मित्रों!
झुँझनू राजस्थान में जन्मी, जयपुर (राजस्थान) की निवासी हिन्दी ब्लॉगिंग की सशक्त लेखिका और चर्चा मंच पर ब्लॉगों की चर्चाकार अनीता सैनी का साक्षात्कार पर देखिए -
श्रीमती अनीता सैनी मैं एक अध्यापिका हैं। हिंदी और कम्प्यूटर
साइंस पढ़ाती हैं। इनका एक संयुक्त परिवार है जिसमें शासकीय अधिकारी से लेकर
खेती-किसानी से जुड़े पारिवारिक सदस्य हैं।
अनीता जी साहित्य में आपका रुझान कैसे हुआ? आपको कब महसूस हुआ कि आपके भीतर कोई रचनाकार है?
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अनीता सैनी: साहित्य के प्रति मेरा रुझान बचपन से ही रहा
है। आरंभ डायरी-लेखन से हुआ आगे चलकर छोटी-छोटी देशप्रेम की कविताएँ लिखीं जब वे
सराहीं गयीं तब एकांकी / प्रहसन लिखना शुरू किया। जब गुण ग्राहक प्रबुद्ध जनों
ने मनोबल बढ़ाया तब एहसास हुआ कि मेरे भीतर भी कोई रचनाकार है।
(माँ और बिटिया)
अब जरा यह भी बता दीजिए कि आप का आदर्श कौन रहा है? और क्यों रहा है? क्या अब भी आप उसे अपना आदर्श मानते हैं या समय के बहाव के साथ आदर्श
प्रतीकों में बदलाव आया है?
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अनीता सैनी: मेरे स्वर्गीय दादा जी श्री गीगराज साँखला (
जो जाने-माने पशु चिकित्सक थे ) वो आज भी मेरे मेरे आदर्श हैं क्योंकि उन्होंने
ही मुझे ऐसे संस्कार दिये जो जीवन जीने की कला सिखाते हैं।उनके द्वारा रोपे गये
सामाजिक मूल्य मेरे जीवन की धरोहर हैं। प्रकृति और पशु-पक्षियों से उन्हें विशेष
लगाव था जिसका प्रभाव मेरे जीवन पर भी है।
इसलिए मेरे दादा जी का
कृतित्त्व और व्यक्तित्त्व आज भी मेरे लिये आदर्श बने हुए हैं। वक़्त के साथ
मूल्य बदलते रहते हैं जिन्हें नये सिरे से पुनर्स्थापित किया जाना एक सतत
प्रक्रिया है। समय के साथ आये बदलावों में भी दादा जी द्वारा रोपे गये संस्कार
मुझे आज भी ऊर्जावान बनाये रखते हैं।
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अनीता जी वर्तमान रचनाकारों की पीढ़ी में आप के आदर्श कौन
हैं?
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अनीता सैनी: सच कहूँ तो वर्तमान पीढ़ी के रचनाकारों में
मेरा कोई आदर्श नहीं है चूँकि मैं अभी साहित्य अध्ययन प्रक्रिया से गुज़र रही हूँ
जहाँ कविवर प्रोफ़ेसर अशोक चक्रधर जी एवं कविवर अशोक बाजपेयी जी का सृजन मुझे
बहुत प्रभावित करता है।
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आप अपना लेखन स्वांतःसुखाय करती हैं या किसी विशेष
प्रयोजन से करती हैं?
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अनीता सैनी: स्वान्तः सुखाय तो हरेक लेखक / रचनाकार के
साथ स्वतः अप्रत्यक्ष रूप से चिपक जाता है। हाँ, विशेष प्रयोजन के विषय
में कहना चाहूँगी कि सृजन के लिये क़लम यदि थाम ही ली है तो उसे क्यों न वक़्त का
सच लिखकर सारगर्भित बनाया जाय। जब कभी आज को भविष्य में आँकने की ज़रूरत हो तो
विभिन्न मुद्दों पर मेरा नज़रिया भी शामिल किया जाय, ऐसा मेरा मानना है।
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अनीता जी! आप साहित्य की किस विधा को ज्यादा सशक्त मानती
हैं?
