बुधवार, मई 27, 2009

‘‘................और रेखा छोटी हो गयी’’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

दो-शब्दों में अपनी बात कहना चाहता हूँ और वे दो-शब्द हैं, ‘‘अभिमान और स्वाभिमान’’। दोनों का ही अपना-अपना महत्व है।
अभिमान में यदि ‘‘सु’’ लगा दिया जाये तो वह गौरव का प्रतीक बन जाता है। एक ओर जहाँ अभिमान हमें पतन के रास्ते की ओर लेकर जाता है तो दूसरी ओर स्वाभिमान हमारे लिए उन्नति के मार्ग प्रशस्त करता है।
मेरे एक अभिन्न मित्र हैं। वो बड़े विद्वान हैं लेकिन अभिमान उनका स्वाभविक गुण-धर्म है।यदि उनसे कोई भूल हो जाये तो वो उसको कभी स्वीकार नही करते हैं। लेकिन दूसरों की बहुत छोटी-छोटी गल्तियों को उजागर करने में कभी नही हिचकते हैं। वो यह भी जानने का प्रयास नही करते कि कहीं किसी मजबूरी के चलते तो यह मानव-सुलभ त्रुटियाँ तो नही हो गयी हैं।
बस, उन्हें एक ही चिन्ता रहती है कि उनका कथित एकाधिकार कोई छीनने का प्रयास नही कर रहा है।
मुझे याद है आ रही है अपने बाल्य-काल की एक घटना।
मैं उन दिनों कक्षा-8 का छात्र था।
सामान्य ज्ञान का पीरियड चल रहा था। मौलाना फकरूद्दीन सामान्य-ज्ञान पढ़ा रहे थे।
उन्होंने श्याम-पट पर एक रेखा खींच दी और कक्षा के छात्रों को बारी-बारी से बुलाकर कहा कि इस रेखा को छोटी कर दो। कक्षा के सभी छात्रों ने उस रेखा को मिटा-मिटा कर छोटा किया और एक स्थिति यह आयी कि वो रेखा मिटने की कगार पर पहुँच गयी।
तब मौलाना साहब ने चॉक अपने हाथ में ले ली और छात्रों को अपने स्थान पर बैठ जाने को कहा।
उन्होंने फिर से एक रेखा श्यामपट पर खींची और कहा कि अब मैं इसको छोटा करने जा रहा हूँ। परन्तु यह क्या, उन्होंने उस रेखा के नीचे उससे बड़ी एक रेखा खींच कर बताया कि अब पहले वाली रेखा छोटी हो गयी है।
कहने का तात्पर्य यह है कि किसी को मिटा कर उसका वजूद छोटा नही किया जा सकता है, अपितु उससे बड़ा बन कर ही छोटे बड़े के अन्तर को समझाया जा सकता है।
इस पोस्ट को लगाने का मेरा उद्देश्य किसी को उपदेश देने या मानसिक सन्ताप पहुँचाने का कदापि नही है। मैं तो केवल यह कहना चाहता हूँ कि-
ईष्र्या छोड़कर प्रतिस्पर्धा करना सीखो। छिद्रान्वेषी बनने से कुछ भी प्राप्त होना असम्भव है।
कमिंया खोजना बहुत सरल है, लेकिन गुणों का बखान करना बहुत कठिन।

8 टिप्‍पणियां:

  1. ईष्र्या छोड़कर प्रतिस्पर्धा करना सीखो। छिद्रान्वेषी बनने से कुछ भी प्राप्त होना असम्भव है।

    -बहुत सुन्दर सीख!!

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  2. पोस्ट पढ़कर किसी की ये पंक्तियाँ याद आयीं-

    अपना अवगुण नहीं देखता अजब जगत का हाल।
    निज आँखों से नहीं सूझता सच है अपना भाल।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. सुप्रभात शास्त्री जी,

    बहुत शिक्षाप्रद लेख है!

    साधुवाद!

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  4. इस पोस्ट में जिन्हें आप मित्र का दर्जा दे रहे हैं,
    उस तरह के लोग किसी के मित्र होते ही नहीं हैं!
    ऐसे लोगों का साथ तुरंत छोड़ देना चाहिए!

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  5. नेक सलाह के लिए धन्यवाद।
    टिप्पणी लिखने के लिए आभार।

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  6. आपने बिलकुल सही फ़रमाया....कुछ
    लोग सिर्फ अपने लिए ही जीते हैं और
    अपने से ऊपर किसी को नही समझते
    ऐसे लोगों को खुद samajhna होगा
    हम और आप तो सिर्फ कह सकते हैं
    aatmvishleshan करना होगा.

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  7. आपने बिलकुल सही कहा
    लोग सिर्फ अपने लिए ही जीते हैं,
    ईष्र्या छोड़कर प्रतिस्पर्धा करना सीखो


    सुन्दर सलाह के लिये
    धन्यवाद मयंक जी

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