और वो सलाह लेना चाहतीं थीं कि हम क्या करें, लेकिन आज वे प्राइवेट घर में बैठी बाते कर रहीं थीं, गिरफ्तार कर ली गयीं। हरेक को दो-दो साल की सख्त कैद की सजा दी गयी, यह तो उन छोटी-छोटी घटनाओं में से एक थी, जो उन दिनों आये दिन हिन्दुस्तान भर में हो रही थी।जिन लड़कियों व स्त्रियों को सजा मिली, उनमें से ज्यादातर को बहुत कठिनाई पड़ी। उन्हें मर्दों से भी ज्यादा तकलीफ भुगतनी पड़ी।’’
कहानी यहीं पर खत्म नही होती, जवाहरलाल कमला जैसी पत्नी को पाकर धन्य हो गये। श्रीमती कमला नेहरू ने अपने जीवन को सुखी और आरामदायक बनाने के लिए कभी भी प्रयास नही किया। बल्कि देश सेवा में लगे अपने पति को सदैव ही देश सेवा के लिए उत्साहित किया। उसने पति के प्यार को देश सेवा के मार्ग में आड़े नही आने दिया। यह पण्डित नेहरू ने स्वयं स्वीकार किया है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में व्यस्त हो जाने के कारण वे कमला नेहरू के प्रति उदासीन हो गये थे।
उन्हीं के शब्दों में.............
‘‘हमारी शादी के बिल्कुल साथ-साथ देश की राजनीति में अनेक घटनायें हुईं और उनकी ओर मेरा झुकाव बढ़ता गया। वे होमरूल के दिन थे। इसके पीछे पंजाब में फौरन ही मार्शल-ला और असहयोग का जमाना आया और मैं सार्वजनिक कार्यो की आँधी में अधिकाधिक फँसता ही गया। इन कार्यो से मेरी तल्लीनता इतनी बढ़ गयी थी, ठीक उस समय जबकि उसे मेरे पूरे सहयोग की आवश्यकता थी।’’
श्रीमती कमला नेहरू ने अस्वस्थ होते हुए भी सत्याग्रह आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया। मेरी कहानी में पं0 जवाहरलाल नेहरू लिखते हैं-
‘‘इसके बाद उसकी बीमारी का दौर शुरू हुआ और मेरा लम्बा जेल निवास। हम केवल जेल की मुलाकात के समय ही मिल पाते थे।..............और उसे स्वयं जेल जाने पर बड़ी खुशी हुई। बीमारी के दिनों में श्रीमती कमला नेहरू को अपने स्वास्क्य की नही बल्कि देश की चिन्ता थी। नेहरू जी के शब्दों में............ ‘‘राष्ट्रीय युद्ध में पूरा हिस्सा लेने में अशक्त हो जाने के कारण उसकी तेजस्वी आत्मा छटपटाती रहती थी।...........नतीजा यह हुआ कि अन्दर ही अन्दर सुलगती रहने वाली आग ने उसके शरीर को खा लिया।’’
अपनी मृत्यु के पश्चात भी शायद वे नेहरू जी को कुछ यों सात्वना दे गयीं।
स्वयं काट कर जीर्ण ध्यान को, दूर फेंक देती तलवार।
इसी तरह चोला अपना यह, रख देता है जीव उतार।।
नेहरू जी की प्यारी बेटी इन्दु! हाँ अपनी माता तथा दादी माँ के संस्कारों में पली इन्दुने तो भारतवासियों को एक ऐसा प्रकाश दिया, जिसमें भारत सदियों तक चमकता व दमकता रहेगा। आकाश के चन्द्रमा की भाँतिभारत की इस प्रियदर्शिनी इन्दिरा की त्याग व बलिदान की कहानी कहने में तो लेखनी व शब्द दोनों ही अपने को असहाय अनुभव करते हैं। वह देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे माता-पिता की गोद में पली तथा भारत माता की सेवा करते उसकी गोद में हमेशा-हमेशा के लिए सो गयी।
जब-जब भी भारत का नाम लिया जायेगा, पं0 जवाहर लाल नेहरू का नाम कभी विस्मृत नही किया जा सकता। साथ ही उनकी माँ, बहिन, पत्नी व पुत्री के नाम को देशवासी ही नही अपितु विश्व के लोग भी सदा आदर के साथ श्रद्धा से याद करते रहेंगे।
(मेरा यह लेख 14 नवम्बर सन् 1989 को उत्तर उजाला, नैनीताल से
प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक था ‘‘देश सेवा हेतु समर्पित नेहरू परिवार’’)

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