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अनीता सैनी: मेरी नज़र में साहित्य की सभी विधाएँ सशक्त
हैं लेकिन मुझे कभी-कभी कविता जनमानस पर अपना प्रभाव संप्रेषित करने में असरदार
नज़र आती है क्योंकि उसमें भाव, विचार एवं संवेदना का
मिश्रण व्यक्ति के अंतरमन को झकझोरते हैं।
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आज एक हिन्दी ब्लॉगर के रूप में आपकी जो पहचान बन रही है
उसमें आप किस रचनाकार के रूप में उभर रही हैं। गीत, मुक्तक, ग़ज़ल या छन्दमुक्त
लिखने में किस को सहज महसूस मानती हैं?
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अनीता सैनी: दरअसल मेरी पहचान छंदमुक्त लेखन से हुई है
क्योंकि इसमें मैं अपने विचार सँजोने में स्वयं को सहज पाती हूँ। हालाँकि मैं
छंदबद्ध रचनाओं दोहा एवं नवगीत में भी दख़ल रखती हूँ।
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क्या आप भी यह मानती हैं कि गीत विदा हो रहा है और
छन्दमुक्त या ग़ज़ल तेज़ी से आगे आ रही
है? कारण बताइए।
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अनीता सैनी: हाँ, ऐसा मैंने भी आजकल का लेखन पढ़कर महसूस किया है। छंदमुक्त लेखन का रुझान बढ़ने
की वजह है कि आजकल रचनाकार अपना समय और मेहनत दोनों बचाना चाहते हैं अतः ऐसे
लेखन में अपनी समस्त ऊर्जा लगा देते हैं। छंदमुक्त लेखन अँग्रेज़ी कविता लेखन से
प्रभावित है।
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अनीता जी! क्या आप हिंदी और उर्दू को अलग-अलग देखने में
सहमत हैं? अगर हाँ तो क्यों?
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अनीता सैनी: नहीं। मैंने अपने लेखन में इन दोनों भाषाओं
के शब्दों का भरपूर इस्तेमाल किया है। भाव संप्रेषित करने के लिये भाषा को
लचकदार होना ज़रूरी है। भारत में हिंदी-उर्दू एवं अँग्रेज़ी भाषाओं के शब्दों को लेखन में प्रचुर स्थान मिला है।
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अनीता जी क्या आप यह मानती हैं कि लोग लेखन से इस लिए
जुड़ रहे हैं क्योंकि ये एक प्रभावी विजिटिंग कार्ड की तरह काम आ जाता है और यश, पुरस्कार विदेश यात्राओं के तमाम अवसर उसे इसके जरिए सहज
उपलब्ध होने लगते हैं।
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अनीता सैनी: हाँ, हो सकता है ऐसा कुछ रचनाकारों के लिये संभव है। इस विषय पर मेरे पास अधिक
जानकारी उपलब्ध नहीं है।
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आज के संदर्भ में कविसम्मेलनों को आप कितना प्रासंगिक
मानते हैं और क्यों?
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अनीता सैनी: आजकल कवि-सम्मलेन राजनीतिक आयोजन हो गये हैं
क्योंकि इनके आयोजकों का किसी विशेष विचारधारा के प्रचार-प्रसार का छिपा हुआ
मक़सद होता है। हालाँकि कवि-सम्मलेन आज भी आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं क्योंकि
वहाँ श्रोताओं को प्रभावित करने के लिये हास्य-व्यंग प्रधान रचनाओं के प्राधान्य
के साथ नया कुछ नहीं होता है।
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अनीता जी! अपने जीवन की किसी महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण
का उल्लेख भी तो कीजिए।
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अनीता सैनी: मेरे विवाहोपरांत एक घटना ने मुझे गंभीर
चिंतन के लिये विवश किया। मेरे दूर के रिश्ते की बहन का पति सेना में था जिसकी
शादी हुए पंद्रह दिन ही हुए थे कि ड्यूटी ज्वाइन करने का आदेश आ गया। लेकिन वक़्त
ने सितम ऐसा ढाया कि तीन दिन बाद ही उस सैनिक की अर्थी गाँव आ गयी। बाद में
मैंने उस बहन के कठिन संघर्ष की मर्मांतक पीड़ा से सराबोर कहानी सुनी जिसे पग-पग
पर समाज के ताने और अपनों की उपेक्षा सहनी पड़ी। मैंने तब महसूस किया कि स्त्रियों
के समक्ष ऐसी चुनौतियों का सामना करने की पर्याप्त क्षमता होनी चाहिए। अतः मैंने
शिक्षा को महत्त्व देते हुए ख़ुद के पैरों पर खड़ा होना अपना स्वाभिमान समझा साथ
ही अन्य स्त्रियों को शिक्षा की ओर प्रेरित किया।
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अनीता जी आपकी सोच से पाठकों को जरूर प्रेरणा मिलेगी।
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कृपया पाठकों को यह भी बताइए कि आपकी रचनाएँ अब तक
कहाँ-कहाँ प्रकाशित हो चुकी हैं?
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अनीता सैनी: मेरे ब्लॉग 'गूँगी गुड़िया'
एवं 'अवदत अनीता'
के अतिरिक्त 'अमर उजाला काव्य' पर मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
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आपकी दृष्टि में लेखन के लिए पुरस्कार की क्या उपयोगिता है? आजकल लोग गुमनाम लोगों को पुरस्कार देते रहते हैं इससे
किसका भला होता है? रचनाकार का या पुरस्कार
देनेवाले का?
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अनीता सैनी: महोदय, मैं इस पेचीदा प्रश्न का जवाब देने में अपने आप को सक्षम नहीं पाती। मैं एक
नवोदित रचनाकार हूँ।
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आपकी अभी तक कितनी कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं? और किन-किन विधाओं में, आप अपने को मूलतः क्या
मानते हैं-गीतकार ग़ज़लकार या मुक्त साहित्यकार?
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अनीता सैनी: मेरा काव्य-संग्रह 'एहसास के गुंचे' अति शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें मुख्यतः मुक्त छंद की रचनाएँ हैं।
फिलहाल तो मैं स्वयं को मुक्त-साहित्यकार ही मानती हूँ हालाँकि छंदबद्ध रचनाओं
में दोहा एवं नवगीत लेखन भी करती हूँ।
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अब जरा यह भी बता दीजिए कि लेखन संबंधी आपकी भविष्य की
क्या-क्या योजनाएं हैं?
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अनीता सैनी: यह तो भविष्य पर ही निर्भर है।
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साहित्य लेखन के अतिरिक्त आपकी अन्य रुचियाँ क्या हैं?
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अनीता सैनी: अध्ययन एवं अध्यापन।
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अनीता जी! आपको पसन्द क्या है और नापसन्द क्या है?
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अनीता सैनी: सीधी-सादी, सहज प्राकृतिक जीवन शैली पसंद है और
दोहरे मापदंड वाला कृत्रिम जीवन नापसंद है।
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आप संयुक्त परिवार में रहती हैं या अपने एकल परिवार में?
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अनीता सैनी: मैं संयुक्त परिवार में अपने सास-ससुर और
बेटा-बेटी के साथ रहती हूँ और पति राजकीय सेवा में हैं।
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आप ब्लॉगिंग में कब से हैं और ब्लॉग पर आना कैसे हुआ?
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अनीता सैनी: मैं ब्लॉगिंग में मई 2018 से हूँ। 'राजस्थान पत्रिका' के साप्ताहिक अंक में एक स्तम्भ के ज़रिये ब्लॉग संबंधी विस्तृत जानकारी मिली
जिसके आधार पर मैंने अपना ब्लॉग तैयार किया और तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने में
बेटे मोहित ने भरपूर सहयोग किया।
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क्या आप राजनीति में भी रुचि रखती हैं क्या?
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अनीता सैनी: नहीं।
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अन्त में पाठकों को यह भी बताइए कि आप अपने लेखन के
माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
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अनीता सैनी: लेखन हमेशा अस्तित्त्व में बना रहता है अतः
परिवार,समाज, देश एवं दुनिया को मूल्याधारित विचार से जोड़ना और
सकारात्मक परिवर्तन के साथ प्रकृति से प्रेम को बढ़ावा देना ही मेरा संदेश जिससे
मानवीय संवेदना का सरोवर सूखने न पाये।
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तो ये थे अनीता सैनी से पूछे गये उनसे जुड़े कुछ सवाल।
आशा है कि पाठक आपके इस साक्षात्कार को पसन्द करेंगे और
उनके स्पष्ट जवाबों से प्रेरणा भी मिलेगी। मैं आपके उज्जवल भविष्य की
कामना करता हूँ।
धन्यवाद अनीता जी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
साहित्यकार एवं समीक्षक
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
Website.
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E-Mail .
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